भारत – संरचना , उच्चावच , स्थलाकृतिक प्रदेश
भारत — संरचना , उच्चावच , स्थलाकृतिक प्रदेश
★ संरचना :– भारत के उच्चावच तथा स्थलाकृतिक स्वरूप को समझने से पूर्व भारत की भौतिक संरचना का ज्ञान होना आवश्यक है। भारत की गुफा की चट्टानें अलग-अलग क्रम की है, जो अलग-अलग समय में बनी है ।
भारत शैल (चट्टान) क्रम को मुख्यतः चार भागों में बांटा जा सकता है ।
1. आध कल्प
2. पुराण कल्प
3. द्रविड़ कल्प
4. आर्य कल्प
1. आध कल्प :– कल्प को दो भागों में बांटा गया है:–
* आध क्रम
* धारवाड़ क्रम
2. पुराण कल्प :– इस कल्प की शैलों को दो उपभागों में बांटा गया है:–
* कुडप्पा क्रम
* विंध्ययन क्रम
3. द्रविड़ कल्प :– इस कल्प में गोंडवाना क्रम की शैलें पायी जाती है । इसका विस्तार दामोदर घाटी, नर्मदा घाटी, गोदावरी घाटी , महानदी घाटी (राजस्थान), कश्मीर में पाई जाती है ।
4. आर्य कल्प :– इस कल्प की शैलों का निर्माण कार्बोनिफैरस युग से प्रारंभ हुआ। इन चट्टानों में कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस पाई जाती है । यह चट्टानें नवीनतम है।
★ उच्चावच :– भारत का प्राकृतिक स्वरूप एक समान नहीं है। यह उँचा और नीचा अर्थात् उबड़ -खाबड़ है । यहां पर अनेक स्थलाकृतियाँ ऊंची है , तथा अनेक स्थलाकृतियाँ नीची है , स्थल की ऊंचाई को समुद्र तल से नापा जाता है ।
★ भारत की भौतिक/ प्राकृतिक प्रदेश / स्थलाकृतिक प्रदेश :–
भारत की स्थलाकृतिक प्रदेशों को 6 भागों में बांटा गया है :–
1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश (हिमालय)
2. विशाल मैदान
3. थार का मरुस्थल
4. दक्षिण का पठार
5. तटीय मैदान
6. द्वीप समूह
1.उत्तरी पर्वतीय प्रदेश ( हिमालय) :– हिमालय शब्द का अर्थ (हिम+आलय) बर्फ का घर है। यह विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है। यहां वर्ष भर बर्फ जमी रहती है। इसकी आकृति (चापाकार) धनुषाकार है। हिमालय भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व की ओर फैला है । इसका विवरण निम्न प्रकार है :–
लंबाई — 2400 किलोमीटर (पश्चिम से पूरब )
चौड़ाई — 250 से 400 किलोमीटर (उत्तर से दक्षिण)
क्षेत्रफल — 5 लाख किलोमीटर
औसत ऊंचाई — 5000 मीटर
इसके उत्तर में तिब्बत तथा दक्षिण में विशाल मैदान स्थित है।
हिमालय की उत्पत्ति :–
महाद्वीपों के निर्माण के समय पृथ्वी पर एक ही भूखंड स्थित था , जिसे पेन्जिया कहा गया । इसके चारों और विशाल महासागर स्थित था, जिसे पेंथालसा कहा गया। सर्वप्रथम पेन्जिया दो टुकड़ों में विभक्त हुआ । ऊपर वाला भाग अंगारालैंड (लोटेशिया) कहा गया , तथा नीचे दक्षिण वाला भाग गोंडवाना लैंड कहां गया। और इसके मध्य एक भू-सन्नति बनी जिसे टेथिस सागर कहा गया।
अंगारा लैंड तथा गोंडवाना लैंड से अनेक नदियाँ टेथिस सागर में आकर गिरती और अपने साथ कंकर , पत्थर , मिट्टी और गाद लेकर सागर में गिराती धीरे – धीरे कालांतर में टेथिस सागर मलवे से भर गया। गोंडवाना लैंड के ऊपर की ओर अर्थात् उत्तर दिशा में खिसकने से टेथिस सागर में भरा हुआ मलवा धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा और हिमालय की उत्पत्ति हुई।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय की ऊंचाई आज भी प्रतिवर्ष बढ़ रही है। यह सिद्धांत कोबर ने दिया है।