कक्षा 7- पाठ 2 -वायुमंडल और जलवायु
पृथ्वी के चारों ओर कई गैसों का आवरण होता है उसे वायुमंडल कहते है।
वायुमंडल अनेक गैसों ,जलवाष्प एवं धूलकणों के मिश्रण से बना है।
इसमें मुख्य गैसे हैं- – नाइट्रोजन 78.08 प्रतिशत /ऑक्सीजन 20.95 प्रतिशत/ आर्गन 0.93 प्रतिशत/ कार्बन डाइऑक्साइड 0.0 3%/ अन्य 0.01 प्रतिशत (हीलियम ,ओजोन ,हाइड्रोजन, नियोन, जिनॉन, क्रिप्टोन व मिथेन आदी)
वर्तमान में अधिक जैविक ईधनों के उपयोग के कारण वायुमंडल में कार्बन- डाइ ऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिससे पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है इसे ‘भूमंडलीय तपन’ अथवा ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कहा जाता है।
अधिक ताप के कारण जब जल भाप बनकर वायुमंडल में चला जाता है तो वायुमंडल में विद्यमान इसी गैसीय जल को जलवाष्प कहा जाता है,यह केवल क्षोभमंडल में ही पाई जाती है, इसे आद्रता भी कहते हैं।ऊंचाई पर बढ़ने पर इसकी मात्रा लगातार कम होती जाती है।
वायुमंडल में धूलकणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही हमें आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
धूल कणों पर ही जल की छोटी-छोटी बूंदें जमकर बादलों का निर्माण करती है।
वायुमंडल की संरचनाः- हमारी पृथ्वी पर चारों ओर फैले वायुमंडल को ऊँचाई की ओर बढ़ते हुए तापमान के आधार पर 5 परतों में बाँटा गया हैः-
1. क्षोभ मंडल 2. समताप मंडल 3.मध्यमंडल 4.आयन मंडल 5. बहिर्मंडल ।
1. क्षोभ मंडलः- यह सबसे निचली एवं महत्वपूर्ण परत है, इस परत की औसत ऊंचाई 13 किलोमीटर है।
वर्षा, कोहरा ,आंधी- तूफान, तड़ित चालन ओलावृष्टि, पाला आदि मौसमी घटनाएं इसी परत में घटित होती है।
इसकी ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा कहते हैं, जहां कोई भी मौसमी घटनाएँ घटित नहीं होतीहै। इसीलिए इसे शांत मंडल भी कहा जाता है।
2. समताप मंडल :-क्षोभ सीमा के ऊपर लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक यह परत स्थित है।
इसमें मौसमी घटनाएं घटित नहीं होती है। वायुयान इसी परत में उड़ते हैं। ओजोन गैस समताप मंडल में ही पाई जाती है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों ( हानिकारक किरणें) का अवशोषण कर धरातल तक नहीं आने देती है। इसकी ऊपरी सीमा को समताप सीमा कहा जाता है।
3. मध्यमंडल :- समताप सीमा के ऊपर लगभग 80 किलोमीटर तक मध्य मंडल नामक तीसरी परत स्थित है।
अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिंड इस परत में जल जाते हैं। इसकी ऊपरी सीमा को मध्य सीमा कहा जाता है।
4. आयन मंडल :- यह परत 80 से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। संचार की दृष्टि से यह परत अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पृथ्वी से प्रसारित होने वाली रेडियो संचार तरंगे इसी परत से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौटती है।
5. बहिर्मंडल:- यह सबसे ऊंची परत है जिसे बहिर्मंडल कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से हीलियम, हाइड्रोजन गैसें पाई जाती है।
स्थान विशेष की अल्पकालीन पर्यावरणीय दशाओं को मौसम कहा जाता है।
किसी स्थान विशेष की मौसमी दशाओं के दीर्घकालीन औसत को उस स्थान की जलवायु कहा जाता है।
वायुमंडल की मुख्य तत्व -तापमान, वर्षा, वायुदाब, आर्द्रता, पावनें आदि है।
तापमान का अर्थ है -“वायु कितनी गरम है।”
सर्वाधिक तापमान भूमध्य रेखा पर होता है।
भूमध्य रेखा से जैसे-जैसे ध्रुवों की ओर जाते हैं तापमान लगातार कम होता जाता है, क्योंकि वहां पर सूर्य की किरणें सीधी एवं ध्रुवों पर तिरछी पड़ती है।
तापमान को मापने की इकाई सेंटीग्रेड अथवा फॉरेन्हाइट है।
तापमान को मापने का यंत्र तापमापी अथवा थर्मामीटर कहलाता है।
धरातल से क्षोभमंडल में ऊपर की ओर जाने पर औसतन प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान कम होता जाता है।
वायुदाब :-पृथ्वी की सतह पर ऊपरी वायुमंडल की परतों में स्थित वायु का जो भार पड़ता है उसे वायुदाब कहा जाता है।
धरातल पर 1 वर्ग सेंटीमीटर पर लगभग 1 किलोग्राम भार पड़ता है।
सर्वाधिक वायुदाब समुंद्र तल पर होता है।
अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में निम्न वायुदाब होता है। कम तापमान वाले क्षेत्रों में उच्च वायुदाब बनता है।
हवाएँ हमेशा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती है।
