सामाजिक समझौता सिद्धांत एवं विकासवादी सिद्धांत

सामाजिक समझौता सिद्धांत एवं विकासवादी सिद्धांतसामाजिक समझौता सिद्धांत एवं विकासवादी सिद्धांत

सामाजिक समझौता सिद्धांत एवं विकासवादी सिद्धांत
प्रश्न 1. सामाजिक समझौता सिद्धांत की उत्पत्ति या विकास किस शताब्दी में हुआ?
उत्तर 17वीं व 18 वीं शताब्दी में ।
प्रश्न 2. सामाजिक समझौता सिद्धांत का उदय किस सिद्धांत के खंडन के परिणाम स्वरूप हुआ ?
उत्तर दैवीय सिद्धांत के ।
प्रश्न 3. संविदावादी विचारक कौन – कौन थे ?
उत्तर थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, व जीन जैक्स रूसो थे।
प्रश्न 4. थॉमस हॉब्स पर उसके समकालीन परिस्थितियों का प्रभाव था, समझाइए ?
उत्तर थॉमस हॉब्स इंग्लैंड का रहने वाला था। वह वहां के राजा चार्ल्स द्वितीय का शिक्षक था। उसके समय में चार्ल्स प्रथम और क्रोमबेल के नेतृत्व में संसद की सेनाओं के मध्य गृहयुद्ध हुआ। इस युद्ध से इंग्लैंड में अराजकता और अत्याचार का माहौल उत्पन्न हो गया।
फलत: जीवन पूर्णत: असुरक्षित और कष्टदायक हो गया। इंग्लैंड के इस जनजीवन की इस स्थिति में हॉब्स को निरंकुश राजतंत्र का प्रबल समर्थक बना दिया। इस तरह थॉमस हॉब्स पर उसके समकालीन परिस्थितियों का प्रभाव था।
प्रश्न 5. ‘ लेवियाथन ‘ पुस्तक के लेखक कौन थे ?
उत्तर थॉमस हॉब्स ।
प्रश्न 6. हॉब्स ने मानव स्वभाव एवं प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किस प्रकार किया ?
उत्तर * मानव स्वभाव :— हॉब्स ने मनुष्य के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन किया है। उसके अनुसार मनुष्य एक असामाजिक प्राणी है । वह स्वार्थी, अहंकारी और झगड़ालू प्राणी है । वह सदा शक्ति से स्नेह करता है और शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है। हॉब्स के अनुसार मनुष्य अपने कार्य पूरे करने के लिए छल कपट का आश्रय लेता है । झूठ, प्रपंच , शत्रुता उसके प्रमुख साधन होते हैं । हॉब्स के अनुसार मनुष्य में सद्गुण भी होते हैं, परंतु वे उसके स्वभाव के अंग नहीं होते।
* प्राकृतिक अवस्था :— हॉब्स. ने मनुष्य के स्वभाव के आसुरी लक्षणों का भयावह वर्णन किया है। शक्ति ही सत्य है , यह उस समय का सिद्धांत था । उस समय अत्याचार और मारकाट का बोलबाला था । प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य को शत्रु की दृष्टि से देखने लगा था। मनुष्य में न्याय और अन्याय का ज्ञान नहीं था। हॉब्स के अनुसार वहां कोई व्यवसाय ना था, कोई संस्कृति न थी , कोई विद्या न थी, कोई भवन निर्माण कला ना थी, ना कोई समाज था। मानव जीवन दीन , मलिन , पाशविक व अल्पकालिक था ।
प्रश्न 7. हॉब्स द्वारा उल्लेखित सामाजिक समझौते के बारे में बताइए ?
उत्तर * कारण :– जीवन व संपत्ति की इस असुरक्षा और मृत्यु के भय ने व्यक्तियों को इस बात के लिए प्रेरित किया, कि वे इस असहनीय प्राकृतिक अवस्था का अंत करने के उद्देश्य से एक राजनैतिक समाज का निर्माण करें।
* समझौता :– नवीन समाज का निर्माण करने के लिए सब व्यक्तियों ने मिलकर एक समझौता किया जिसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कहता है कि —
” मैं इस व्यक्ति और सभा को अपने अधिकार व शक्ति का समर्पण करता हूं, तुम भी अपने अधिकार और शक्ति को इस व्यक्ति या सभा को सौंप दोगें । और मेरे समान प्रत्येक कार्य का समर्थन करोगे।” इस प्रकार सभी व्यक्तियों ने एक व्यक्ति या सभा के प्रति अपने अधिकारों का पूर्ण समर्थन कर दिया। यह समझौता सामाजिक या राजनीतिक नहीं तथा समझौते में शासक या सभा समझौते का पक्षकार नहीं। इसकी स्थापना के पश्चात् मनुष्य को इसका विरोध करने की स्वतंत्रता नहीं है।
प्रश्न 8. हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं बताइए ?
