संस्कृति एवं समाज Sanskriti Aur Samaj

संस्कृति एवं समाज

संस्कृति एवं समाज

लोगों का एक ऐसा समूह जिसकी संस्कृति समान होती है, समाज कहलाता है ।
व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अकेला नहीं कर पाता है। इसलिए उसे दूसरों का सहयोग प्राप्त करना पड़ता है तथा सहयोग देना भी पड़ता है।
अतः सामाजिक संबंध अमूर्त होते हैं। व्यक्ति व समाज एक दूसरे पर आश्रित होते हैं , और एक दूसरे के पूरक भी होते हैं ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है क्योंकि :–
1. मनुष्य स्वभाव से ही सामाजिक है ।
2. आवश्यकता मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाती है :– एक बच्चा माता-पिता की देखभाल में पलता है, और उनके साथ रहकर ‘नागरिकता’ का पहला पाठ पढ़ता है ।
3. समाज व्यक्ति में अंतर्निहित शक्तियों को विकसित एवं मर्यादित करता है।
* समाज के प्रति अंतर्निहित विरोध :–
समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण एवं सामाजिक व्यवस्थाएं मानवतावादी , समानतावादी एवं लोकतांत्रिक व सभी के लिए कल्याणकारी होनी चाहिए ।
सामाजिक व्यवस्था व्यक्ति के विकास में बाधक नहीं होनी चाहिए।
समाज की व्यवस्थाएं स्वस्थ की अवहेलना न करें।
ऐसा समाज स्वस्थ समाज होता है।
* एक अच्छे समाज की निम्नलिखित व्यवस्थाएं होती
है:–
1. उचित आचरण
2. समाज की उत्पादक इकाई बनें
3. सार्वजनिक जीवन में अनुशासन
4. दूसरों के अधिकारों का सम्मान
5. संस्कृति की रक्षा
6. राजनीतिक जागरूकता
7. विवेकपूर्ण मतदान
8. स्वच्छता एवं स्वास्थ्य
9. प्रशासन की सहायता करना
10. पर्यावरण की रक्षा
11. सेवा कार्य आदि।

पाठ 9:– समानता का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति से उसकी आवश्यकता का ध्यान रखते हुए समान व्यवहार करना और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम करने का अवसर उपलब्ध करवाना।
‘समानता’ लोकतंत्र की मुख्य विशेषता है।
हमारे संविधान में ‘समानता का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है।
सरकार व्यक्ति को कानून के सामने समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती । अतः किसी व्यक्ति का दर्जा या पद चाहे जो हो , सब पर कानून समान रूप से लागू होता है। इसे कानून का शासन कहते हैं।
लोकतंत्र के विभिन्न घटकों में
1. अपने प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार ‘राजनीतिक लोकतंत्र’ है ।
2. व्यवसाय एवं उपभोग की स्वतंत्रता ‘आर्थिक लोकतंत्र’ है ।
3. व्यक्ति की प्रतिष्ठा और अवसर की समानता ‘सामाजिक लोकतंत्र’ है।
* मताधिकार की समानता :– भारत जैसे लोकतंत्र देश में सभी वयस्कों अर्थात 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नागरिकों को मत (वोट) देने का अर्थात् सरकार चुनने का अधिकार है।
अपने क्षेत्र के बूथ लेवल अधिकारी (बी.एल.ओ) से मतदान के विषय में चर्चा की जा सकती है।
* पंथनिरपेक्षता और समानता :– भारत में कोई भी धर्म या पंथ राजकीय धर्म या पंथ के रूप में मान्य नहीं है। क्योंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है। यहां व्यक्ति अपने मत के अनुसार जीवन यापन करते हैं। प्रत्येक को अपने धर्म या पंथ के पालन की स्वतंत्रता है।
* नीति निर्देशक तत्व और समानता :–
संविधान सरकार को निर्देशित करता है कि वह आर्थिक न्याय और अवसर की समानता स्थापित करने के लिए कार्य करें । सरकार आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास करती है ।वह व्यक्तियों और समूहों के बीच प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की समानता समाप्त करने का प्रयास करती है।
अतः इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कानूनी प्रावधानों के साथ-साथ सरकार अनेक योजनाएं एवं कार्यक्रम भी चलाती रहती है।
* आरक्षण व समानता :– अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोगों को विशेष अवसर देना जरूरी होता है।
आरक्षण का उद्देश्य है कि समाज के वंचित , पिछड़े वर्गों को विकास के विशेष अवसर देखकर उनके सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के द्वारा उन्हें समाज की मुख्यधारा में बराबरी की स्थिति में लाना।
सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं में महिला, वंचित वर्ग , गरीब और ‘अन्यथा सक्षम लोगों'( विशेष योग्यजनों) को प्राथमिकता देती है।
संसद और विधानसभाओं में कुछ पद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित किए गए हैं। स्थानीय निकायों में महिलाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी पद आरक्षित किए गए हैं। इसी प्रकार सरकारी नौकरियों में भी इन सभी वर्गों के लिए पद आरक्षित है।
जनहित याचिका :– न्यायालय में जनता की भलाई से जुड़े विषय का प्रार्थना पत्र।

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