नाटक का स्वरूप परिभाषा

नाटक का स्वरूप (परिभाषा)

नाटक का स्वरूप (परिभाषा)



पाणिनि के अनुसार, — “नाटक शब्द की व्युत्पत्ति ‘नट’ धातु से हुई मानी जाती है।
रामचंद्र गुणचंद्र के अनुसार, — ‘नाट्य दर्पण’ ग्रंथ में नाटक शब्द की व्युत्पत्ति ‘नाट’ धातु से हुई है ।
बेवर व मोनियर विलियम्स के मुताबिक ‘नट’ धातु ‘नृत’ धातु का प्राकृतिक रूप है।
मरकंड की ऐसी धारणा है कि ‘नृत’ धातु प्राचीन है जबकि ‘नट’ धातु का प्रयोग बाद में हुआ है।
इस प्रकार (नट व नृत्य) दोनों धातु का प्रयोग ऋग्वैदिक काल से होता आ रहा है ।
सायण ने ‘नट’ का अर्थ ‘व्याप्नोति तथा ‘नृत्त’ का अर्थ ‘गात्र विक्षेपण’ बताया है।
भरतमुनि के अनुसार, ”संपूर्ण संसार के भावों का अनुकीर्तन ही नाट्य है।”
दशरूपककार ने नाटक के लिए बताया है — “अवस्थानुकृतिनाट्यम्”
धनिक ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है कि – “काव्य में नायक की जो अवस्थाएं बताई गई है उनकी एकरूपता जब नट अभिनय के द्वारा प्राप्त कर लेता है तब वही प्राप्ति नाट्य कहलाती है।



अभिनय चार प्रकार का बताया गया है –
1. वाचिक – (वचनों के द्वारा अभिनय किया जाता है।)
2. आंगिक – (भुजा आदि अंगों के द्वारा अभिनय किया जाता है।)
3. सात्विक – (स्तंभ, स्वेद आदि भावों का अभिनय होता है।) और
4. आहार्य – ( वेश, रचना आदि के द्वारा किया गया अभिनय।)
* “सिद्धांत कौमुदी” में नाट्य की उत्पत्ति ऐसी बताई गई है — “नट नृतौ। इत्यमेवपूर्वमपि पठितम्। तत्रांगविक्षेप:। पूर्व पठितस्य नाट्यमर्थ:। यत्कारिष नटव्यपदेश:।
अतः इस प्रकार, नाट्य शब्द ‘नट’ धातु से बना है तथा इसके अर्थ में नृत्य ( गात्र विक्षेपण) और अभिनय दोनों आ जाते हैं।
अंग्रेजी में नाटक के लिए ‘ड्रामा’ शब्द आता है।
ड्रामा का ग्रीक में अर्थ है – ‘सक्रियता’ ।



एश्लेड्यूकस में अपने इंग्लिश ग्रंथ ‘ड्रामा’ में लिखा है कि,- ड्रामा शब्द ग्रीक में सक्रियता का वाचक होता है। इस शब्द की व्युत्पत्ति से यह अंतर सामने आया कि भारत में अनुकरण व अभिनय को नाटक का प्रमुख तत्व माना गया है। और पाश्चात्य देशों में सक्रियता को इसका प्रमुख उपादान माना गया है।



नाटक का स्वरूप प्रस्तावना 

error: Content is protected !!