Rajya Sarkar राज्य सरकार

Rajya Sarkar राज्य सरकार

Rajya Sarkar राज्य सरकार

भारत गणराज्य 29 राज्यों ( प्रांतीय संघीय इकाइयों) और 9 केंद्र शासित संघ राज्य क्षेत्र (Union territories)का एक संघ ( Union)है।
भारत सरकार ही संघ या केंद्र सरकार ( Union government)के नाम से जानी जाती है।
केंद्र या भारत सरकार मतदान द्वारा तीन स्तरों की सरकार चुनते हैं — 1.शहरी क्षेत्र के नगरीय निकाय या ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं को।
2. अपने राज्य की सरकार को। और
3. संघ की संघ या केंद्र सरकार को ।
प्रत्येक सरकार का कानून बनाने एवं कर वसूलने एवं प्रशासन का अपना निर्धारित क्षेत्र होता है ।
सरकार नागरिकों की सुरक्षा , शिक्षा एवं चिकित्सा का उत्तर दायित्व निभाती है ।
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों में से चुनिंदा कुछ सदस्य इन सब कार्य को करने का फैसला करते हैं , कुछ अन्य लोग उन निर्णयों को लागू करते हैं और विवाद पैदा होने पर न्याय की व्यवस्था भी होती है।
राज्य सरकार में — 1.मुख्यमंत्री व मंत्री परिषद ( कैबिनेट ) बैठकों में नीतिगत फैसले लेते हैं।
2. अधिकारी (नौकरशाही) उन निर्णयों को लागू करते हैं।
3. उच्च न्यायालय सरकार व जनता के बीच के विवाद हल करता है ।
यह तीनों संस्थाएं नियम कानूनों के अनुसार ही कार्य करती है ।
* सरकार की शक्तियों का बंटवारा :—
संघ (केंद्र सरकार) व राज्य सरकार की शक्तियां संविधान के द्वारा बढ़ती हुई है। यह तीन प्रकार की सूचियों के अनुसार बांटी गई है ।
1. संघ सूची , 2. राज्य सूची और 3. समवर्ती सूची।
1. प्रथम सूची ‘संघ सूची’ या केंद्रीय सूची कहलाती है । इस सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार , रेलवे और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के 97 विषय शामिल है।
2. द्वितीय सूची ‘राज्य सूची’ कहलाती है । इस सूची में पुलिस, स्थानीय व्यापार , वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे स्थानीय महत्व के 66 विषय शामिल है।
3. तृतीय सूची ‘समवर्ती सूची’ कहलाती है। इस सूची में शिक्षा , वन, मजदूर – संघ, विवाह – विधि आदि 47 विषय शामिल है । इन विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती है। परंतु केंद्र के कानून को सर्वोच्चता प्रदान की गई है ।
अवशिष्ट विषयों की सूची में शेष विषयों पर कानून बनाने की शक्ति केंद्र सरकार को दी गई है । जिन्हें अवशिष्ट शक्तियां कहते हैं।
* राज्य सरकार का गठन :—
1. कार्यपालिका :–
*राजनीतिक कार्यपालिका —
राज्यपाल
मुख्यमंत्री व मंत्रीपरिषद्
* स्थाई कार्यपालिका
(सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी )
2. विधायिका
राज्यपाल
विधानसभा एवं विधान परिषद्
3. न्यायपालिका —
उच्च न्यायालय
अधीनस्थ न्यायालय
* राज्य सरकार के अंगों की विस्तृत जानकारी :–
* राजस्थान सरकार के तीन अंग है :–
1. कार्यपालिका 2. विधायिका (व्यवस्थापिका) और
3. न्यायपालिका
1. * कार्यपालिका :– यह दो प्रकार की है ।
1. स्थाई कार्यपालिका 2. राजनीतिक कार्यपालिका
1. स्थाई कार्यपालिका :– लोकसेवक जिन्हें सरकार लंबी अवधि के लिए नियुक्त करती है , जैसे की सचिव एवं अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी, उन्हें स्थाई कार्यपालिका कहते हैं।
ये लोकसेवक राजनीतिक कार्यपालिका के अधीन कार्य करते हुए उसके नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
2. राजनीतिक कार्यपालिका :– राजनीतिक कार्यपालिका जनता द्वारा निर्धारित अवधि के लिए निर्वाचित लोगों का निकाय होता है। यह राजनीतिक व्यक्ति होते हैं, जो सरकार चलाने के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेते हैं ।
१. राज्यपाल — राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है।राज्य सरकार के सभी कार्य राज्यपाल के नाम से ही किए जाते हैं।
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है । किंतु वे राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत तक अपने पद पर कार्य कर सकता है ।