उत्तर 1. समझौता सामाजिक और राजनीतिक दोनों हैं । अत: इससे एक साथ समाज की स्थापना शांति और व्यवस्था हेतु राज्य की उत्पत्ति होती है ।
2. समझौता व्यक्तियों के मध्य होता है । अतः शासक समझौते का पक्ष नहीं होता । वह निरंकुश होता है ।
3. मनुष्य अपने सभी अधिकार शासक को सौंपता है, केवल आत्मरक्षा का अधिकार ही उसके पास रहता है।
4. संप्रभु (शासक) का आदेश ही कानून होता है। अतः प्रजा को विद्रोह का अधिकार नहीं है।
प्रश्न 9. जॉन लॉक पर उसकी समकालीन परिस्थिति का प्रभाव किस प्रकार था?
उत्तर जॉन लॉक भी हॉब्स की तरह इंग्लैंड का रहने वाला था। उसके समय 1688 में इंग्लैंड में ”रक्तहीन या गौरवमई क्रांति” हुई थी । जिसके द्वारा निरंकुश शासक जेम्स द्वितीय को गद्दी से उतार कर उसके स्थान पर भी विलियम तथा मैरी को सीमित अधिकारों के साथ गद्दी पर बैठाया गया था। लॉक ने इस क्रांति का समर्थन किया और सीमित राजतंत्र को श्रेष्ठ शासन व्यवस्ता बताया । उसने प्रसिद्ध ग्रंथ ” ( टू ट्रिटाइजेज ऑन गवर्नमेंट )” लिखा। इस तरह लॉक पर उसकी समकालीन परिस्थिति का प्रभाव पड़ा ।
प्रश्न 10. लोक ने मानव स्वभाव व प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किस प्रकार किया।
उत्तर * मानव स्वभाव :– जॉन लॉक मनुष्य को एक सामाजिक और विवेकशील प्राणी मानता है वह अपने जीवन के निर्देश प्राकृतिक कानूनों से ग्रहण करता है लॉक के अनुसार मानव मूल रूप से अच्छा शांतिप्रिय नैतिक और नियम पालक है उसके अनुसार मानव स्वभाव प्रेम दया सहयोग और सहानुभूति आदि गुणों से युक्त होता है।
* प्राकृतिक अवस्था :– लॉक के अनुसार , प्राकृतिक अवस्था शांति, सद्भावना, पारस्परिक सहयोग और सुरक्षा की अवस्था थी। अधिकारों का उपयोग करते हुए सभी मनुष्य शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति आदि के प्राकृतिक अधिकार उस समय प्रचलित थे। प्राकृतिक कानून के अनुसार सभी अपना जीवन व्यतीत करते थे। उस समय का एक प्राकृतिक कानून था कि ” तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो , जिसकी अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो ।” इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था पूर्णत: नैतिक , सामाजिक और कर्तव्यबोध की अवस्था थी।
प्रश्न 11. लॉक की पुस्तक का नाम लिखो ?
उत्तर ” टू ट्रीटाइजेज ऑन गवर्नमेंट “
प्रश्न 12. जॉन लॉक ने समझौते के क्या कारण बताएं?
उत्तर लॉक के अनुसार , प्राकृतिक अवस्था अच्छी होने के बावजूद उसमें कुछ कमियां थी जो मुख्य रूप से तीन थी —
1. प्राकृतिक नियम स्पष्ट नहीं थे ।
2. नियमों की व्याख्या करने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश नहीं थे।
3. इन नियमों को लागू करने वाली कोई शक्ति नहीं थी।
प्रश्न 13. जॉन लॉक ने समझौते का स्वरूप किस प्रकार बताया ?
उत्तर लॉक के अनुसार सभी मनुष्य ने मिलकर दो समझौते किए। पहले समझौते में प्राकृतिक अवस्था का अंत कर एक समाज की स्थापना की गयी। दूसरा समझौता शासक (राजा) और शासित के मध्य हुआ, इसमें प्रजा द्वारा शासक को कानून बनाने, उनकी व्यवस्था करने और उनको लागू करने का अधिकार दिया गया । परंतु शासक की शक्ति पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया कि उसके द्वारा निर्मित कानून प्राकृतिक नियमों के अनुसार ही होने चाहिए।
प्रश्न 14. लॉक के समझौते की विशेषताएं बताइए ?
