वेगनर का महाद्वीपीय सिद्धांत
सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान स्थाइडर द्वारा 1885 में महाद्वीपीय विस्थापन की संभावना प्रकट की गई थी। लेकिन इसे सिद्धांत का रूप में जर्मनी के विद्वान वेगनर ने दिया। वेगनर के अनुसार पुराजीवकल्प में सारे महाद्वीप परस्पर संगठित (जुड़े हुए) थे। पृथ्वी पर एक विशाल महाद्वीप ‘पेंजिया’ तथा एक महासागर ‘पेन्थालासा’ फैला हुआ था।
पेंजिया महाद्वीप पेन्थालासा सागर के मध्य स्थित था पेंजिया महाद्वीप के मध्य में ‘टेथिस’ नामक उथला (कम गहरा) सागर था।
टेथिस सागर के उत्तर में अंगारालैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड स्थित था।
अंगारालैंड में उत्तरी अमेरिका एवं यूरेशिया सम्मिलित थे।
गोंडवानालैंड में दक्षिणी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका तथा प्रायद्वीपीय भारत एवं अंटार्कटिका आपस में जुड़े हुए थे। दक्षिणी ध्रुव दक्षिणी अफ्रीका के नजदीक था।
कार्बोनिफेरस युग के अंत में पेंजिया महाद्वीप टूट गया। पेंजिया महाद्वीप के भाग (टुकड़े) उत्तर में विषुवत रेखा एवं पश्चिम की तरफ विस्थापित होने लगे। ऐसा माना जाता है कि विषुवत रेखा की ओर होने वाले विस्थापन गुरुत्वाकर्षण तथा उत्प्लावन बल के कारण हुए जबकि पश्चिम की ओर होने वाले विस्थापन ज्वारीय शक्ति के कारण संभव हुए।इस प्रकार वेगनर महोदय ने बताया कि इस प्रकार के विस्थापन से ही महाद्वीपों और महासागरों का वर्तमान क्रम देखने को मिलता है। वेगनर के इस सिद्धांत को “वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत” कहा जाता है।
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