Sadaiv Purato Nidhehi Charnam सदैव पुरतो निधेहि चरणं

Sadaiv Purato Nidhehi Charnam सदैव पुरतो निधेहि चरणं

चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्॥

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘रुचिरा’ के “सदैव पुरतो निधेहि चरणम्” नामक अध्याय से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वर्णेकर जी हमें यह बताना चाहते हैं कि हमें सदैव आगे की ओर बढ़ना चाहिए , कभी भी मुश्किलों को देखकर घबराना नहीं चाहिए ।

गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो……………..।।

भावार्थ – हे मनुष्य ! सदैव अपने चरणों को आगे की ओर रखो। ऐसा मान कर चलो कि हमारा घर ऊँची पर्वत की चोटी पर है और वहां पर किसी भी प्रकार का साधन पहुँचना असंभव है, केवल अपनी बल शक्ति ही हमें वहाँ तक पहुँचा सकती है ।

जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथा ऽनुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो…………………..।।

भावार्थ – हमें हमेशा डर को अपने मन से बाहर निकाल कर शक्ति को प्राप्त करना चाहता है , इसके बाद हम वह हमें देश प्रेम की भावना के लिए प्रेरित करना चाहता है। वह हमें कहता है कि हमें अपने देश से प्रेम करना चाहिए और हमेशा हमें अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहिए ।

पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंस्त्रा: पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो…………………..।।

भावार्थ – हमारी सफलता में अर्थात घर तक पहुंचने के रास्ते में बहुत बड़े-बड़े तथा तेज धार वाले पत्थर हैं और पूरा रास्ता जंगली जानवरों से भरा हुआ है। ऐसे रास्ते पर चलना बहुत अधिक कठिन है , लेकिन फिर भी हमें घबराना नहीं है और आगे की ओर बढ़ना चाहिए।

Sadaiv Purato Nidhehi Charnam

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15 प्रहेलिकाः

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