उत्तर 1. एक स्थान पर दो समझौते होते हैं पहले में समाज और दूसरे में राज्य का निर्माण होता है।
2. समझौते में सभी व्यक्ति अपने अधिकार समाज को सौंपते है, शासक को नहीं ।
3. समझौते में समाज और राज्य का कर्तव्य है कि वे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करें ।
4. राज्य का निर्माण मनुष्यों की इच्छा से हुआ है, वह जन सहमति का परिणाम है।
5. शासक समझौते का भागीदार है, उस पर समझौते की सारी शर्ते लागू होती है।
6. समझौते में एक सीमित और मर्यादित राजसत्ता की स्थापना होती है।
7. समझौता राज्य और शासन में अंतर स्पष्ट करता है। पहला स्थाई है जबकि दूसरा अस्थाई है । दोनों के कार्य अलग-अलग है। इस प्रकार यह सिद्धांत शक्ति विभाजन का समर्थन करता है।
8. अत्याचारी शासक के विरुद्ध क्रांति करने का अधिकार , यह जनता को देता है।
प्रश्न 15. लॉक के सिद्धांत का महत्व बताइए?
उत्तर 1. उसने प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का प्रतिपादन कर, उस पृष्ठभूमि को तैयार किया, जिस पर आधुनिक युग के मौलिक अधिकारों का भवन खड़ा है भवन खड़ा है।
2. जन सहमति के सिद्धांत का प्रतिपादन कर, उसने आधुनिक युग के बहुमत पर आधारित लोकतंत्र का विकास किया ।
3. लोक के सीमित राजतंत्र के सिद्धांत ने मॉन्टेक्यू के शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का मार्ग प्रशस्त किया।
4. इसके विचारों से उदारवादी विचारधारा को बल मिला।
प्रश्न 16. रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत को संक्षेप में समझाइए?
उत्तर * विचारों की पृष्ठभूमि :– जीन जैक्स रूसो (1712 से 1778) यह एक फ्रांसीसी विद्वान था। इसने अपने विचारों में जनतांत्रिक राज्य का समर्थन किया। इसने अपने जनतांत्रिक विचारों का प्रतिपादन करने के लिए अपने प्रसिद्धग्रंथ ” दी सोशल कॉन्ट्रैक्ट ” सामाजिक संविदा की रचना की । 1762 ईस्वी में इस रचना का प्रकाशन हुआ। स्वतंत्रता , समानता और भ्रातत्व के संदेश को मुखरित करने वाली 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति पर, इन विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा था।
* मानव स्वभाव :– रूसो मानव स्वभाव को निर्दोष और निष्पाप मानता है। उसके अनुसार स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता उसके स्वभाव के विशेष गुण हैं । वह घृणा, ईर्ष्या , चिंता , अहंकार, आदि दुर्गुणों से मुक्त होता है।
* प्राकृतिक अवस्था :– रूसों प्राकृतिक अवस्था को दो चरणों में बांटता है । प्रथम चरण में मनुष्य स्वार्थ और परमार्थ का ज्ञान न होने के कारण स्वतंत्र था । उसका जीवन सरल था, आवश्यकताएं सीमित थी। इस अवस्था में मनुष्य सुखी , संतुष्ट और स्वावलंबी था । दूसरा चरण रूसो के अनुसार यह प्राकृतिक अवस्था अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकी। धीरे-धीरे उसका पतन होने लगा । पतन का मुख्य कारण था , संपत्ति का उदय । इसने व्यक्ति को स्वार्थी बना दिया और प्राकृतिक अवस्था की अच्छाई को समाप्त कर दिया । फलत: स्वार्थ, हिंसा, कलह एवं द्वेष आदि का उदय हुआ ।
रूसो इस अवस्था की आलोचना करते हुए कहता है कि, मनुष्य जब पैदा होता है तब स्वतंत्र होता है।. लेकिन वह प्रत्येक स्थान पर जंजीरों में जकड़ा हुआ होता है। इस अवस्था में अशांत और बेचैन रहने लगा और इससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए साधन तलाशने लगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वे एक समझौते की ओर अग्रसर हुआ।
