कक्षा 7 पाठ 10
लैंगिक समाज एवं संवेदनशीलता
कक्षा 7 पाठ 10 लैंगिक समाज एवं संवेदनशीलता
* माता हर बालक की प्रथम गुरु होती है।
नारी ने अपने त्याग , सहिष्णुता , क्षमा, प्रेरणा, दया, प्रेम अपनी ममता से समाज को समुन्नत किया है।
* प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति :–
इस काल में भारत में नारी की स्थिति सुखद थी।
स्त्री – पुरुष और बालक – बालिकाओं का समान महत्व था । प्राचीन काल के लिए दोनों को समान महत्व दिया गया है।
प्राचीन काल में गार्गी , मेत्रैयी , लोपामुद्रा आदि विदुषियाँ प्रसिद्ध थी । जो पुरुषों के साथ षास्त्रार्थ में भाग लेती थी । उन्होंने अनेक वैदिक ऋचाओं की रचना की।
महिलाएं राजकार्य और युद्धों में भी भाग लेती थी।
राजतरंगिणी ग्रंथ में उल्लेख है कि सुगंधा, दिद्दा, और कोटा नामक महिलाओं ने बहुत समय तक कश्मीर में शासन का संचालन किया था ।
* मध्यकाल में नारी की स्थिति :–
इस काल (मध्यकाल) में भारतीय नारी की पारंपरिक स्थिति में गिरावट आ गई थी। शिक्षा , स्वास्थ्य और अन्य मामलों में बालक – बालिकाओं के बीच अंतर किया जाने लगा था । अत: उसे शिक्षा से वंचित रहना पड़ा ।
उसे घरेलू कार्य की जिम्मेदारियों तक ही सीमित कर घर की चारदीवारी में ही रहने को बाध्य कर दिया गया।
बाहरी आक्रमणों तथा भारत में युद्ध के कारण आर्थिक व सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई तथा पुरुषों का वर्चस्व समाज में बढ़ गया।
बाल विवाह , सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, जैसी अनेकों कुप्रथाओं से स्त्री को पीड़ित होना पड़ा । स्त्री की पुरुष पर निर्भरता बढ़ती गई । अतः महिलाओं की स्थिति कमजोर हो गई ।
इस काल में दुर्गावती, अहिल्याबाई और 19वीं शताब्दी में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी साहसी महिलाओं में अपने राज्य का शासन – संचालन करते हुए शत्रु से लोहा लिया। भक्ति मति मीराबाई ने जनमानस पर बहुत ही व्यापक प्रभाव डाला था।
* 19 वी सदी के समाज सुधार और नारी की
स्थिति :—
19वीं शताब्दी में समाज – सुधारको ने नारी की स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयास किए :–
राजा राममोहन राय ने सती प्रथा पर रोक लगाई और सती प्रथा के विरुद्ध कानूनी प्रतिबंध लगवाया।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के समर्थन में जागरूकता पैदा की और कानून भी बनाए।
स्वामी दयानंद सरस्वती व स्वामी विवेकानंद ने महिला शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किए ।
महात्मा ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई फूले ने भी नारी- उत्थान के लिए कार्य किये।
बीसवीं (20वीं) शताब्दी में महिला आंदोलन ने जोर पकड़ा। जिसने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
* लिंगभेद :– पुरुष नारी को नारी होने के कारण हीन मानता है। तथा स्वयं के को श्रेष्ठ मानकर नारी को विकास के समान अवसर प्रदान नहीं करना ही लिंगभेद है।
लिंक भेद स्त्री और पुरुष की शारीरिक बनावट पर आधारित जैविक अंतर है, जो स्त्रीत्व और पूरुषत्व का आधार है।
* लैंगिक भेद (लैंगिक असमानता) :– लैंगिक भेद को ‘लैंगिक असमानता’ भी कह सकते हैं। पुरुषों ने बहुत सारे कार्यों को स्त्री उचित मान रखा है , जैसे –झाड़ू , पोछा, बर्तन मांजना, कपड़े धोना इत्यादि ।
यह भी मान्यता है कि घर के भीतर के चौके – बर्तन का कार्य पुरुषों का नहीं है। यही सोच ‘लैंगिक भेद’ का उदाहरण है।
सामाजिक असमानता का यह रूप कहीं कम और कहीं अधिक मात्रा में दुनिया में प्राय: हर स्थान पर मौजूद है।
