हमारा संविधान

हमारा संविधान

हमारा संविधान

किसी देश की शासन व्यवस्था के संचालन के लिए नियमों तथा कार्यविधि की आवश्यकता होती है। सरकार के गठन , नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य आदि की रूपरेखा इन्हीं नियमों के द्वारा निश्चित ही जाती है। इन नियमों कानूनों के द्वारा सरकार और जनता के बीच संबंध तथा जनता में भी आपसी संबंध तय किए जाते हैं ।
किसी राज्य में शासन, व्यक्ति और उसके आपसी संबंधों को निर्देशित करने वाले सभी नियमों और कानूनों का संग्रह ‘संविधान’ कहलाता है।
* संविधान के प्राय: दो प्रकार हो सकते हैं :–
1. लिखित संविधान :– जिस संविधान के प्रावधान लिखित रूप में होते हैं, वे लिखित संविधान कहलाते हैं। जैसे– भारत , संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान।
2. अलिखित संविधान :– जिस संविधान के प्रावधान लिखे नहीं जाते, बल्कि परंपराओं के रूप में रहते हैं , उन्हें अलिखित संविधान कहा जाता है। जैसे –ब्रिटेन का संविधान ।
* भारत के संविधान का निर्माण :–
■ भारत के संविधान के निर्माण का विचार स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ विकसित हुआ । महात्मा गांधी ने 1922 में यह मांग की थी कि “भारत का राजनीतिक भविष्य भारतीय स्वयं बनाएंगे।”
■ केबिनेट मिशन ने अपनी रिपोर्ट में देश में संविधान सभा के गठन की सिफारिश की।
■ जुलाई , 1946 में ब्रिटिश भारत में संविधान सभा के 296 जनप्रतिनिधियों के लिए चुनाव हुए , तथा 93 सदस्य देसी रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में वहां के शासकों द्वारा मनोनीत किए गए ।
■ राजस्थान से भी संविधान सभा के 14 सदस्य सम्मिलित थे।
■ 9 दिसंबर,1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक हुई । जिसमें ‘सच्चिदानंद सिन्हा’ को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया। बाद में ‘डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद’ संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष चुने गए।
■ संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को संविधान के उद्देश्यों को तय करने वाला एक ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ रखा जो 22 जनवरी, 1947 को सभी की सहमति से पारित हुआ।
■ संविधान सभा में एक ‘प्रारूप समिति’ बनाई गई । जिसके अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे ।
■ संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में कुल 114 बैठकों के बाद हमारे संविधान को तैयार किया।
■ 26 नवंबर , 1949 को संविधान सभा ने इसे पारित किया और 26 जनवरी 1950 को इसे देश में लागू किया गया।
■ भारत सरकार ने 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ घोषित किया तथा पूरे देश में 26 नवंबर 2015 को ‘प्रथम संविधान दिवस’ मनाया गया।
* भारत के संविधान की विशेषताएं :–
हमारे संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :-
1. सबसे लंबा एवं लिखित संविधान :–
हमारा संविधान विश्व का सबसे लंबा एवं लिखित संविधान है।
मूल रूप से संविधान में एक प्रस्तावना, कुल 395 अनुच्छेद हैं जो कि 22 भागों में विभक्त हैं और 8 अनुसूचियां हैं।
वर्तमान (सन् 2013) में इसमें 465 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। विश्व का कोई भी संविधान इतना बड़ा नहीं है।
2. प्रस्तावना :–
हमारे संविधान में प्रस्तावना को भी सम्मिलित किया गया है। यह प्रस्तावना संविधान का भाग है । प्रस्तावना संविधान का परिचय एवं भूमिका है । इसमें संविधान का सार है ।
3. विभिन्न स्रोतों से प्रेरणा :–
दुनिया के दूसरे देशों के संविधानों से भी अनेक बातों को हमारे संविधान में शामिल किया गया है।
जैसे– मौलिक अधिकार एवं स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से, राज्य के नीति निर्देशक तत्व आयरलैंड से, संसदीय शासन व्यवस्था ब्रिटेन से प्रेरित है।
4. पंथनिरपेक्षता :–