* समझौता :— प्रत्येक व्यक्ति समाज का सदस्य होता है । अतः समझौते के फल स्वरुप निर्मित समाज का अंग होने के कारण, इन अधिकारों को पुनः प्राप्त कर लेता है। व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से जो गँवाता है, समाज का सदस्य होने के कारण उसे पुनः प्राप्त कर लेता है । समझौते के फलस्वरुप जीवन की असुरक्षा , हिंसा अराजकता आदि समाप्त हो जाती है। और राज्य की उत्पत्ति होती है । रूसो प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक राज्य की कल्पना करता है। जिसने सारी शक्ति (संप्रभुता) समाज में निहित होती है।
* विशेषताएं :– 1. रूसो के अनुसार राज्य की उत्पत्ति में प्रत्येक ने सबके साथ अपने समस्त प्राकृतिक अधिकार और शक्ति सामान्य इच्छा को समर्पित कर दी । प्रत्येक व्यक्ति सामान्य इच्छा का सदस्य होने के कारण सामूहिक रूप से उसे प्राप्त कर लेता है ।
2. इस समझौते से व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अपितु व्यक्ति को सकारात्मक स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
3. समझौते से सामान्य इच्छा का निर्माण होता है। सामान्य इच्छा सदैव अच्छा करती है और जन कानून का स्रोत होती है।
4. रूसो सामाजिक समझौते का ही उल्लेख करता है राजनीतिक समझौते का नहीं। अत: सामान्य इच्छा पर आधारित संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाज की स्थापना होती है।
5. सामान्य इच्छा को मूर्त रूप देने वाली सरकार यदि निरंकुश होकर सीमाओं का अतिक्रमण करती है , तो उसे अपदस्थ किया जा सकता है ।
प्रश्न 17. रूसो की सामान्य इच्छा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर रूसों के दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व सामान्य इच्छा सिद्धांत है। सामान्य इच्छा ने लोक प्रभुता और प्रजातंत्र के मार्ग को प्रशस्त किया है। रूसो के अनुसार व्यक्ति की दो प्रकार की इच्छाएं होती है :–
1. यथार्थ इच्छा
2. आदर्श इच्छा
1. यथार्थ इच्छा :– यह वह इच्छा है जब व्यक्ति किसी विषय पर व्यक्तिगत हित या स्वार्थ भावना से सोचने का काम करें । यह इच्छा भावना प्रधान, स्वार्थी , संकुचित , पक्षपातपूर्ण, विवेकहीन है । यह परिवर्तनशील, अस्थिर और कामना प्रधान इच्छा है, यह अशुभ है ।
२. आदर्श इच्छा :– यह वह इच्छा है , जो संपूर्ण समाज का कल्याण करती है। इस इच्छा में व्यक्ति स्वयं के हित को सामाजिक हित का अंग मानता है। इसमें व्यक्तिगत हित पर सामाजिक हित की प्रधानता होती है। आदर्श इच्छा समाज प्रधान, ज्ञान युक्त, नि:स्वार्थ , व्यापक, विवेकपूर्ण और नैतिक इच्छा होती है। जहां तक सामान्य इच्छा का प्रश्न है, यह आदर्श इच्छाओं का योग मात्र है ।
प्रश्न 18. सामान्य इच्छा किस का योग है? आदर्श इच्छा या यथार्थ इच्छा?
उत्तर आदर्श इच्छा का ।
प्रश्न 19. रूसो की सामान्य इच्छा की पांच विशेषताएं बताइए ?
उत्तर 1. अखंडता :– सामान्य इच्छा में परस्पर विरोध नहीं होता, इसमें विभिन्नता में एकता पायी जाती है । ए.आर.लॉर्ड के अनुसार राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करती है और उसे बनाए रखती है।
2. अदेयता :– रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा अदेय है। इसका हस्तांतरण नहीं किया जा सकता। रूसों के अनुसार प्रतिनिधियों के माध्यम से इसे व्यक्त करना बहुमूल्य अधिकारों का हनन है।
3. स्थाई :– सामान्य इच्छा क्षणिक , भावात्मक आवेगों का परिणाम नहीं होती । अपितु मानव कल्याण की स्थाई प्रवृत्ति होती है।
4. विवेक पर आधारित :– सामान्य इच्छा का भावनाओं से कोई संबंध नहीं होता। यह तर्क और विवेक पर आधारित होती है । यह व्यक्तिगत स्वार्थ से भ्रष्ट नहीं होती ।
5. निरंकुश :– सामान्य इच्छा सर्वोच्च और निरंकुश होती है। यह व्यक्ति या व्यक्ति समूह, परंपराओं आदि से प्रतिबंधित नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 20. आलोचनाओं के बावजूद भी रूसो की सामान्य इच्छा का अपना ही महत्व है। स्पष्ट करो ?
