Upabhokta Sanrakshan उपभोक्ता संरक्षण

Upabhokta Sanrakshan उपभोक्ता संरक्षण

Upabhokta Sanrakshan उपभोक्ता संरक्षणUpabhokta Sanrakshan 

उपभोक्ता संरक्षण

उपभोक्ता संरक्षण :–
● संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए दिशा निर्देशों को मंजूरी 9 अप्रैल 1985 को दी थी।
● उपभोक्ता आंदोलन सर्वप्रथम महाराष्ट्र में सन् 1904 में शुरू हुआ ।
● स्वतंत्र भारत में उपभोक्ता आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय तत्कालीन मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री (श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) को जाता है। उन्होंने वर्ष 1949 में उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए “उपभोक्ता संरक्षण परिषद्” की स्थापना की।
● एम. आर. टी. पी. कमीशन की स्थापना 1969 में हुई ।
● नापतोल मानक संबंधी अधिनियम की स्थापना 1976 में हुई ।
● 24 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम संसद में पारित किया गया ।
● 24 मार्च को “विश्व उपभोक्ता दिवस” मनाया जाता है ।
● 1997 में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण सम्मेलन’ में कहा गया था कि, ‘भारतीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ एक कानून है, जिसमें उपभोक्ताओं के अधिकारों के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हुई है ।
● यह अधिनियम सामाजिक – आर्थिक विधान के इतिहास में एक ‘मील का पत्थर’ है।
★ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता सीमित आय के अंदर विवादों को शीघ्र व सस्ते में निपटाने की व्यवस्था है , जबकि न्यायालय में मुकदमे महंगे होते हैं। तथा समय भी अधिक लगता है।
★ इसमें उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्रीय , राज्य व जिला स्तर पर ‘उपभोक्ता संरक्षण परिषद्’ की स्थापना व विवादों के निवारण के लिए जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर ‘ त्रि-स्तरीय ‘ निवारण तंत्र स्थापित किए गए हैं ।
★ इन्हें ‘जिला उपभोक्ता मंच’ , ‘ प्रादेशिक आयोग’ व ‘राष्ट्रीय आयोग’ के नाम से जाना जाता है ।
* उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की प्रमुख विशेषताएं :–
● मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण सामग्री , त्रुटीपूर्ण सेवा तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार के लिए विरुद्ध संरक्षण प्रदान करना है।
● यह भौगोलिक स्तर पर जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू होता है।
● यह नवीन व प्रगतिशील समाज कल्याण कानून है।
● इससे उपभोक्ता आंदोलन शक्तिशाली बना है।
● यह एकमात्र कानून है जो सीधा बाजार व्यवस्था से जुड़ा है।
● इसकी विभिन्न व्यवस्थाएं अत्यंत व्यापक और प्रभावशाली है।
* उपभोक्ताओं के अधिकार :–
1. सुरक्षा का अधिकार
2. सूचना का अधिकार
3. चयन का अधिकार
4. सुनवाई का अधिकार
5. शिकायत के समाधान का अधिकार
6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
* उपभोक्ता सेवाएँ:– इसमें बैंकिंग, बीमा, परिवहन गृह निर्माण , रेलवे, बिजली, मनोरंजन, टेलीफोन , चिकित्सा सेवाएं आदि सम्मिलित है ।
* उपभोक्ता शोषण के कारण :–
1. एकाधिकार
2. मांग व पूर्ति में असंतुलन
3. अशिक्षा
4. उपभोक्ता की उदासीनता
5. उदारीकरण , निजीकरण एवं भूमंडलीकरण ।
* उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराते हैं :–
1. जिला उपभोक्ता फोरम :–
20 लाख रुपए तक की दावे के लिए
इस खंडपीठ में 3 सदस्य होते हैं ।
एक अध्यक्ष दो अन्य सदस्य तथा एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होता है ।
2. राज्य आयोग :–
20 लाख से अधिक और एक करोड़ तक के दावे के लिए ।
प्रत्येक राज्य में ” उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ” होता है।
इसमें एक अध्यक्ष दो अन्य सदस्य होते हैं ।
एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होता है।
राज्य आयोग का अध्यक्ष – उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है।
यह ‘ जिला उपभोक्ता फोरम ‘ द्वारा किए गए निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है ।
3. राष्ट्रीय आयोग :–
यह केंद्रीय स्तर पर होता है ।
इसमें एक अध्यक्ष व कम से कम 4 सदस्य होते हैं।
अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है ।
इस आयोग में भी एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है।
यह आयोग सभी राज्यों के मामलों को सुनता है।
यह 1करोड़ रुपए से अधिक राशि के मामले सीधे सुन सकता है।
इस आयोग के विरुद्ध केवल सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
* शिकायत दर्ज कराने के लिए लगने वाला शुल्क :-
★ उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) नियम 2004 के तहत शिकायत दर्ज कराने के लिए लगने वाला शुल्क निम्न प्रकार से है :-
◆ 1 लाख रुपये तक — ₹100
◆ एक से ₹5 लाख तक — ₹200
◆ 5 से ₹10 लाख के बीच — ₹400
◆ 10 लाख से ₹20 लाख तक — ₹500
●शिकायत (उपभोक्ता अदालत) में डाक द्वारा किसी व्यक्ति के द्वारा या स्वयं किसी व्यक्ति दर्ज कराई जा सकती है।
● अधिवक्ता की जरूरत नहीं होती है।
● शपथ पत्र या पक्के कागज की जरूरत नहीं होती है ।
* शिकायत के लिए अनिवार्य बातें :–
● उसमें शिकायतकर्ता का नाम व पूरा पता होना चाहिए।
●शिकायत के बारे में संपूर्ण तक होनी चाहिए।
● आरोपों के विषय में आवश्यक दस्तावेज होने चाहिए।

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