२. राज्यपाल की नियुक्ति हेतु योग्यताएं :– भारतीय नागरिक जो 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो , किंतु वह किसी विधायिका का सदस्य ना हो, किसी सरकारी और लाभकारी पद पर कार्यरत ना हो , वह व्यक्ति राज्यपाल के पद पर नियुक्ति के योग्य होता है।
* राज्यपाल के कार्य एवं शक्तियां :–
1. कार्यपालिका संबंधित शक्तियां :–
यह वे कार्य हैं जिन्हें राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका के अंग के तौर पर संपादित करता है, जैसे कि —
राज्यपाल मुख्यमंत्री कौन नियुक्त करता है , और वह मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
राज्य की कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित होती है ।
राज्य के सारे कानून और सरकार के प्रमुख फैसले राज्यपाल के नाम से ही जारी होते हैं।
राज्य के सभी प्रमुख पदों पर नियुक्तियां राज्यपाल के नाम पर ही की जाती है। लेकिन वह इन अधिकारों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है।
राज्यपाल मंत्रिपरिषद् से किसी भी मामले पर सूचना मांग सकता है।
राज्यपाल समय-समय पर राज्य की कानून व्यवस्था की स्थिति की सूचना केंद्र सरकार को भेजता रहता है ।
2. राज्यपाल की विधायी शक्तियां :– यह वे कार्य हैं जिनका संपादन राज्यपाल राज्य की विधायिका के अंग के रूप में संपन्न करता है।
राज्यपाल राज्य विधायिका के सत्र बुलाता है , एवं प्रथम सत्र को संबोधित भी करता है ।
वह विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति प्रदान कर उन्हें कानून का दर्जा देता है।
राज्यपाल विधायिका के समक्ष बजट रखवाता है ।
राज्यपाल की स्वीकृति से ही धन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत होता है ।
3. राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियां :– यह वे शक्तियां हैं, जिनका प्रयोग राज्यपाल निर्वाचित सरकार के स्थान पर राज्य में राष्ट्रपति शासन होने की स्थिति में करता है।
4. राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां :– राज्यपाल किसी सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा को कम या स्थगित कर सकता है, और उनसे क्षमा भी कर सकता है।
* मुख्यमंत्री एवं मंत्री परिषद् :–
* मंत्रीपरिषद् :–
मुख्यमंत्री और उसके मंत्रियों के समूह को मंत्रिपरिषद् के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में मंत्रीपरिषद् राजधानी जयपुर में स्थित ‘सचिवालय भवन’ से राज्य के शासन का संचालन करती है।
सरकार के प्रत्येक मंत्रालय में मंत्री की सहायता के लिए सचिव होते हैं। वह नौकरशाह होते हैं।
वह मंत्री को सूचनाएं उपलब्ध करवाते हैं, और निर्णय लेने में मंत्री की सहायता करते हैं।
नौकरशाह मंत्रिपरिषद् के निर्णय को लागू करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
* मुख्यमंत्री :–
मुख्यमंत्री विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल (अथवा राजनीतिक दलों के गठबंधन ) का नेता होता है। वह मंत्रियों की सहायता से सरकार चलाता है।
उसकी राजनीतिक पार्टियां उसकी सहयोगी पार्टियों के विधायक मंत्री होते हैं ।
मुख्यमंत्री राज्य की मंत्रीपरिषद् का मुखिया होता है।
वास्तव में राज्य के शासन की सभी शक्तियों का प्रयोग मुख्यमंत्री व उसका मंत्रिमंडल राज्यपाल के नाम पर करता है।
मुख्यमंत्री व उसका मंत्रीमंडल (मंत्रीपरिषद्) विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होते हैं ।
विधानसभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त होने तक ही मुख्यमंत्री अपने पद पर रह सकता है।
* मुख्यमंत्री के प्रमुख कार्य :–
1.मंत्रियों के कार्यों का वितरण करना
2. विभिन्न विभागों के कार्यो की निगरानी व कार्यो में समन्वय करना
सभी मंत्री उसी के नेतृत्व में काम करते हैं।
3. वह मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
4. बहुमत दल का नेता होने के कारण मुख्यमंत्री विधानसभा में सदन के नेता के रूप में कार्य करता है।

