मलिक मोहम्मद जायसी
* प्रस्तावना :- हिंदी का सूफी काव्य फांसी सूफी काव्य तथा इस्लाम से प्रेरित होते हुए भी भारतीय था सूफी शब्द रूप से बना है जिसका अर्थ पवित्र और सफेद ऊन है सूफी संत सफेद मूंगा पहनते थे और वैभवशाली जीवन के विरोधी थे सूफियों के अनुसार मोहम्मद साहब को ईश्वर से दो प्रकार की वाणी या प्राप्त हुई थी इन ए सकीना ग्रंथ ग्रंथ इस ज्ञान जो कुरान शरीफ में संग्रहित है दूसरी इनमें सीना जो हृदय में नहीं थी सूफियों ने दिल मे सीना को अपनाया सूफी काव्य का प्रारंभ इरान में 11 वीं शताब्दी में हुआ और 18 वीं शताब्दी में समाप्त हो गया सूफी काव्य में रहस्यवाद ई भावना भी आई रहस्य भावना के माध्यम से कवियों ने मनुष्य की एकता का प्रतिपादन किया हिंदी सूफी कवियों की जमीन भारतीय है जबकि दक्षिणी हिंदी के सूफी कवियों की जमीनी रानी है हिंदी सूफी कवियों ने भारत में लोक प्रचलित कहानियों को अपनाया जबकि दक्षिण हिंदी कवियों ने ईरानी लोक कथाओं को अपनाया लौकिक प्रेम की इन कहानियों के सहारे सूफियों ने उससे अलौकिक प्रेम का आभास दिया जो सूची साधना के मूल में है उनका रंग इस्लामी और ढंग की रानी है हिंदी सूफी कवियों ने अपने जनपद की रीति नीति मौसम ऋतु वर्णन छंद कथानक रूढ़ियां आदि को इस तरह अपनाया कि उनका काव्य पूर्ण रूप से भारतीय बन गया इंटरव्यू में सर्वश्रेष्ठ कवि मलिक मोहम्मद जायसी है।
मलिक मोहम्मद जायसी का जीवन परिचय
* जन्म :-
मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म जायस नगर मोर स्थानों के अनुसार जिला रायबरेली में जायस नगर में माना इनका जन्म हुआ था इसलिए यह जायसी कहलाए सुधाकर द्विवेदी और डॉक्टर ग्रियर्सन ने निम्न पंक्तियां उद्धृत की है जायनगर मोर स्थानों कहां आई कवि किंग खान दहा दिवस 10 पाहुणे आए इनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज या मलिक राजे अशरफ था बाल्यकाल में ही उनके माता पिता की मृत्यु होने के कारण वे साधुओं और फकीरों की संगत में रहने लगे अंतर साक्षी के द्वारा स्पष्ट है कि मोहन मलिक मोहम्मद जायसी कुरूप एक नेत्रहीन प्रथा एक का नृत्य थे शीतला के प्रकोप से उनकी दशा हुई थी जायसी के नागमती के बारहमासी के दोहे पर अमेठी नरेश बहुत प्रसन्न हुए थे कवन जो बिग सा मानसर बिन जल गए सुखाय रूखी बेली फिर पल्लू है जो पीयूसी के आए इनका प्राण आंत अमेठी के पास आसपास के जंगलों में एक शिकारी के तीर से हुआ अमेठी नरेश ने जायसी की यहीं पर एक समाधि बनवा दी जो अब भी मौजूद है ।
* जन्म तिथि :–
जायसी की जन्म तिथि संवत् का कोई निश्चित उल्लेख नहीं है।.उन्होंने आखिरी कलाम में लिखा है – ” भा अवतार मोर नौ सदी ।तीस बरिस ऊपर कवि बदी ।” अतः उनका जन्म संभवत: 800 हिजरी और 900 हिजरी के बीच सन् 1397 ईस्वी और 1494 ईस्वी के बीच हुआ होगा और उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था के बाद काव्य रचना प्रारंभ की थी । ‘पद्मावत’ का रचनाकाल उन्होंने 947 हिजरी अर्थात् 1540 ई. बतलाया है। पद्मावत के अंतिम अंश के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वृद्ध हो चुके थे। पद्मावत में उन्होंने सुल्तान शेरशाह सूरी (सन् 1540 – 45 ई. ) तथा आखिरी कलाम में मुगल बादशाह बाबर ( सन् 1526 से 30 ईसवी ) के नाम के रूप में साक्ष्य अवश्य दिए हैं जिससे उनका इनके समकालीन होने का पता चलता है। इस प्रकार कवि के जन्म के संबंध में केवल अनुमान ही लगाया गया है, निश्चित तिथि तथा संवत् नहीं बताया गया है।
* जन्म स्थान :–
