सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय
हम बच्चों को सड़क किनारे बने ढाबों, चाय की दुकानों ऑटोमोबाइल वर्कशॉप, आदि स्थानों पर काम करते हुए पाते हैं। अनेक बच्चों को हम शहरों में ट्रैफिक लाइट के इर्द-गिर्द भीख मांगते हुए भी देखते हैं । यह बच्चे या तो शिक्षा से वंचित रहे हैं , या फिर अपने कामकाजी होने के कारण भली-भांति शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
* आर्थिक असमानता :–
विश्व के सभी समाजों में कुछ लोग ऐसे होते जिनके पास धन – संपदा , शिक्षा , स्वास्थ्य एवं शक्ति जैसे मूल्यवान संसाधन समाज के अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक होते हैं। यह संसाधन समाज के विभिन्न वर्गों में असमान रूप से बटे हुए हैं। इस कारण समाज में गरीबी और अमीरी होती है ।
एक अनुमान के अनुसार विश्व के 20% अमीर लोग दुनिया के 80% संसाधनों के मालिक हैं , तो 80% लोग गरीब लोग 20% संसाधनों के सहारे अपना जीवन बिताते हैं ।
कुछ लोग मानते हैं कि समाज में गरीब एवं वंचित इसलिए होते हैं जिनमें या तो योग्यता नहीं होती है या फिर वह अपनी स्थिति को सुधारने के लिए परिश्रम नहीं करते। उनके अनुसार यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहां नहीं होते , जहां वे आज है । लेकिन सत्यता यह है कि पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने पर ये वंचित लोग भी अपनी योग्यता का श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं।
* अवसरों की समानता और प्रयासों की सफलता :–
जो लोग समाज में गरीब है, वे भी कठोर परिश्रम द्वारा ही अपना जीवन बिताते हैं । संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना , रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कठिन परिश्रम के काम गरीब लोग ही करते हैं। समाज में निम्न समझेजाने वाले काम उनके हिस्से में आते हैं ।
एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है कि , “यदि केवल परिश्रम ही इतनी अच्छी चीज होती, तो अमीर लोग इसे अपने लिए ही बचा कर रखते।” इसका अर्थ यह नहीं है कि जीवन में परिश्रम का महत्व नहीं है।
कठोर परिश्रम और व्यक्तिगत योग्यता महत्वपूर्ण है, किंतु जब अन्य पहलू बराबर हो, तब जाकर व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रयास एवं योग्यता संबंधी अभावों को गरीबी और अमीरी जैसी असमानता के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सच यह है कि समाज में सभी चीजें समाज के सभी व्यक्तियों या समूहों के लिए एक समान नहीं है।
* सामाजिक असमानता :—
सामान्य रूप से सामाजिक असमानता व्यक्तियों के बीच होने वाली सहज भिन्नता के कारण नहीं होती है। व्यक्तिगत क्षमता से इसका कोई लेना-देना नहीं होता है। यह असमानता सामाजिक है , क्योंकि यह समाज द्वारा ही उत्पन्न की जाती है । सामाजिक असमानता पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रहती है । यद्यपि आर्थिक और सामाजिक असमानता में मजबूत संबंध होता है। समाज में निचले क्रम में मौजूद वर्ग ही सबसे गरीब होते हैं। तथापि सामाजिक समानता आर्थिक नहीं है । यह एक सामाजिक बहिष्कार है।
‘सामाजिक बहिष्कार’ वह तौर – तरीके हैं जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह से घुलने- मिलने से रोका जाता है। यह तरीके व्यक्ति या समूह को उन अवसरों से वंचित रखते हैं, जो अन्य व्यक्ति या समूहों के लिए खुले होते हैं । इस स्थिति में जहां एक और उन व्यक्तियों को व्यक्तित्व के विकास के अवसर नहीं मिल पाते हैं , तो दूसरी ओर समाज उनकी प्रतिभा के लाभ से वंचित रह जाता है। वस्तुतः यह पूरे समाज की हानि है।
* पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता एवं भेदभाव :–
‘पूर्वाग्रह’ एक ऐसी धारणा है, जो बिना विषय को जाने और बिना उसके तथ्यों की जांच – परख किए केवल और केवल सुनी सुनाई बातों पर आधारित होती है ।
‘रूढिबद्ध धारणा’ व्यक्तियों के पूरे समूह को एक समान श्रेणी में स्थापित कर देती है। रूढिबद्ध समाज में लोग दूसरे सामाजिक समूहों के बारे में ऐसे पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते हैं जो कि अपरिवर्तनीय और कठोर होते हैं ।