पंथनिरपेक्ष का अर्थ है कि राज्य सभी पंथों की समान रूप से रक्षा करेगा और स्वयं किसी भी पंथ को राज्य के धर्म के रूप में नहीं मानेगा।
भारत में रहने वाले लोगों को अपने अपने विश्वास के अनुसार पंथ /मत /धर्म का पालन करने की आजादी है ।
5. समाजवाद :–
भारतीय नागरिकों के लिए संविधान में , आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में समानता की बात कही गई है।
संविधान द्वारा ऐसे अनेक संरक्षणात्मक प्रावधान किए गए हैं, जिनसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सम्मान और विशेष अवसर प्राप्त हो सके।
6. लोकतांत्रिक गणतंत्र :–
संविधान के अनुसार भारत एक लोकतांत्रिक राज्य है। सरकार का चुनाव जनता करती है। चुनी हुई सरकार जनता के प्रति उत्तरदाई रहते हुए ही कार्य करती है।
हमारे शासन का सर्वोच्च पदाधिकारी राष्ट्रपति होता है। यह पद वंशानुगत ना होकर निर्वाचित होता है। अतः हमारा देश गणतंत्र कहलाता है।
7. मौलिक अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य :–
हमारे संविधान द्वारा नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास और शोषण से मुक्ति के लिए छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
नागरिकों के 11 मौलिक कर्तव्य भी निश्चित किए गए हैं, जिनका नागरिकों से पालन करने की अपेक्षा की गई है ।
8. नीति निर्देशक तत्व :–
जनता के हित को ध्यान में रखकर कानून तथा नीति बनाने और आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए संविधान में सरकारों को निर्देश दिए गए हैं, जिन्हें संविधान में नीति निर्देशक तत्व कहा गया है।
नीति निर्देशक तत्वों का कार्य सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना है। इनका उद्देश्य भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
हालांकि मौलिक अधिकारों की तरह नीति निर्देशक तत्वों को कानून के द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता ।
9. संघात्मक शासन व्यवस्था :–
हमारा भारतीय संविधान संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना करता है । इसमें संघात्मक शासन व्यवस्था के लक्षण जैसे – संगीय एवं प्रांतीय स्तरों की सरकारें, शक्तियों का विभाजन , लिखित संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि शामिल हैं ।
भारतीय संविधान में भारत को ‘राज्यों के संघ’ के रूप में बताया गया है। परंतु भारतीय संघ न तो राज्यों के आपसी समझौते का परिणाम है, और ना ही किसी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार है।
10. संसदीय शासन व्यवस्था :–
संविधान के द्वारा देश में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। जिसमें कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी रहती है।
इस व्यवस्था में राष्ट्रपति संवैधानिक अध्यक्ष है, और शासन की वास्तविक शक्तियां मंत्रिपरिषद् में निहित होती है, जो कि अपने कार्यों के लिए संसद के सीधे जनता द्वारा चुने गए सदन ‘लोकसभा’ के प्रति जिम्मेदार होती है ।
11. स्वतंत्र न्यायपालिका :–
देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है, ताकि जनता को न्याय मिल सके और उनके अधिकारों की रक्षा हो सके तथा संविधान के अनुसार ही शासन चलता रहे ।
न्यायपालिका को व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों से स्वतंत्र रखा गया है ।
12. कठोर एवं लचीला संविधान :–
भारत में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों को बदलने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, तो कुछ प्रावधानों को साधारण बहुमत से ही बदल दिया जाता है।
13. इकहरी नागरिकता :–
भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था है, किंतु भारतीय नागरिकों को उनके अपने राज्य की नागरिकता नहीं दी गई हैं। वे केवल भारत के ही नागरिक है इकहरी नागरिकता देश की एकता को बढ़ावा देती है ।
14. सार्वभौम वयस्क मताधिकार :–
हमारे संविधान में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार का प्रावधान है।