जायसी के जन्म के संबंध में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता । केवल जायस में उनके रहने का पता अवश्य लगता है । शायद वे जायस में किसी दूसरे स्थान से आ कर रहे थे।
जो निम्न पंक्तियों से स्पष्ट है :-
“जायस नगर मोर अस्थानू । नगरक नाँव आदि उदियानू ।।
तहाँ दिवस दस पहुने आएऊँ। भा वैराग बहुत सुख पाएऊँ ।।
जायस में भी अतिथि रूप में आए थे परंतु वही बाद में रहने लगी लगे ।
* विवाह :–
कुछ विद्वानों का अनुमान है कि जायस नगर में उनकी ससुराल थी। शायद उनका विवाह जायस में हुआ था। जायसी एक आंख से काणे थे और उन्हें एक कान से सुनाई भी नहीं देता था । वे बहुत कुरूप थे और उनके कुरूप चेहरे को देखकर लोग हँसते थे । उन्होंने इस संबंध में कहा है :-
” मुहम्मद बाई दिसि तजी एक सरवन एक आँखि। एक नैन कवि मुहमदी गुनी ! सोई विमोहा जेइ कवि सुनी ।।
किंवदंतियों के अनुसार जायसी का विवाह भी हुआ था और उनके पुत्र मकान के नीचे दबकर मर गए थे ।
* गुरु :–
पद्मावत में उन्होंने अपने गुरु की और पंथ की चर्चा करते हुए लिखा है :-
सैयद असरफ पीर पियारा । जेइ मोहि पंथ दिन्ह उजियारा ।।
पा -पाएउँ गुरु मोहिदी पीता । मिला पंथ सो दरशन दीठा।
अखरावट में उन्होंने लिखा है :-
कही सरीअत चिस्ती पीरू । उघरी असरफ औ जँहगीरू ।।
अशरफ और गुरु मोहिदी सूफियों की चिश्ती परंपरा के फकीर थे। जायसी मोहम्मद निजामुद्दीन औलिया की शिष्य परंपरा में थे । वे महदी शेख बुरहान द्वारा विशेष प्रभावित थे । परवर्ती रचनाओं से स्पष्ट हो गया कि महदी केवल पद था ।
* रचनाकार का व्यक्तित्व :–
हिंदी साहित्य में जायसी का महत्व इसलिए सर्वाधिक है कि उन्होंने हिंदू – मुस्लिम द्वंद के प्रश्न को विषय वस्तु के रूप में रचनात्मक स्तर पर ग्रहण किया। उन्होंने प्रेम और नियति के समक्ष अपने धर्म में आस्था रखते हुए इस द्वंद नंकी निरर्थकता को लोक भाषा में संप्रेषित किया । अपनी कृति पद्मावत में वह यह प्रतिपादित करते हैं कि जीवन की सार्थकता मानवीय प्रेम है। प्रेम ही सार तत्व है। संघर्ष की अंतिम परिणति तो निरर्थकता में सिद्ध होती है। वे ऐसा प्रेम चाहते हैं जो मनुष्य को ही बैकुंठी बना दे। जायसी यह बात भली – भांति देख – समझ चुके थे कि तुर्की , अरबी हिंदुस्तानी आदि जितनी भी भाषाएँ हैं अगर उनमें प्रेम मार्ग का वर्णन है तो वह सभी रचनाएँ पाठकों श्रोताओं के द्वारा सराही गई हैं। उन्होंने कहा है – “फूल मरै, पै मरै न बासू” । जायसी ने काव्य संरचना की ऐसी पद्धति विकसित की है जो ‘मुख देखी’ की जगह आँखों में आँसू भर आने की विवशता उत्पन्न कर देती है – जेइ मुख देखा तेइ हँसा, सुना तो आए आँसू। जैसे शेरशाह ने उनकी कुरूपता का उपहास किया तो उन्होंने उत्तर दिया – ” मोहि का हँससि, के कोहरहि ? अर्थात तुम मुझ पर हंसे हो अथवा उस कुम्हार (ईश्वर) पर जिसने मुझे बनाया है? इस पर शेरशाह अत्यंत लज्जित हुए और इनका अत्यधिक सम्मान किया। जिसने भी उनकी यह कविता सुनी उनकी आंखों में आंसू आ गए ।
* रचनाएँ :-
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने जायसी के केवल तीन ग्रंथों का उल्लेख किया है:- पद्मावत, अखरावट , आखरी कलाम । आधुनिक शोध के द्वारा चित्ररेखा , कहरनामा और कान्हावत तीन ग्रंथों को भी उनकी रचना माना जाता है । परंतु उनकी ख्याति का आधार ‘पद्मावत’ है जो प्रेमाख्यानक काव्य है। जो अवधी भाषा में लोक प्रचलित कथानक के आधार पर फारसी की मसनवी शैली में रचित है। जायसी की सभी रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। पद्मावत को आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने जायसी की अंतिम रचना कहा है।