Class 9 Sanskrit Chapter 3 गोदोहनम्

Class 9 Sanskrit Chapter 3 गोदोहनम्

(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)

चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः ( विलोक्य ) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्।
(मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम् ) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः
अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।

शब्दार्था:-
मोदकानि – लड्डुओं को
रचयन्ती – बनाती हुई
मन्दस्वरेण – धीमी आवाज़ से
मोदकगन्धम् – लड्डुओं की सुगन्ध को
प्रसन्नमना – प्रसन्न मन वाला
अस्वादयामि – स्वाद लूँगा
गृहीतुमिच्छति – लेने का इच्छुक है
विरम – रुक जा
मा स्पृश – मत छू
क्रुध्यसि – क्रोधित होती हो
जिह्वालोलुपतां – जीभ का लालच
नियन्त्रयितुम् – नियंत्रित करने में
अक्षमः – असमर्थ
निमित्तानि – कारणवश
सम्पादय – पूरा करो
प्रसादं – पूजन के बाद का अर्पण

(मल्लिका लड्डू बनाती हुई धीमी आवाज़ में शिव की स्तुति करती है।)
(तब लड्डुओं की सुगंध महसूस करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन प्रवेश करता है।)

चन्दन – अहा! सुगंध तो मनोहारी है। (देखते हुए) अरे, लड्डू बन रहे हैं? (प्रसन्न होते हुए) चलो, मैं इन्हें चखता हूँ।
(लड्डू लेने का प्रयास करता है)

मल्लिका – (क्रोध से) रुक जाओ! रुक जाओ! इन्हें मत छुओ! ये लड्डू।

चन्दन – तुम क्रोधित क्यों हो रही हो! तुम्हारे हाथ से बने हुए लड्डुओं को देखकर मैं अपनी जीभ के लालच को नियंत्रित नहीं कर पा रहा हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती?

मल्लिका – मुझे भली-भाँति पता है, स्वामी! परन्तु ये लड्डू पूजन के लिए बनाए गए हैं।

चन्दन – तो जल्दी से पूजन समाप्त करो और मुझे प्रसाद दो।

मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्थाः-
पूजनम् – पूजा को
स्वसखिभिः सह – अपनी सखियों के साथ
विषादम् – दु:ख को
नाटयति – अभिनय करता है
आगमनस्य – आने का
प्रति – की ओर
गमिष्यामि – जाऊँगी
गङ्गास्नानम् – गंगा स्नान
धर्मयात्राम् – तीर्थ यात्रा
औचित्यम् – उपयुक्तता
गृह व्यवस्था – घर की व्यवस्था
धेनोः – गाय का
दुग्धदोहनम् – दूध दुहने की
परिपालय – संभालो

मल्लिका – अरे! यहाँ पूजा नहीं होगी। मैं अपनी सखियों के साथ कल सुबह काशी विश्वनाथ मंदिर जाऊँगी, वहाँ गंगा स्नान और तीर्थयात्रा भी करेंगे।

चन्दन – सखियों के साथ! मेरे साथ नहीं! (दुख का अभिनय करता है)

मल्लिका – हाँ। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं। इसलिए, मेरे साथ तुम्हारे आने का कोई औचित्य नहीं है। हम सप्ताहांत में लौट आएँगे। तब तक, घर की व्यवस्था और गाय के दूध दुहने की व्यवस्था को सँभालो।

(द्वितीयम् दृश्यम्)
चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानी तु गङ्गास्नानार्थं काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटक्रमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्थाः –
अस्तु – ठीक है
धर्मयात्रया – धर्म की यात्रा से
परिपालयिष्यामि – संभाल लूँगा
शिवाः – कल्याणकारी
पन्थानः – मार्ग
दुग्धदोहनम् – दूध दुहना
प्रातराशस्य – नाश्ते का
स्त्रीवेषम् – स्त्री का वेश
समीपम् – पास
मातुलानी – मौसी
मातुलः – मामा
गङ्गास्नानार्थम् – गंगा स्नान के लिए
प्रियं – मनभावन
मासानन्तरम् – एक महीने बाद
महोत्सवः – बड़ा उत्सव
त्रिशत-सेटकपरिमितम् – तीन सौ सेर की मात्रा
दुग्धम् – दूध
शोभनम् – अच्छा

(दूसरा दृश्य)

चन्दन – ठीक है। जाओ। अपनी सखियों के साथ धर्मयात्रा से आनंदित हो जाओ। मैं सब कुछ संभाल लूंगा। शिव तुम्हारे मार्गों को कल्याणकारी बनाएं।
चन्दन – मल्लिका तो धर्मयात्रा के लिए चली गई। ठीक है। पहले दूध दुह लूँ, फिर अपने नाश्ते की व्यवस्था करूँगा। (स्त्री का वेश धारण करके, दूध का बर्तन हाथ में लेकर नंदिनी के पास जाता है)

उमा – मौसी! मौसी!
चन्दन – उमा! मैं तो मामा हूँ। तुम्हारी मौसी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई है। बताओ, तुम्हें क्या प्रिय है, जो मैं करूँ?
उमा – मामा! पितामह (दादा) कह रहे हैं कि एक महीने बाद हमारे घर में महोत्सव होगा। वहाँ तीन सौ सेर दूध की आवश्यकता है। यह व्यवस्था आपको करनी है।
चन्दन – (प्रसन्न मन से) तीन सौ सेर दूध! बहुत अच्छा। दूध की व्यवस्था अवश्य हो जाएगी, यह तुम दादा से कह देना।
उमा – धन्यवाद मामा! अब मैं चलती हूँ। (वह निकल जाती है)

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