भाषा: विचारों का पुल
भाषा – भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने मन के भावों को प्रकट करते हैं, और दूसरों के मन के भावों को जानते हैं।
भाषा के दो रूप होते हैं :-
1.मौखिक रूप (बोलकर) मौखिक भाषा को बोलकर और सुनकर प्रकट किया जाता है।
2. लिखित रूप (लिखकर) लिखित भाषा को पढ़कर और लिखकर प्रकट किया जाता है।
व्याकरण — व्याकरण एक ऐसा शास्त्र है जो भाषा के शुद्ध और अशुद्ध रूप की पहचान कराता है। व्याकरण – भाषा के शुद्ध रूप और उसके शुद्ध प्रयोग का ज्ञान कराने वाला शास्त्र है ।
व्याकरण के तीन विभाग होते हैं:-
1. वर्ण विचार –जहां वर्णों के संबंध में विचार किया जाता है उसे ‘वर्ण विचार’ कहते हैं ।
2. शब्द विचार –जहां शब्दों के संबंध में विचार किया जाता है , उसे ‘शब्द विचार’ कहते हैं।
3. वाक्य विचार — जहां वाक्यों के संबंध में विचार किया जाता है, उसे ‘वाक्य विचार’ कहते हैं।
लिपि :– भाषा को लिखने का ढंग ‘लिपि’ कहलाता है ।
दूसरे शब्दों में “भाषा को चिन्हों के द्वारा प्रकट करने का माध्यम लिपि कहलाता है ।
1 हिंदी भाषा – देवनागरी लिपि
2 अंग्रेजी भाषा – रोमन लिपि
3 पंजाबी भाषा – गुरुमुखी लिपि ।
भाषा: विचारों का पुल
भाषा मानव सभ्यता का एक अनमोल रत्न है। यह वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को दूसरों तक पहुंचाते हैं। भाषा के बिना मनुष्य एकाकी प्राणी बनकर रह जाता, सभ्यता का विकास अवरुद्ध हो जाता और ज्ञान का संचय असंभव हो जाता।
भाषा मूल रूप से ध्वनियों का ऐसा विन्यास है जो अर्थ संप्रेषित करता है. स्वर और व्यंजन मिलकर शब्दों का निर्माण करते हैं, शब्द मिलकर वाक्य बनते हैं और वाक्यों के माध्यम से हम जटिल विचारों को भी सरलता से व्यक्त कर सकते हैं। भाषा न केवल सूचना देने का बल्कि उस सूचना का विश्लेषण और व्याख्या करने का भी उपकरण है।
भाषा का एक महत्वपूर्ण स्वरूप लिखित रूप है। लिपि के आविष्कार ने ज्ञान के संचय और प्रसार में क्रांति ला दी। लिखित भाषा के कारण प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास, दर्शन और साहित्य आज भी सुरक्षित हैं और आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
भाषा किसी समाज की संस्कृति की आत्मा होती है। यह लोक कथाओं, लोकोक्तियों और कहावतों के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति को स जीवित रखती है। भाषा साहित्य, कला और संगीत को जन्म देती है और मानव सौंदर्यबोध को समृद्ध बनाती है।
भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम ही नहीं बल्कि समाज को एक सूत्र में पिरोने वाला धागा भी है। विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग भी किसी न किसी रूप में अपनी भाषा के माध्यम से जुड़ाव महसूस करते हैं। भाषा साझा पहचान और सांस्कृतिक विरासत का बोध कराती है।
भाषा एक सजीव वस्तु है। नई शब्दावली के निर्माण और पुराने शब्दों के अर्थ में परिवर्तन के साथ भाषा का निरंतर विकास होता रहता है। वैज्ञानिक खोजों, आधुनिक तकनीक और बदलते परिवेश के अनुरूप भाषा अपना स्वरूप बदलती रहती है।
भाषा सीखने का कोई अंत नहीं होता। हर भाषा की अपनी सूक्ष्मताएं और गहराइयां होती हैं जिन्हें हम जीवन भर सीखते रहते हैं। दूसरी भाषाओं को सीखना न केवल ज्ञानवर्धक होता है बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को समझने और सराहने का द्वार खोलता है।
संक्षेप में, भाषा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। यह विचारों का पुल है, ज्ञान का भंडार है और संस्कृति की धरोहर है। भाषा को सम्मान देना और उसका संवर्धन करना हमारा सामूहिक दायित्व है।