वायुदाब को मापने की इकाई मिलीबार है। वायुदाब को मापने का यंत्र वायुदाबमापी या बैरोमीटर कहलाता है।
वायु की दिशा बताने वाला यंत्र दिग्सूचक यंत्र और वायु की गति बताने वाला यंत्र एनीमोमीटर कहलाता है।
पवतों से आने वाली पवन पर्वत समीर और घाटी से आने वाली पवन घाटी समीर कहलाती है।
पवन:- उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को पवन कहते हैं।
पवनें तीन प्रकार की होती है:-
1. स्थाई पवनें – यह वर्ष भर एक ही निश्चित दिशा में चलती है, यह भी तीन प्रकार की होती है :-(व्यापारिक, पछुआ तथा ध्रुवीय पवनें)
2. सामयिक/ मौसमी पवनें:- ये पवनें विभिन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती है।
उदाहरण :- भारत में मानसूनी पवनें, तटीय प्रदेशों में रात्रि में चलने वाली स्थल समीर तथा दिन में चलने वाली समुद्री समीर।
3. स्थानीय पवनें::- ये पवने किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष भर या दिन के किसी समय विशेष में चलती है। जैसे- राजस्थान में गर्मी में चलने वाली गर्म पवन जिसे ‘लू’ कहते हैं। चिनुक (रॉकी पर्वत), फोहन व मिस्ट्रल (यूरोप) आदि विश्व में अन्य स्थानीय पवनें हैं।
आद्रता:- यदि किसी कारणवश जल भाप में बदलकर वायुमंडल में मिल जाता है तो वायुमंडल में मौजूद इस भाग रूपी जल को आद्रता कहा जाता है।
इसे वायुमंडल में नमी या जलवाष्प भी कहा जाता है।
वर्षा:- पृथ्वी पर जल का बूंदों के रूप में गिरना वर्षा कहलाता है। वर्षा तीन प्रकार की होती है- संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा, चक्रवातीय वर्षा।
विश्व की औसत वार्षिक वर्षा 117 सेंटीमीटर है।
विषुवत रेखीय क्षेत्रों में अधिक तापमान व आद्रता के कारण प्रतिदिन सायंकाल में संवहनीय वर्षा होती है।
विषुवत रेखीय क्षेत्र विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है। जहां वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है।
मध्यम वर्षा क्षेत्र- मुख्य रूप से उष्ण – शीतोष्ण कटिबंध के तटीय क्षेत्र है। जहां 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा मात्रा है।
कम वर्षा क्षेत्र- उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों के मध्य भाग तथा शीतोष्ण प्रदेशों के पूर्वी भाग है, जहां वर्षा मात्रा 25 से 100 सेंटीमीटर है।
जहां वर्षा न के बराबर होती है, यह निम्न वर्षा के क्षेत्र गर्म मरुस्थलीय क्षेत्र है।
ध्रुवीय क्षेत्रों में भी कम वर्षा होती है, हिमपात के रूप में वहां वर्षा होती है।
विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान भारत के मेघालय राज्य की खासी पहाड़ियों में स्थित मासिनराम एवं चेरापूंजी है। तथा सबसे कम थार के मरुस्थल में वर्षा होती है।
समुद्रों के तटवर्ती क्षेत्र की जलवायु वर्षभर सम बनी रहती है।
जहां वनस्पति कम होती है वहां की जलवायु उष्ण व शुष्क होती है।
चक्रवात:- सामान्य रूप में चक्रवात निम्न दाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ उच्च वायुदाब होता है । अर्थात केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है जिससे हवाएँ परिधि से केंद्र की ओर चलती है।
चक्रवात समुद्र पर विकसित होते हैं और तटीय भागों पर वर्षा करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं :- 1. उष्णकटिबंधीय चक्रवात- जो तीव्र गति से चलने वाले होते हैं ।
2. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात- यह धीमी गति से चलते हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को अलग-अलग जगह अलग-अलग नाम से कहा जाता है:-
संयुक्त राज्य अमेरिका में — ‘हरीकेन’
कैरेबियन सागर व मेक्सिको में– ‘रोरनेडो’
चीन व जापान में — ‘टाइफून’
ऑस्ट्रेलिया में — ‘विलीविलीज’
बंगाल की खाड़ी में– ‘चक्रवात’ कहते हैं।
प्रतिचक्रवात:- हवाओं के द्वारा निर्मित वृताकार, अंडाकार आदी लहरनुमा आकार, जिसके मध्य में उच्च वायुदाब तथा परिधि की ओर न्यून वायुदाब होता है, प्रतिचक्रवात कहलाता है। इसमें हवाएँ केंद्र से बाहर की ओर चक्राकार वलय में चलती है।
भूमंडलीय तपन – पृथ्वी के तापमान में वृद्धि।
आद्रता- वायुमंडल में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा।
वायुदाब –पृथ्वी की सतह पर वायुमंडल की सभी परतों में स्थित वायु का दबाव।
प्रकीर्णन -धूलकणों से टकराकर सूर्य की किरणों का बिखरना ।