ईंट मनके तथा अस्थियां हड़प्पा सभ्यता

ईंट मनके तथा अस्थियां हड़प्पा सभ्यता

ईंट मनके तथा अस्थियां हड़प्पा सभ्यता



ईंट मनके तथा अस्थियां हड़प्पा सभ्यता ईंट मनके तथा अस्थियां हड़प्पा सभ्यता
 1. पूर्व हड़प्पा 2600 ई. पूर्व से पहले।
 2.परिपक हड़प्पा 2600 ई. पूर्व से 1900 ई. पूर्व तक।
3. उत्तर हड़प्पा 1900ई.पू. के बाद।
*  हड़प्पा सभ्यता का विस्तार :-
1.उत्तरी छोर- माँडा।
2. दक्षिणी छोर- देमाबाद।
 3.पूर्वी छोर – आलमगीरपुर।
4. पश्चिमी छोर -सुतकागेंदडोर।
*  हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं:–
1. बस्तियों के भाग – दुर्ग , निचला शहर ।
2.पूर्व नियोजित जल निकास व्यवस्था। 
3.हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधनो में आमतौर पर मृतकों को गर्तो में दफनाया गया था।
4. मुहरो के द्वारा सुदूर क्षेत्रों के साथ संपर्क संभव हुआ।
5. विनिमय बांट के द्वारा किए जाते थे। बाँट चर्ट नामक पत्थर से बनाए गए थे जिन पर कुछ भी अंकित नहीं होता था।
6. कुछ पुरातत्वविदों का मानना था कि हड़प्पाई समाज का कोई शासक नहीं था, जबकि दूसरे  पुरातत्वविदों का मानना था कि हड़प्पाई समाज में कोई एक शासक नहीं बल्कि कई शासकों का राज था।
7. सड़कों तथा गलियों को एक ” ग्रीड पद्धति” में बनाया गया था। जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।

8. शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शेक की कटाई, धातु कर्म,मुहर निर्माण तथा बाँट बनाना सम्मिलित थे।





 

