महासागर – उच्चावच तापमान लवणता

महासागर – उच्चावच तापमान लवणता

महासागर : उच्चावच , तापमान एवं लवणता
★ परिचय :– महासागरों की औसत तथा वास्तविक गहराई महाद्वीपों की औसत तथा वास्तविक ऊँचाई से कहीं अधिक है। महाद्वीपों की औसत ऊंचाई 840 मीटर है , जबकि महासागरों की औसत गहराई 3808 मीटर है ।
स्थल के ऊपर स्थित सबसे ऊंचा शिखर ‘माउंट एवरेस्ट’ जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर है । जबकि महासागरों का सबसे गहरा गर्त ‘मेरियाना ट्रेंच’ (प्रशांत महासागर) की गहराई 11033 मीटर है।
★ महासागरीय उच्चावच :– जिस प्रकार धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियाँ जैसे — पर्वत , पठार , मैदान पाए जाते हैं । उसी प्रकार समुद्र तल के नीचे भी पर्वत , पठार , मैदान तथा गर्त पाए जाते हैं इसे महासागरीय उच्चावच कहते हैं । इनके निर्माण के लिए चार प्रमुख प्रक्रियाएँ उत्तरदाई हैं :–
1. विवर्तनिकी क्रिया
2. ज्वालामुखी 3. अपरदन , 4. निक्षेपण
महासागरीय उच्चावच को प्रथम श्रेणी के उच्चावच कहते हैं । महासागरीय उच्चावच को चार भागों में बांटा गया है:–
1. महाद्वीपीय मग्न तट
2. महाद्वीपीय मग्न ढाल
3. महासागरीय मैदान
4. महासागरीय गर्त
1. महाद्वीपीय मग्न तट :– यह महाद्वीपों का वह भाग है, जो समुद्र में डूबा होता है । महाद्वीपीय मग्न तट कहलाता है। इसकी औसत ऊंचाई गहराई 100 फैदम तथा ढाल 1 डिग्री से 3 डिग्री के मध्य होता है । यह महासागरों के कुल क्षेत्रफल का 7.6 प्रतिशत भाग है। यह अनेक प्रकार के खनिज, मछलियाँ , पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस आदि पाए जाते हैं।
2. महाद्वीपीय मग्न ढाल :– यह महासागरीय नितल में मग्न तट तथा मैदान के मध्य स्थित भाग हैं। यहां ढाल अचानक तीव्र हो जाता है। इसकी गहराई 3600 से 8100 मीटर के मध्य, ढाल 2 डिग्री से 5 डिग्री होता है। यह महासागर के कुल क्षेत्रफल का 8.5% भाग है।
3. महासागरीय मैदान :– मग्न ढाल के समाप्त हो जाने पर समप्राय मैदान शुरू होता है , जिसे महासागरीय मैदान कहते हैं। इसका ढाल बहुत कम होता है। यह महासागर के कुल क्षेत्रफल का 40% भाग (सर्वाधिक भाग) होता है।
3. महासागरीय गर्त :– महासागरीय नितल पर पाए जाने वाली सबसे गहरी खाईयाँ महासागरीय गर्त कहलाती हैं। आकार के आधार पर इसे दो भागों में बांटा गया है :–
1. खाईयाँ
2. द्रोणीयाँ
इसे महासागरीय केनियन भी कहते हैं। प्रशांत महासागर में विश्व का सबसे गहरा गर्त “मेरियाना ट्रेंच” (11033 मीटर) गहरा है । हिंद महासागर में “सुंडा” गर्त, अंध महासागर में ” प्यूटोरिको ” तथा “रोमांशे” गर्त स्थित है।
* महासागरीय स्थलाकृतियाँ :– स्थल के ऊपर पाए जाने वाले पर्वत , पठार, मैदान, घाटियाँ आदि स्थल स्वरूप को स्थलाकृति कहते हैं। विश्व के महासागरों में एक समान स्थलाकृतियाँ नहीं पाई जाती हैं। प्रमुख महासागरों की स्थलाकृतियाँ निम्न प्रकार है —
1. प्रशांत महासागर :– विश्व का सबसे बड़ा महासागर है। यह पृथ्वी के एक तिहाई 33% भाग पर फैला है । इसका आकार त्रिभुजाकार, त्रिकोणीय है। इसकी पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 18000 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण लंबाई 16740 किलोमीटर है । महासागर में 20,000 से अधिक द्वीप हैं। इसमें विश्व का सबसे गहरा गर्त “मेरियाना ट्रेंच” 11033 मीटर है ।
