Bharat ke Sant Kavi भारत के संत कवि

Bharat ke Sant Kavi

भारत के संत कवि

(कबीर ,सूरदास ,तुलसीदास ,बिहारी ,रहीम )

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* संतकवि — कबीर :–

भक्ति काल की ज्ञानाश्रई निर्गुण शाखा के प्रमुख कवियों में कबीर का भी प्रमुख स्थान हैं। संत कवि कबीरदास का जन्म विक्रम संवत् 1455( सन् 1398) में काशी में माना जाता है। इनके माता-पिता का कोई पता नहीं है, परंतु इनका लालन- पालन एक जुलाहा परिवार में हुआ। इन्होंने कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की, परंतु सत्संग, पर्यटन और अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। इन्हें स्वामी रामानंद का शिष्य तथा उस समय का सर्वश्रेष्ठ समाज-सुधारक संत कवि माना जाता है। इन्होंने अपनी साखियों,पदों एवं रमैनियों में सर्वधर्म सद्भाव तथा मानवता का संदेश दिया। उनकी रचनाओं का संकलन उनके शिष्यो द्वारा किया गया, जिसे ‘बीजक’ नाम दिया गया है। इनका निधन विक्रम संवत् 1575( सन् 1518 ईसवी) स्थल मगहर में माना जाता है।


* सूरदास :–

सूरदास को कृष्णभक्ति शाखा के कवियों में अग्रणी कवि माना जाता है। यह भक्ति काल के प्रमुख कृष्ण-भक्त एवं सगुण उपासना वाले कवि थे। इनका जन्म वैशाख शुक्ल 5 , वि. संवत् 1535 ( सन् 1478 ईस्वी) में दिल्ली के निकट ‘सीही’ ग्राम में हुआ था। सूरदास जन्मांध थे और बचपन से ही विरक्त होकर मथुरा के गऊ घाट पर रहने लगे थे। इनकी भक्ति को देखकर महाप्रभु वल्लभाचार्य इन्हें अपने संप्रदाय में दिक्षित किया ,और अष्टछाप के कवियों में इन्हें प्रमुख स्थान प्राप्त था । सूरदास प्रारंभ में विनय एवं दास्य भाव के पद रचा करते थे। परंतु वल्लभाचार्य के प्रभाव से यह सख्य भाव के पद गाने लगे। इसी कारण इनकी भक्ति सख्य भाव की मानी जाती है। इनकी तीन रचनाएं प्रमुख है- ‘सूरसागर’ , ‘साहित्य लहरी’ और ‘सूरसारावली’ । इनके अलावा ‘नागलीला’ एवं ‘ब्याहलो’ आदि रचनाएं भी मानी जाती है । इनकी सभी रचनाओं में श्री कृष्ण की लीलाओं का, संयोग-वियोग श्रृंगार का, भक्ति एवं विनय का भावपूर्ण एवं मार्मिक वर्णन हुआ है। इन्होंने ‘भ्रमरगीत’ में सगुण भक्ति का प्रतिपादन किया है। इनका निधन वि. संवत् 1640 ( सन् 1663 ई.) माना जाता है।



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* तुलसीदास :–

गोस्वामी तुलसीदास को भक्ति काल में रामभक्त शाखा का अग्रणी भक्त कवि माना जाता है। इनका जन्म सन् 1532 ई. में उत्तर प्रदेश के राजापुर गांव में हुआ था। यह बचपन से ही रामभक्ति मे निमग्न रहे और मूल नक्षत्र में जन्म लेने से बचपन में ये रामबोला रूप में भटकते रहे। फिर बाबा नरहरि दास का आश्रय मिलने पर राम भक्ति का मार्ग अपनाया। बाद में इनका विवाह दिन हुआ, परंतु श्रीराम की भक्ति के कारण ये अयोध्या,चित्रकूट एवं काशी में रहे । और वहीं पर रहकर रामकथा आश्रित ग्रंथों की रचना की। ‘रामचरितमानस’ इनकी अद्वित्तीय रचना है, जिसमें विविध आदर्शों की स्थापना की गई है। इनका निधन सन् 1623 ई. में हुआ।
तुलसीदास ने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों रूपों में काव्य रचना की है। इन्होंने ब्रजभाषा को भी अपनाया , परंतु अवधीभाषा का ही प्रयोग प्रमुख रुप से किया है।
गोस्वामी तुलसीदास की कृतियां इस प्रकार निम्न है :– ‘रामचरितमानस’, ‘रामलला नहछू’ , ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ , ‘बरवै रामायण’ , ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’ , ‘वैराग्य संदीपनी’ ( अवधी भाषा में ) ‘विनय पत्रिका’ , ‘कवितावली’ , ‘दोहावली’ , ‘गीतावली’ एवं ‘कृष्ण गीतावली ( ब्रज भाषा में ) । इनकी समस्त कृतियाँ रामकथा आश्रित है, जिनमें दास्य भाव की भक्ति सशक्त रूप में वक्त हुई है।