प्रश्न 1.  हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए! चर्चा करें कि इन पदार्थों को कैसे प्राप्त किया जाता था?उत्तर : मनकों की निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों की विविधता उल्लेखनीय है:- कार्निलियन(सुंदर लाल रंग का पत्थर), जैस्पुर, स्फटिक, कपार्ट्ज, सेलखड़ी जैसे पत्थर तथा तांबा ,काँसा तथा सोने जैसी धातुएं तथा शंख ,फयॉन्स, पक्की मिट्टी सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था।
 दो तरीके जिनके द्वारा हड़प्पावासी शिल्प उत्पादन हेतु माल प्राप्त करते थे।
1. उन्होंने नागेश्वर और बालाकोट में जहां शंख आसानी से उपलब्ध था बस्तियां स्थापित की।
2. उन्होंने राजस्थान के खेतड़ी अंचल (तांबे के लिए) तथा दक्षिणी भारत( सोने के लिए) जैसे क्षेत्रों में अभियान भेजा।
 प्रश्न 2. अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा सिंधु घाटी की सभ्यता के विषय में हमारी जानकारी कम क्यों है ?अपने तर्क में व्याख्या कीजिए।
उत्तर 1. उस काल की लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
2.पुरातात्विक अवशेषों का अध्ययन करते हुए अनुमान के आधार पर ही सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में (सभ्यता का समय व विकास आदि का) ज्ञान प्राप्त कर पाए हैं। जबकि अन्य सभ्यताओं के संबंध में जानकारी का मुख्य आधार उनकी लिपि का पढ़ा जाना है।
प्रश्न 3. हड़प्पा जलनिस्सारण प्रबंध के बारे में वर्णन करो? अथवा हड़प्पा समाज के लोगों को स्वच्छता पसंद थी इसके बारे में अपने तर्क दीजिए? 
उत्तर  इस नगर की एक प्रमुख विशेषता इसका जल विकास प्रबंध था। इस नगर की नालियां मिट्टी के गारे, चुने और जिप्सम की बनी हुई थी। इनको बड़ी ईटों और पत्थरों से ढका जाता था। जिनको ऊपर उठाकर उन नालियों की सफाई की जा सकती थी। घरों के बाहर की नालियाँ सड़कों के दोनों और बनी हुई थी। वर्षा के पानी के निकास के लिए बड़ी नालियों का घेरा ढाई से पाँच फुट तक था। घरो से गंदे पानी के निकास के लिए सड़कों के दोनों और गड्ढे बने हुए थे। इन तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी के लोग अपने नगरों की सफाई की ओर बहुत ध्यान देते थे। 
प्रश्न 4. हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए ?
उत्तर – विद्वानों की राय है:-  * हड़प्पा समाज में शासकों द्वारा जटिल फैसले लेने और उन्हें कार्यान्वित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते थे। वे इसके लिए एक साक्ष्य (सबूत) प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हड़प्पा पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता को ही ले जैसा कि मृदमांडों, मुहरो, बाँटो तथा ईटों से स्पष्ट है।
 * बस्तिओं की स्थापना के बारे में निर्णय लेना बड़ी संख्या में ईंटों का बनाना, शहरों में विशाल दीवारें, सार्वजनिक इमारतें, उनके नियोजन करने का कार्य ,दुर्ग के निर्माण से पहले चबूतरों का निर्माण कार्य के बारे में निर्णय लेना, लाखों की संख्या में विभिन्न कार्यों के लिए श्रमिकों की व्यवस्था करना, जैसे महत्वपूर्ण और कठिन कार्य संभवत:  शासक ही करता था।
*  कुछ पुरातत्वविद इस मत के हैं कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी दूसरे पुरातत्वविद यह मानते हैं कि यहां कोई एक नहीं बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो , हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे।
* कुछ और यह तर्क देते थे कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पूरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के कच्चे ईटों के आकार, निश्चित अनुपात तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के समीप संस्थापित होने से स्पष्ट है ।
* कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि सिंधु घाटी की समकालीन सभ्यता मेसोपोटामिया के समान हड़प्पाई लोगों में भी एक पुरोहित राजा होता था जो प्रासाद (महल) में रहता था लोग उसे पत्थर की मूर्तियों में आकार देकर सम्मान करते थे। संभवत: धार्मिक अनुष्ठान उन्हीं के द्वारा किया या कराया जाता था।



 प्रश्न 5. आप यह कैसे कह सकते हैं कि हड़प्पा संस्कृति एक नागरीय सभ्यता थी?
 उत्तर  हां हम यह कह सकते हैं कि हड़प्पा संस्कृति एक नागरीय सभ्यता थी।
 निम्नलिखित उदाहरण उस बात को दर्शाते हैं:-
* नगर सुनियोजित और घनी आबादी वाले थे।
* सड़के सीधी और चौड़ी थी।
* प्रत्येक घर में कुआँ व स्नानाघर थे ।
* जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी जो मुख्य जलनिकासी से जुडी थी।
* हड़प्पा नगर में सार्वजनिक भवन देखने को मिले हैं।
* लोथल में डोकयार्ड मिले हैं जिससे पता चलता है कि मुक्त व्यापारिक केंद्र रहे थे।
* हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद नियोजन लगभग भूल गए और नगर जीवन लगभग हजार वर्ष तक देखने को नहीं मिला। 
 प्रश्न 6. हड़प्पाई लोगों की कृषि प्रौद्योगिकी पर एक लेख लिखो ? 
उत्तर  *हड़प्पा के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
* उत्खनन के दौरान अनाज के दानों का पाया जाना इस ओर संकेत करता है।
* किंतु कृषि की विधियों की स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है।
* खेतों के जोतने के संकेत कालीबंगा से मिले हैं।
* मुहरों पर वृषभ का चित्र पाया जाना भी इसे और ही संकेत करता है।
* इस आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था।
* कई स्थलों से मिट्टी के बने हल भी मिले हैं ।
* ऐसे भी प्रमाण मिले हैं, जिससे यह पता चलता है कि दो फसलें एक साथ भी उगाई जाती थी।
* मुख्य कृषि उपकरण कुदाल थी तथा फसल काटने के लिए लकड़ी के हत्थों पर पत्थर या धातु के फलक लगाए जाते थे।
* अधिकांश हड़प्पा क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों को विकसित किया गया था क्योंकि यह क्षेत्र अर्ध-शुष्क प्रवृत्ति का है।
 * सिंचाई के मुख्य साधन नहर और कुएँ थे। *अफगानिस्तान में नेहरों के अवशेष मिले हैं। प्राय: सभी जगह कुएँ मिले हैं और धोलावीरा में जलाशय मिला है। संभवत: सिंचाई हेतु इसमें जल संचय किया जाता होगा ।