2. अटलांटिक (अंध) महासागर :–
इस महासागर की आकृति अंग्रेजी “S ” अक्षर के समान है। यह महासागर उतरी अमेरिका , दक्षिण अमेरिका , यूरोप , तथा अफ्रीका महाद्वीपों के मध्य स्थित है।
इस महासागर को दो भागों में बांटा गया है —
1. उत्तरी अटलांटिक , 2. दक्षिणी अटलांटिक
उत्तरी अटलांटिक की चौड़ाई 5400 किलोमीटर है। तथा दक्षिणी अटलांटिक की चौड़ाई 9600 किलोमीटर है। इस महासागर में भूमध्य सागर , उत्तरी सागर , मैक्सिको की खाड़ी, बिस्के के की खाड़ी, तथा कैरिबियन सागर , काला सागर आदि स्थित है ।
3. हिंद महासागर :– इस महासागर का आकार अंग्रेजी के “M” अक्षर के समान है । यह एशिया , अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया के मध्य स्थित है। इस महासागर में स्थित गर्त का नाम ” सुंडा गर्त ” है।
4. आर्कटिक महासागर यह उत्तरी ध्रुव पर स्थित महासागर है । अभी तक इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं है । क्योंकि यह महासागर बर्फ से ढका है। यहां नार्वे सागर , पूर्वी साइबेरिया सागर तथा ग्रीनलैंड सागर स्थित है।
★ महासागरीय तापमान :–
महासागर के जल का तापमान का प्रमुख स्त्रोत सूर्य है। सूर्य से ही ताप पाकर महासागरीय जल गर्म होता है। महासागरीय जल का तापमान , महासागर में रहने वाले जीवों, वनस्पति तथा तटवर्ती स्थल की जलवायु को प्रभावित करता है।
★ महासागरीय जल के तापमान को ( पृथ्वी के तापमान को )प्रभावित करने वाले कारक निम्न है :–
1. अक्षांश
2. जल व स्थल का असमान वितरण
3. दिन की अवधि
4. वायुमंडल की स्वच्छता
5. सूर्य से पृथ्वी की दूरी
6. सौर कलंकों की संख्या
7. समुद्री धाराएं
★ महासागरीय तापमान का वितरण :– दो भागों में बांटा गया है —
1. क्षैतिज वितरण :– महासागर के तापमान का वितरण अक्षांश के अनुसार क्षैतिज वितरण कहलाता है। निम्न अक्षांशों में महासागरीय जल का तापमान अधिक तथा उच्च अक्षांशों में कम पाया जाता है। निम्न अक्षांशों से (भूमध्य रेखा से) उच्च अक्षांशों (ध्रुवों) की ओर बढ़ने पर महासागरीय जल का तापमान घटता जाता है । तापमान गिरने की दर 1/2℃ प्रति अक्षांश होती है ।
2. लंबवत वितरण :– महासागरीय जल का सतह से गहराई में तापमान के वितरण को लंबवत वितरण कहते हैं । महासागर में सतह पर अधिक तापमान पाया जाता है , क्योंकि सूर्य की किरणें 25 मीटर की गहराई तक पहुंच पाती हैं । फिर धीरे-धीरे तापमान 2000 मीटर की गहराई तक गिरता है, तथा फिर तापमान के गिरने की दर कम हो जाती है, क्योंकि अधिक गहराई में महासागर के जल को पृथ्वी की तली से तापमान मिलता है।
★ महासागरीय लवणता :– महासागरों में प्रति 1000 ग्राम जल में घुले ठोस पदार्थों की मात्रा को महासागरीय लवणता कहते हैं । इसे ( °/1000 ग्राम) प्रतिशत के रूप में प्रदर्शित किया जाता है । महासागरों की औसत लवणता 35% तथा 35/1000 है। या 1000 ग्राम जल में 35 ग्राम लवण उपस्थित है (महासागरों में 3.5% लवणता है) ।
★ महासागरों में पाए जाने वाले लवण निम्न है :–
1. सोडियम क्लोराइड (77.8%) सर्वाधिक मात्रा