उत्तर 1.रूसो की सामान्य इच्छा का विचार प्रजातंत्र के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि सत्ता का आधार जन स्वीकृति है। कानूनों के निर्माण में जनता का प्रत्यक्ष सहयोग होना चाहिए। सरकार सदैव जनता के प्रति उत्तरदाई होनी चाहिए । मैकाइवर कहते हैं कि ‘ सामान्य इच्छा का प्रयोग मात्र शासन को स्वशासन में परिणित कर देता है ।’
2. सामान्य इच्छा का सिद्धांत राष्ट्रवाद की प्रेरणा देता है । इसने इस धारणा को जन्म दिया कि यह समांतर एकता व सहचर्य आत्मीयता की भावना का जीवन श्रेष्ठ है।
3. यह सिद्धांत व्यक्ति और समाज दोनों को महत्व प्रदान करता है ।
4. यह सिद्धांत आंगिक एकता के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है।
प्रश्न 21. राज्य का विकास वादी सिद्धांत राज्य के विकास में विभिन्न तत्वों का क्रमिक विकास का परिणाम मानता है। संक्षिप्त में स्पष्ट करो ?
उत्तर राज्य की उत्पत्ति के संबंध में किसी भी सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया जा सकता। आधुनिक समय में इस बात को स्वीकार किया जाने लगा है कि राज्य का निर्माण नहीं किया गया, यह तो सतत विकास का परिणाम है।
डॉक्टर गार्नर ने कहा है ” कि राज्य न तो ईश्वर की सृष्टि है , ना वह उच्च कोटि के शारीरिक बल का परिणाम है । न किसी समझौते की कृति है , ना ही परिवार का विस्तृत रूप है। यह तो क्रमिक विकास से उदित ऐतिहासिक संस्था है।” राज्य के इस क्रमिक विकास में अनेक तत्वों ने सहयोग दिया है ,वह इस प्रकार है — मूल सामाजिक प्रवृत्ति, राजनैतिक चेतना, रक्त संबंध, धर्म , शक्ति एवं आर्थिक आवश्यकताएं ।
1. मूल सामाजिक प्रवृत्ति :– राजनीति विज्ञान के प्रसिद्ध लेखक अरस्तु ने कहा है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के बिना जीवित नहीं रह सकता । मानव की इस मूल सामाजिक प्रवृत्ति ने राज्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
2. रक्त संबंध :– हेनरी मेन ने लिखा है कि “समाज के प्राचीनतम इतिहास के आधुनिक शोध इस बात की ओर संकेत करते हैं कि, मनुष्य को एकता सूत्र में बांधने वाला तत्व रक्त संबंध ही था। रक्त संबंध ने समाज बनता है। और समाज से राज्य का निर्माण होता है । प्राचीन समय में रक्त संबंध माता और पिता से जाना जाता था।
3. धर्म :– रक्त संबंध के समान धर्म ने भी राज्य के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रक्त संबंध और राज्य एक सिक्के के दो पहलू हैं। धर्म ने आदिम युग में मनुष्य में पाशविकता की जगह आदर , आज्ञा पालन और नैतिकता का का भाव जगाया । राज्य और धर्म का संबंध आदिम समय से ही नहीं था, यह आज भी है। पाकिस्तान , बांग्लादेश, भारत, सऊदी अरब, अफगानिस्तान आदि में धर्म और राजनीति में गहरा संबंध देखा जाता है।
4. शक्ति :– राज्य के विकास में शक्ति का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। युद्ध शक्ति को व्यवहारिक रूप प्रदान करने वाला साधन था। युद्ध ने राजा को जन्म दिया । शक्ति से शासक के प्रति भक्ति के भाव जगे और भक्ति ने शासक को मजबूत बनाया और राज्य का विकास हुआ।
5. राजनैतिक चेतना :– राजनीतिक चेतना का तात्पर्य , राज्य की उत्पत्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रति जागरूकता है । मानव समाज जैसे-जैसे बढ़ता गया। उसकी आवश्यकताएं व जटिलताएं बढ़ती चली गयी। इन सभी का समाधान राजनैतिक चेतना के माध्यम से ही हुआ। वर्तमान समय में भी राजनैतिक चेतना राज्य के विकास का कारण है।
6. आर्थिक आवश्यकताएं :– राज्य की उत्पत्ति व विकास में आर्थिक विकास भी महत्वपूर्ण तत्व रहा है । आदिम काल में मानव ने शिकार कर जीवन यापन किया फिर पशुपालन उसके पश्चात कृषि से संपत्ति संग्रह हुआ, निवास बने । औद्योगिक विकास हुआ , जिसमें जेल, न्यायालय, पुलिस , कानून आदि बने और राज्य विकास करता चला गया।
* निष्कर्ष :– राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धांत ही वर्तमान में मान्य है। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि राज्य किसी समय विशेष की नहीं अपितु अनेक तत्वों के क्रमिक विकास का परिणाम है। यह अतीत से आज तक चला आ रहा है।

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