Itihas ki Pramukh Ghatnaye 2
Itihas ki Pramukh Ghatnaye 2
18. जालौर का युद्ध — 1311 ईस्वी में
अलाउद्दीन खिलजी व कान्हणदेव के मध्य
इस युद्ध में खिलजी की विजय होती है ।
इस युद्ध में विश्वासघाती बीका दय्या होता है।
अलाउद्दीन खिलजी विजय के बाद किस दुर्ग का नाम बदलकर जलालाबाद रख देता है।
‘जेतलदे’ के नेतृत्व में यहां जल जौहर होता है ।
18. सारंगपुर का युद्ध — 1437 ईस्वी
महाराणा कुंभा ने मालवा सुल्तान मोहम्मद खिलजी को हराया था ।
विजय के उपलक्ष्य में कुंभा ने ‘विजय स्तंभ'( चित्तौड़) का निर्माण करवाया।
चित्तौड़ में यह ‘विजय स्तंभ’ भगवान विष्णु को समर्पित है ।
19. बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध– 1518 ईस्वी में
राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के मध्य
युद्ध में राणा सांगा की विजय होती है।
( खातोली व बाड़ी दोनों युद्धो में लोदी की सेना का नेतृत्व मियां माखन व मियां हुसैन ने किया था।)
20. बयाना का युद्ध 16 फरवरी 1527
राणा सांगा व मुगल सूबेदार मेंहदी ख्वाजा के मध्य
युद्ध में राणा सांगा की विजय होती है ।
यह ‘बयाना का युद्ध’ राणा सांगा की सबसे अंतिम व महान विजय थी।
21. खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई.
इस युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने ‘पाथी परवन’ की प्रथा प्रारंभ की थी ।
पाथी प्ररवन की प्रथा — युद्ध में शामिल होने के लिए आसपास के राजाओं को निमंत्रण देना।
22. चित्तौड़गढ़ का युद्ध-
दूसरा सांका – 1535 ईस्वी में
बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
चित्तौड़ की ओर से सेना का नेतृत्व देवलिया प्रतापगढ़ के बाग सिंह द्वारा किया गया। और इसमें बाग सिंह की मृत्यु हो जाती है।
बहादुर शाह विजय होता है ।
‘कर्मावती’ के नेतृत्व में दुर्ग का दूसरा जौहर होता है ।
23. चित्तौड़ का तीसरा सांका – 1568 ईस्वी में
अकबर के आक्रमण के बाद
युद्ध अकबर और जयमल राठौड़, पत्ता सिसोदिया के मध्य हुआ।
उदय सिंह इस आक्रमण से पहले ही युद्ध की जिम्मेदारी जयमल , पत्ता को सौंप देते हैं ।
(जयमल राठौड़ मेड़ता के थे और पत्ता सिसोदिया राजसमंद (केलवा) के थे।)
पत्ता की पत्नी ‘फूलकंवर’ के नेतृत्व में जौहर होता है
युद्ध में जयमल ,कला व पत्ता की मृत्यु हो जाती है ।
मेड़ता के जयमल राठौड़
24. गिरी सुमेल /सुमेल गिरी/ जैतारण का युद्ध- जनवरी 1544 में ।
शेरशाह सूरी व मालदेव की सेना के मध्य
मालदेव की सेना का नेतृत्व सेनापति जैता व कूंपा ने किया था।
मालदेव सिवाना के दुर्ग में थे ।
शेरशाह सूरी की विजय होती है।
शेरशाह सूरी कि- ” मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता।”
25. हल्दीघाटी का युद्ध — 18 जून 1576
गोपीनाथ शर्मा के अनुसार — 21 जून 1576
महाराणा प्रताप व अकबर की सेना के मध्य
प्रताप की सेना का नेतृत्व हकीम खां सूरी ने किया जो कि सेना का सेनानायक था।
अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह कछवाहा ने किया जो कि अकबर की सेना का सेनानायक था ।
हल्दीघाटी के युद्ध को “राजस्थान की थर्मोपोली” कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था।
अकबर की ओर से ‘हल्दीघाटी युद्ध’ की योजना मैंग्जीन के दुर्ग में बनाई गई थी।
26. दिवेर का युद्ध – अक्टूबर 1582 में
महाराणा प्रताप व मुगल सेनापति ( सेरिमा सुल्तान खां) के बीच
जो कि अकबर की सेना का सेनापति व दिवेर का किलेदार अकबर का चाचा था।
”मेवाड़ का मैराथन” व ”प्रताप के गौरव का प्रतीक” ‘दिवेर के युद्ध’ को कहा जाता है ।
महाराणा प्रताप की ओर से सेना का नेतृत्व अमरसिंह ने किया था, जो कि महाराणा प्रताप का पुत्र था।
इस युद्ध में सुल्तान खाँ मारा जाता है।
27. पानीपत का प्रथम युद्ध – 1526 ईस्वी में
बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य
बाबर की जीत होती है ।
इस युद्ध के साथ ही भारत में सल्तनत काल समाप्त होता है व मुगल काल का प्रारंभ होता है ।
28. गिंगोली का युद्ध – 1807 ईस्वी में
जगत सिंह द्वितीय व मानसिंह के मध्य हुआ।
यह युद्ध कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर युद्ध हुआ था।
जगतसिंह द्वितीय जयपुर के थे।
मानसिंह जोधपुर के थे ।
कृष्णा कुमारी मेवाड़ की राजकुमारी थी, जोकि भीम सिंह की पुत्री थी ।
29. कुवाड़ा का युद्ध – 9 अगस्त 1857 को
( कुंवाड़ा कोठारी नदी के किनारे भीलवाड़ा में स्थित है।)
इस युद्ध में तात्या टोपे अंग्रेज सेनापति रॉबर्टसन के हाथों पराजित होते हैं।
30. बिथौड़ा का युद्ध – 8 सितंबर 1857 को
कुशाल सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों व अंग्रेज अधिकारी हिथकोट के मध्य हुआ।
कुशाल सिंह आउवा के ठाकुर था।
इस युद्ध में हीथकोट व उसके सहयोगी अनाड़सिंह की मृत्यु होती है ।
31. चेलावास का युद्ध / काला- गोरा का युद्ध – 18 सितंबर 1857 को
कुशलसिंह चंपावत व क्रांति कार और ए जी जी पैट्रिक लॉरेंस व मेकमोसन (जोधपुर ,मारवाड़ का पोलिटिकल एजेंट) की सेना के बीच में होता है।
इस युद्ध में मेकमोसन की गर्दन काट कर आहुवा के किले पर लटका दी जाती है।
इस युद्ध के बाद खुशी में क्रांतिकारियों ने ‘नोबत’ वाद्ययंत्र बजाया था।
32. जाजऊ का युद्ध – 1707 ईस्वी में
मुअज्जम व आजम के मध्य
यह दोनो औरंगजेब के उत्तराधिकारी पुत्र थे ।
सवाई जयसिंह ने आजम का पक्ष लिया था पर विजय मुअज्जम की हुई ।
मुअज्जम जयसिंह को आमेर की गद्दी से हटाकर आमेर का नाम बदलकर ‘मोमीनाबाद’ या ‘इस्लामाबाद’ रख देता है।