2. मैग्नेशियम क्लोराइड ( 10.9%)
3. मैग्निशियम सल्फेट
4. कैलशियम सल्फेट,
5. पोटेशियम सल्फेट
★ महासागरीय जल की लवणता को प्रभावित करने वाले कारक :–
1. वाष्पीकरण, 2. वर्षा द्वारा जल की आपूर्ति
3. नदी के जल का आगमन
4. प्रचलित पवनें , 5. महासागरीय धाराऐं
6. महासागरीय जल का संचरण
1. वाष्पीकरण :– वाष्पीकरण तथा लवणता में सीधा संबंध होता है। वाष्पीकरण अधिक होने पर उन क्षेत्रों में अधिक लवणता पाई जाती हैं तथा जिन क्षेत्रों में वाष्पीकरण कम होता है, वहां लवणता कम पाई जाती हैं ।
2. नदी द्वारा जल की आपूर्ति :– नदियाँ सागरों में अपने साथ लवण भी लाती हैं । लेकिन उसमें स्वच्छ जल की मात्रा अधिक होती है, जिस कारण जिन क्षेत्रों में नदियों द्वारा अधिक जल लाया जाता है। उन तटीय क्षेत्रों में लवणता कम पाई जाती है । तथा महासागरों के मध्य में लवणता अधिक पाई जाती हैं।
3. वर्षा द्वारा जल की आपूर्ति :– जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है। वहां लवणता कम पाई जाती हैं। इसके विपरीत जहां वर्षा कम होती है वहां लवणता अधिक पाई जाती हैं। भूमध्य रेखा पर वाष्पीकरण अधिक होने के बावजूद वहां लवणता कम पाई जाती हैं। क्योंकि वहां वर्षा द्वारा जल की आपूर्ति अधिक होती हैं।
4. प्रचलित पवनें :– उष्ण तथा शुष्क क्षेत्रों में महासागरों की ओर गरम पवनें चलने से वाष्पीकरण अधिक होता है । वहां लवणता अधिक पाई जाती हैं। इसके विपरीत शीत तथा आर्द्र क्षेत्रों से सागर की ओर ठंडी पवनें चलती है। जिससे वाष्पीकरण कम होता है, वहां लवणता कम पाई जाती है ।
5. महासागरीय धाराऐं :– जिन क्षेत्रों में गर्म धाराऐं पहुंचती है , वहां वाष्पीकरण अधिक होने से लवणता अधिक पाई जाती है। तथा जहां ठंडी धाराऐ पहुंचती है , वहां वाष्पीकरण कम या नहीं होने से वहां लवणता कम पाई जाती हैं।
6. महासागरीय जल का संचरण :– जिन क्षेत्रों में महासागर का खारा जल पहुंचता है , वहां लवणता अधिक हो जाती है। इसके विपरीत जहां महासागर का खारा जल नहीं पहुंचता है, वहां लवणता कम हो जाती है ।
नोट :–
★ समलवणता रेखा :– मानचित्र पर वह काल्पनिक रेखा जो समान लवणता वाले क्षेत्रों को मिलाकर खींची जाती है , वह समलवणता रेखा कहलाती है ।
★ अधिक लवणता वाले स्थान :– निम्न हैं —
1. टर्की की वान झील (330/1000 ग्राम)
2. मृत सागर (238°/1000 ग्राम)
3. कैस्पियन सागर (170°/1000 ग्राम)
★ कम ( न्यून) लवणता वाले क्षेत्र :– निम्न हैं —
1. फिनलैंड की खाड़ी (2°/1000 ग्राम)
2. बाल्टिक सागर ( 15°/1000 ग्राम)
3. काला सागर ( 18°/1000 ग्राम)
★ आयनरेखीय क्षेत्रों (मध्य अक्षांशों) में सर्वाधिक लवणता (36°/1000 ग्राम ) पाई जाती हैं।
★ वस्तुनिष्ठ प्रश्न :–
प्रश्न 1. पृथ्वी के कितने प्रतिशत भाग पर जल है?
उत्तर 71%।
प्रश्न 2. महाद्वीपों की औसत ऊंचाई कितनी है?
उत्तर 840 मीटर।
प्रश्न 3. समुद्र के 1 किलोग्राम जल में कितनी लवणता पाई जाती है ?
उत्तर 35 ग्राम।
प्रश्न 4. मेरियाना ट्रेंच कहां पर स्थित है?
उत्तर प्रशांत महासागर में ।
प्रश्न 5. महासागरीय जल को उष्मा कहां से प्राप्त होती है?
उत्तर सूर्य से।

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