‘भेदभाव’ दूसरे समूह अथवा व्यक्ति के प्रति किया गया व्यवहार है, जिसके तहत एक समूह के सदस्य उन अवसरों के लिए अयोग्य करार दिए जाते हैं, जो दूसरों के लिए खुले होते हैं।
* सामाजिक असमानता से ग्रस्त वर्ग :–
भारतीय समाज में असमानता के विभिन्न स्वरूप और उसकी बहिष्कार उत्पन्न करने की क्षमता एक चिंता का विषय रहा है । भारत जैसे देश में रूढिबद्ध विचार औपनिवेशिक काल में और अधिक उत्पन्न हुए ।
अतः विश्व के अधिकांश समाजों की तरह भारत में भी सामाजिक भेदभाव तथा उसके बहिष्कार की विभिन्न रूप पाए जाते हैं।
1. भारत में जाति प्रथा का जो स्वरूप प्रचलित है वह कुछ वर्गों के लिए अपमानजनक, बहिष्कारी और शोषणकारी है । अस्पृश्यता इसका अतिवादी रूप है।
2. पुरुष प्रधान समाज में महिलाएँ अवसर की समानता का शिकार रही है । और हम आए दिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा व भेदभाव की खबरें पढ़ते रहते हैं।
3. मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त , दृष्टिबाधित और शारीरिक रूप से बाधित ‘विशेष योग्य जन’ या ‘अन्यथा सक्षम व्यक्तियों’ को भी समाज में संघर्ष करना पड़ता है।
4. भारत सहित पुरे विश्व में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की खबरें भी मिलती रहती है ।
सभी तरीकों से आर्थिक रूप से पिछड़े लोग भी समाज में हाशिये पर होते हैं।
* सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु प्रयास :–
समाज में जो सुविधाएं और अवसर हम अपने लिए चाहते हैं , वही दूसरों को भी दें, यही सामाजिक न्याय हैं। ऐसा होने पर ही समतामूलक समाज बनेगा और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास का अवसर मिल पाएगा। तभी समाज की प्रगति हो पाएगी ।
भारत सरकार ने देश में वंचित एवं पिछड़े समुदायों की पहचान कर तीन तरह की सूचियाँ बना रखी है ।
पहली सूची ‘अनुसूचित जाति’ की है, जिसमे समाज के वंचित वर्ग की अति निम्न समझी जाने वाली जातियाँ सम्मिलित है।
दूसरी सूची ‘अनुसूचित जनजाति’ की है, जिसमें आदिवासी जातियां सम्मिलित है।
तीसरी सूची ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ की है जिसमें सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियां सम्मिलित है ।जो प्रथम और द्वितीय सूचियों में सम्मिलित नहीं है। इन वर्गों को विशेष बर्ताव का पात्र माना गया है।
1. केंद्रीय व राज्यों के विधानमंडलों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए तथा स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग तथा महिलाओं के लिए भी कुछ स्थानीय सीटें निर्धारित कर दी गई है। साथ ही इनके लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में भी स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं।
2. समाज में जातीय भेदभाव व अस्पृश्यता को समाप्त करने और इन्हें रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं । “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम ” में सन् 1989 में संशोधन कर इन वर्गों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दंडात्मक प्रावधानों को और अधिक मजबूत किया गया है।
3. महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ के रोकथाम के लिए भी कानून बनाकर कठोर दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं। संविधान महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से जीविका प्रदान करने और उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन देने का निर्देश देता है ।
4. बालश्रम को गैरकानूनी घोषित कर प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य व नि:शुल्क कर दिया गया है ।
5. विशेष योग्यजनों के लिए भी नौकरियों में स्थान आरक्षित किए गए हैं ।और उनके कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
6. धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा व लिपि को बनाए रखने का संवैधानिक अधिकार है।
अत: इन सब के लिए जागरूकता एवं संवेदनशील युक्त सामाजिक अभियान की आवश्यकता है।