त्रयोदश पाठ – हिमालय:

* त्रयोदश पाठ – हिमालय: *
भावार्थ:
संदर्भ : – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक रुचिरा के हिमालय: नामक अध्याय से ली गई है। इसके माध्यम से महाकवि कालिदास हमें हिमालय की सुंदरता के बारे में बता रहे हैं।
भावार्थ: :- भारत के उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मा के रहने योग्य हिमालय नामक पर्वतों का राजा स्थित है। भारत के दक्षिण में दोनों ओर महासागरों का फैला हुआ जल है। उसमें से भारत एक पैमाने की तरह निकला हुआ दिखाई देता है। ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी को नापने के लिए से बनाया गया है ।
भावार्थ: :- हिमालय रत्नों की खान माना जाता है लेकिन उसका एक दोष यह है कि वह बर्फ का होने के कारण पिघलता रहता है । लेकिन फिर भी बर्फ अपने साथ हिमालय की सुंदरता को बाहर नहीं ले जा सकती है। जिस प्रकार चाँद में दाग होने पर भी चंद्रमा अपनी सुंदरता से उस दाग को छुपा देता है, उसी प्रकार हिमालय का दोष भी उसकी सुंदरता में छिप जाता है।

भावार्थ: :– भारत के समुद्रीय तटों से पानी लेकर बादल विचरण करते हुए मध्य भाग तक पहुँचते हैं और वहाँ पर बारिश कर देते हैं। तेज बारिश से घबराकर मध्य भाग की तपस्या लीन साधु, सन्यासी हिमालय की शरण में चले जाते हैं और वहां जाकर अपनी तपस्या पूरी करते हैं ।
भावार्थ: :- हिमालय की तलहटी में रहने वाले हाथियों के झुंड की कनपट्टी पर चलने वाली खुजली को मिटाने के लिए वे उन्हें देवदार के पेड़ों पर रगड़ते हैं , रगड़ने के कारण देवदार में सुगंधित दूध के समान पदार्थ बहने लगता है, जो हिमालय का पूरा वातावरण सुगंधित कर देता है ।
भावार्थ: :- दिन का उजाला होने पर उल्लू अंधेरे में छुप जाता है। ठीक उसी प्रकार सूर्य के आने पर अंधेरा गायब हो जाता है । वैसे ही महान व्यक्तियों की शरण में आकर बूरे व्यक्ति अपने बुराइयाँ छोड़ देते हैं।

HOME

NOTESJOBS.IN

error: Content is protected !!