* लैंगिक संवेदनशीलता :– लैंगिक संवेदनशीलता का अर्थ है कि स्त्री और पुरुष दोनों के प्रति समान भाव का अनुभव करना। लैंगिक संवेदनशीलता को ‘लैंगिक समानता’ भी कहते हैं। हमें बालक – बालिका में भेदभाव और पक्षपात नहीं करना चाहिए ।
महाकवि कालिदास ने कहा है — “यह स्त्री है, यह पुरुष है — यह निरर्थक बात है। वस्तुतः सत् पुरुषों का चरित्र ही पूजा के योग्य कार्य होता है।”
* लैंगिक भेदभाव के विभिन्न रूप :–
1. श्रम का लैंगिक विभाजन
2. शिक्षा और काम के अवसर
राजस्थान जनगणना — 2011
लिंगानुपात — 928 प्रति हजार
कुल साक्षरता — 66.17%
पुरुष साक्षरता — 79.20%
महिला साक्षरता — 52.10%
3. सामुदायिक सहभागिता–
* महिला आंदोलन व नारी उत्थान :–
महिलाओं में पारिवारिक एवं सार्वजनिक जीवन में बराबरी की मांग की है। महिलाओं के अधिकारों का हनन होने पर विरोध किया जाता है। मामले को उचित स्तर पर रखकर न्याय दिलाने का प्रयत्न किया जाता है।
विधानसभा और संसद में 33% सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने की मांग भी नारी संगठनों द्वारा रखी गई है ।
भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कानून व योजनाएं बनाई गई है।
* नारी उत्थान के सरकारी प्रयास :— महिला वर्ग की प्रगति , सुरक्षा व संरक्षण के लिए नए कानून बनाए गए हैं तथा अनेक योजनाएं भी चलाई जा रही है। जैसे :–
1. नारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले सामाजिक कुप्रथाओ को दंडनीय कानूनी अपराध घोषित किया गया है।
2. पंचायती राज व्यवस्था तथा नगरीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए राजस्थान में 33% सीटें आरक्षित की गई है ।
3. महिलाओं की समस्याओं के हल के लिए राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय महिला आयोग का गठन किया गया है।
4. राजकीय सेवा में पद आरक्षित किए गए हैं।
5. समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक निर्धारित किया गया है ।
6. महिला उत्थान की योजनाएं :– प्रत्येक जिले में महिला थाना और महिला सलाह केंद्र व महिला सुरक्षा केंद्र की स्थापना की गई है।
* शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े उपखंडों में बालिका आवासीय विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। राजस्थान में कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय ( KGBV) संचालित किए जा रहे हैं ।
बालिका शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु राजस्थान सरकार के विद्यालयों की 9वीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली सभी बालिकाओं को नि:शुल्क साइकिलों का वितरण व छात्रवृत्ति वितरण । गार्गी पुरस्कार, मुख्यमंत्री हमारी बेटी योजना इत्यादि चलाई जा रही है ।
रोजगार हेतु प्रशिक्षण देना और रोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराना
महिला के नाम संपत्ति की रजिस्ट्री करवाने पर रजिस्ट्रेशन शुल्क में छूट देना।
गरीब परिवारों को मकान के लिए महिला के नाम नि:शुल्क आवंटित करना।
बालिकाओं की उच्च शिक्षा हेतु बचत द्वारा धन जुटाने के लिए “सुकन्या समृद्धि योजना” को प्रारंभ किया गया है ।
भामाशाह योजना में ‘महिला’ को परिवार की मुखिया नामांकित करना ।
महिला और शिशु कल्याण हेतु जननी सुरक्षा योजना का संचालन ।
लिंगानुपात में समानता लाने हेतु ” बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ ” अभियान । देशभर में चलाया जा रहा है।
* नोट :–
* परवर्तीकाल :: बाद का समय या बाद में होने वाला।
* बाल विवाह :: लड़के की आयु 21 वर्ष व लड़की की आयु 18 वर्ष होने से पहले ही किया जाने वाला विवाह।
कक्षा 7 पाठ 10 लैंगिक समाज एवं संवेदनशीलता
कक्षा 10 गणित राजस्थान बोर्ड का कोर्स वीडियो
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