* बिहारी :–

बिहारी हिंदी की रीति- काव्यधारा के रीतिसिद्ध या रससिद्ध कवि थे । इनका जन्म माथुर चतुर्वेदी परिवार में सन् 1595 ईस्वी में ग्वालियर में हुआ था। बिहारी अनेक राजाओं के आश्रय में रहे , परंतु जयपुर के राजा जयसिंह के लिए ये विशेष कृपापात्र थे और उनकी सभा के राजकवि भी थे। इन्हें जयपुर राज्य की ओर से काली पहाड़ी गांव की जागीर भी प्राप्त हुई थी।
बिहारी की एक ही रचना है:- ‘बिहारी सतसई’ । इसमें सात सौ से अधिक दोहे और सोरठे संकलित है । हिंदी जगत में ‘रामचरितमानस’ के बाद ‘बिहारी सतसई’ सर्वाधिक लोकप्रिय रही और इस पर 30 से अधिक टीकाएँ लिखी गई है। और सतसई – परंपरा में इसका विशिष्ट योगदान रहा है। इन्होने कोई रीति ग्रंथ नहीं रचा केवल दोहों की रचना की है। इनकी सतसई में श्रृंगार, प्रेम, भक्ति एवं नीति के अलावा लोकानुभव एवं शास्त्रीय ज्ञान का सुंदर समावेश हुआ है। बिहारी की रचनाओं के संबंध में कहा जाता है कि वे “गागर में सागर” जैसी है।


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* रहीम :–

रहीम का पूरा नाम ‘अब्दुर्रहीम खानखाना’ था। इनका जन्म सन् 1556 ई. मे हुआ। रहीम के पिता मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक ‘बैरम खाँ’ थे। रहीम बचपन से ही प्रतिभासंपन्न थे। सम्राट अकबर उनकी बुद्धिमता से बहुत प्रभावित था। अकबर ने उन्हें अपना प्रधान सेनापति, मंत्री तथा दरबार के नवरत्नों में स्थान दिया , और शहजादों को दी जानेवाली उपाधि ‘मिर्जा खान’ से अलंकृत भी किया। रहीम वीरता, राजनीति, राज्य – संचालन, दानशीलता एवं काव्य रचना में कुशल थे।
उन्होंने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखें । यह धनवान भी रहे, तो अंत में गरीबी भी देखी। अकबर के बाद जहांगीर जब सिंहासन पर बैठा तो उसकी नीतियों का विरोध करने पर रहीम को कैद कर लिया गया और फिर उनका जीवन अनेक संकटों व निर्धनता में बीता। इसी बीच 72 वर्ष की उम्र में 1626 ईसवी में इनका निधन हो गया।
रहीम ने ‘वाकआत बाबरी’ का तुर्की से फारसी में अनुवाद किया। ‘खेटकौतुक- जातकम्’ ज्योतिष ग्रंथ फारसी – संस्कृत मिश्रित भाषा में रचा। फारसी में कविताएं रची जो ‘दीवाने फारसी’ ग्रंथ में संकलित है। हिंदी में रहीम दोहावली, बरवै, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, श्रृंगार सोरठे, नगर शोभा, नायिका- भेद, तथा कुछ कवित सवैये एवं संस्कृत कविताएं आदि रचें ।
रहीम मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे, तथा सर्वधर्म समभाव से पूरित थे। रहीम का काव्य श्रृंगार, भक्ति और नीति की तीन धाराओं में बहा । इनके दोहे नीति वचनों की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है। डॉ. रामचंद्र तिवारी के अनुसार – ” रहीम एक सह्दय, स्वाभिमानी, उदार, विनम्र, दानशील, विवेकी और वीर व्यक्ति थे।



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