2. राज्य विधायिका:–
राजस्थान राज्य की विधायिका ” एक सदनात्मक” है। जिसे ‘विधानसभा’ कहते हैं । यहां दूसरे सदन ‘विधानपरिषद्’ का गठन नहीं होता है।
बिहार , महाराष्ट्र , कर्नाटक , आंध्र प्रदेश , उत्तर प्रदेश,क्ष तेलंगाना एवं जम्मू कश्मीर राज्य में ” द्विसदनात्मक ” विधायिका है। वहां दूसरा सदन ‘विधानपरिषद्’ भी विद्यमान है।
* राजस्थान विधानसभा का गठन :–
विधानसभा राज्य की जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों ( विधायकों) की सभा है।
* विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र :– राजस्थान विधानसभा के गठन हेतु राज्य को 200 निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया है। ऐसा प्रत्येक क्षेत्र विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र कहलाता है । इनमें से 34 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति (SC )और 25 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति ( ST) वर्ग के लिए आरक्षित है।
* विधायक :–
प्रत्येक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता मतदान द्वारा अपना एक प्रतिनिधि चुनते हैं।
यह चुना गया प्रतिनिधि विधायक या विधानसभा सदस्य (एम.एल.ए.) कहलाता है।
राजस्थान की विधानसभा की सदस्य संख्या 200 निर्धारित है।
विधायक बनने के लिए आवश्यक है कि वह व्यक्ति भारतीय नागरिक हो, आयु 25 वर्ष से कम नहीं हो, वह संघ या राज्य में लाभ के पद पर ना हो , मानसिक रूप से स्वस्थ हो , और दिवालिया या पागल घोषित नहीं हो।
* विधान सभा की बैठक :–
विधानसभा की बैठकें वर्ष में कम से कम 3 सत्र में आयोजित की जाती है।
विधानसभा की बैठकों हेतु विधानसभा भवन राज्य की राजधानी ‘ जयपुर ‘में बनाया गया है। विधान सभा की बैठकों का संचालन विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष द्वारा किया जाता है।
विधायक किसी एक विधायक को विधानसभा अध्यक्ष तथा अन्य को विधानसभा उपाध्यक्ष चुनते हैं।
* विधानसभा के कार्य एवं शक्तियां :–
विधानसभा राज्य के नागरिकों की ओर से सर्वोच्च राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करती है।
संविधान सभा की बैठकों में निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं।
1. विधायी कार्य :–
कानून बनाने से संबंधित कार्य विधायी कार्य कहलाते हैं।
राज्य विधानसभा राज्य सूची में 66 विषयों पर एवं समवर्ती सूची के 47 विषय पर कानून का संशोधन, निर्माण या निरस्त कर सकती है । वह संघीय सूची के कुछ कानूनों के संशोधन की प्रक्रिया में भी भाग लेती है।
2. वित्तीय कार्य :–
राज्य सरकार के कार्यों का नियंत्रण विधानसभा करती है।
सरकार द्वारा प्रस्तावित बजट विधानसभा द्वारा स्वीकृत होने पर ही सरकार जनता से कर वसूली एवं व्यय कर सकती है।
3. सरकार पर नियंत्रण :– कार्यपालिका विधानसभा के प्रति उत्तरदाई हैं ।
सरकार को अपने समस्त कार्य पर उठाए गए प्रश्नों का उत्तर विधानसभा में देना पड़ता है ।
यदि विधानसभा सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट ना हो तो वह सरकार के खिलाफ ” अविश्वास प्रस्ताव ” पारित कर सकती हैं।
विधानसभा कार्यपालिका के संबंध में ‘निंदा प्रस्ताव ‘ भी ला सकती है ।
परिणामस्वरूप मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है।
4. निर्वाचन कार्य :– विधानसभा सदस्य राष्ट्रपति के तथा राज्यसभा सदस्यों का चुनाव करते हैं।
राजस्थान से 10 राज्य सभा सदस्य चुने जाते हैं।
विधानसभा सदस्य विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का भी चुनाव करते हैं।
* विधानपरिषद् का गठन एवं शक्तियां :–
विधानपरिषद् राज्य व्यवस्थापिका का “द्वितीय सदन” होता है।
यह एक स्थाई सदन है। इसके 1/3 सदस्य 2 वर्ष की समाप्ति पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं ।
इस सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
इनके सदस्यों की न्यूनतम संख्या 40 होती है।
ये सदस्य स्थानीय स्वशासन की ईकाईयों, शिक्षकों और विश्वविद्यालय स्नातकों के प्रतिनिधि होते हैं।
विधानपरिषद् साधारण विधेयक पर संशोधन प्रस्तावित कर सकती है , और अनुमोदन की प्रक्रिया को विलंबित कर सकती है।
धन विधेयक विधानपरिषद् द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
वर्तमान में राजस्थान राज्य में विधानपरिषद् विद्यमान नहीं है ।

3. न्यायपालिका :–
देश में विभिन्न स्तरों पर मौजूद न्यायालयों को सामूहिक रूप से ‘न्यायपालिका’ कहा जाता है।
न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र संस्था होती है।
भारतीय न्यायपालिका का सर्वोच्च न्यायालय ( supreme court) ‘ नई दिल्ली’ में स्थित है।
राज्यों की सबसे बड़ी अदालत उच्च न्यायालय होती है।
राजस्थान का उच्च न्यायालय (high court) ‘जोधपुर’ में स्थित है ।
इसकी एक खंडपीठ ( Bench) ‘जयपुर’ में भी स्थित है।
उच्च न्यायालय राज्य के न्याय प्रशासन को नियंत्रित करता है। उसके अधीन जिला एवं स्थानीय न्यायालय होते हैं ।
* उच्च न्यायालय निम्नांकित विवादों की सुनवाई करता है :–
1. राज्य के नागरिकों के बीच का विवाद
2. राज्य के नागरिक और सरकार के बीच उत्पन्न विवाद
3. अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील

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