प्रश्न 7. चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुननिर्माण करते हैं ?
उत्तर   1.कई बार अप्रत्यक्ष साक्ष्य (सबूत) का भी सहारा लेना पड़ता है, और वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष साक्ष्य में समानता ढूंढते हैं।
2. भोजन अथवा भोज्य पदार्थों की पहचान के लिए मिले अवशेषों में अन्न अथवा अनाज पीसने या पकाने के यंत्र अथवा बर्तनों का अध्ययन किया जाता है।
3. पुरातत्वविद पूरावस्तुओं को ढूंढकर उनका अध्ययन कर अतीत का पुनःनिर्माण करते हैं। पूरावस्तुओं की खोज उद्गम (क्षेत्र) का आरंभ मात्र है। 
4.इसके बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते हैं ।
5. पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखा भी विकसित करनी पड़ती है।
6.शिल्प उत्पादन  के केंद्रों की पहचान के लिए प्रस्तुत पिण्ड, औजार, तांबा -अयस्क जैसा कच्चा माल इत्यादि ढूंढते हैं ।
* पुरातत्व की परिभाषा:- वह  विधा जिसमे प्राचीन काल मुख्यतः प्रागैतिहासिक काल की वस्तुओं के आधार पर पुराने अज्ञात इतिहास का पता लगाया जाता है ।
*पुरातत्वविद की परिभाषा:-  वह व्यक्ति जो पुरातत्व का अच्छा ज्ञाता हो।
 प्रश्न 8. संभवत है हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पूरावस्तु क्या है?
 उत्तर  मुहर।
प्रश्न 1. हड़प्पा सभ्यता का प्रथम खोजा गया स्थल कौनसा है?
उत्तर मोहनजोदड़ो ।
प्रश्न 2. मोहनजोदड़ो की सबसे विस्तृत इमारत कौनसी है?
उत्तर अन्नागार ।
प्रश्न 3. हड़प्पावासी सर्वाधिक पूजा किसकी करते थे? उत्तर मातृदेवी ।
काल रेखा — 1 :–
–: आरंभिक भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंड :–
20 लाख वर्ष (वर्तमान से पूर्व) – निम्न पुरापाषाण
80000 — मध्य पुरापाषाण
35000 — उच्च पुरापाषाण
12,000 — मध्य पाषाण
10000 — नवपाषाण (आरंभिक कृषि तथा पशुपालक)
6000 — ताम्रपाषाण (तांबे का पहली बार प्रयोग)
2600 ईस्वी पूर्व — हड़प्पा सभ्यता
1000 ईसवी पूर्व — आरंभिक लौहकाल, मध्यपाषाण शवाधान
600 ईसवी पू. स 400 ईसवी पूर्व — आरंभिक ऐतिहासिक काल।
काल रेखा :- 2
हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण 19वीं शताब्दी : —हड़प्पा की मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट 1875
बीसवीं शताब्दी ::–
1921 — माधो स्वरुप वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ।
1925 — मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारंभ।
1946 — आर. ई. एम .व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन ।
1955 — एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ।
1960 — बी. लाल तथा बी. के .थापर के नेतृत्व में कालीबंगा में उत्खननों का आरंभ।
1974 — एम. आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरंभ।
1980 — जर्मन — इतावली संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में अन्वेषणों का आरंभ।
1986 — अमरिकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ।
1990 — आर. एस. विष्ट द्वारा धोलावीरा में उत्खननों का आरंभ।

 

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