राजस्थान की लोक देवियां

राजस्थान की लोक देवियां

राजस्थान की लोक देवियां

आदि शक्ति पीठ हिंगलाज माता प्रथम आदि शक्ति पीठ हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर बलूचिस्तान वर्तमान पाकिस्तान में स्थित हे राजस्थान में हिंगलाज माता की प्रमुख स्थल बाडमेर जिले की सिवाना तहसील में स्थित है चूरु जिले के बिदासर गांव में स्थित है सीकर जिले के फतेहपुर गांव में स्थित थे और जैसलमेर जिले के लो दवा गांव में हिंगलाज माता का मंदिर स्थित हे
ज्वाला माता ज्वाला माता का मंदिर जयपुर से 45 कि मी दूर जोबनेर रस्ते में स्थित है पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी भगवती सती का जानू-भाग (घुटना) जोबनेर पर्वत पर आकर गिरा जिसे माता का प्रतीक मानकर ज्वाला माता के नाम से पूजा जाने लगा। ज्वाला माता खंगारोत शासकों की कुलदेवी है। प्रति वर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रों में यहां मेला लगता है।
जमवाय माता जमवाय माता कछवाहा वंश की कुलदेवी है इनका मंदिर जयपुर से लगभग 33 किलोमीटर दूर पूर्व में जंवा रामगढ नामक गांव की पहाड़ी में स्थित है जमवाय माता को ही अन्नपूर्णा के नाम से भी जानते हैं। यह मंदिर कछवाहा वंश के शासक दूल्हे राय (मूल नाम तेजकरण) ने बनवाया था।
आशापुरा माता आशापुरा माता नाडोल की चौहान की कुलदेवी है अतः इनका मुख्य मंदिर नाडोल में स्थित है आशापुरा माता के अन्य मंदिर भडौंच में स्थित हे। जालोर के चौहान शासकों की कुलदेवी आशापुरा देवी थी जिसका मंदिर जालौर जिले की मौदरा गांव में स्थित हे। हसनपुर गांव जयपुर यहां पर भी आशापुरा माता का मंदिर स्थित थे पोकरण जैसलमेर यहां पर भी आशापुरा माता का एक मंदिर पोकरण से डेढ किलोमीटर दूरी स्थित है।
स्वांगिया माता इनका मंदिर जैसलमेर जिले में स्थित है यह भाटी शासकों की कुलदेवी है।
तनोट माता का मंदिर जैसलमेर जिले में स्थित भारत पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित हे इस मंदिर के सामने 1965 की भारत पाक युद्ध में भारतीय जीत का प्रतीक विजय स्तंभ बना हुआ है तनोट माता को सेना के जवानों की देवी था कि वैष्णो देवी रुमाल वाली देवी आधी नामों से जाना जाता है राजस्थान का एकमात्र मंदिर जो सेना के अधीन है तथा इनकी पूजा bsf के जवान करते हैं
कर्णी माता इनका जन्म विक्रम संवत 1440 की स्वस्ति पत्नी को साफ नामक ग्राम में चारण वंश के नेहा जी पिता तथा देवल भाई माता के गर्भ हुआ इनका जन्म का नाम रिद्धि भाई रखा गया कर्णी माता को चूहे की देवी एवं उनकी मंदिर को चूहों का मंदिर कहते हैं तो कर्णी माता बीकानेर के राठौड़ की इष्ट बेबी तथा चरणों की कुलदेवी है हिना का मुख्य मंदिर देशनोक बीकानेर में स्थित है इस मंदिर में खने चूहे हैं जिन्हें काबा कहा जाता है यह मंदिर बीकानेर के सेठ चांदमल ढढ्ढा ने करवाया था यहां प्रति वर्ष दो बार नवरात्रों में मेला लगते हैं कर्णी माता जी ने जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की न्यू स्वयं अपने हाथ से रखी थी साथी राव जोधा के पुत्र राव बीकानेर का ने राज्य की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से ही की थी
जीणमाता इनका मुख्य मंदिर सीकर जिले के रेवासा गांव में हर्ष की पहाड़ी पर स्थित है यह चौहान वंश की कुलदेवी है इस मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल में राजा हट्ठड द्वारा 1064 ई. में करवाया गया था। जीण माता को मीणा की कुलदेवी चौहान की कुलदेवी शेखावाटी शेत्र की लोक देवी एवं मधुमक्खियों की देवी के नाम से जाना जाता है यहां प्रतिवर्ष नवरात्रों में मेले लगते हैं।
आई माता आई माता सी भी जाति के लोगों की कुलदेवी है आई माता का मंदिर बिलाड़ा जोधपुर में स्थित है जहां पर कोई मूर्ति नहीं है इस मंदिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती है जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जाता है। सीरवी जाती के लोग इनके मंदिर को दरगाह कहते हैं तो बिलाडा में इनका समाधि स्थल है जिसे बढेर कहते हैं इस देवी के मंदिर में गुर्जर जाति का प्रवेश निषेध हे।
शीतला माता जयपुर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 12 के किनारे सील की डूंगरी चाकसू में शीतला माता का मन का माता का प्रसिद्ध मंदिर है शीतला माता का मंदिर सवाई मदद वारा बनवाया गया था यहां पर इनकी पूजा होली के 8 दिन बाद चेत्र कृष्णा अष्टमी शीतला अष्टमी को इनकी वार्षिक पूजा होती है और यहां गधों के मेले का विशाल आयोजन होता है इस दिन लोग बास्योड़ा बनाते हैं।
रानी सती का मूल नाम नारायणी बाई था। इनका विवाह है चंदन दास से हुआ था विवाह के पश्चात घर लौटते समय 16 सो 52 इसी में हिसार के नवाब के सैनिकों ने धोखे से चंदन दास को मार डाला नारायणी भाई ने अपने हाथ में तलवार उठा कर सभी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और स्वयं अपने पति के साथ सती हो गई राणी सती का मंदिर झुंझुनू जिले में स्थित हे यहां फटी बस भाद्र पद कृष्णा अमावस्या को मेला भरता है इन्हें दादी जी भी कहा जाता है
शीला माता आमेर इनका मंदिर आमेर दूध के जलेब चौक में राजा मान सिंह ने 15 100 99 इसी में बनवाया था यह मूर्ति महाराजा मानसिंह प्रथम सोनी सताती में बंगाल रितेश के पुरवा के राजा केदार से लाए थे बाद में राजा मिर्चा राजा जयसिंह के द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया शीला माता कछवाहा हवन की स्थिति के रूप में पूछी जाती है पहले यहां नर बली बाद में बकरे की फली दी जाती थी वर्तमान में यह बली बंद हे
नारायणी माता अलवर अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में बरवा की डूंगरी की तलहटी में नारायणी माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है यहां पर नारायणी नामक महिला अपने पति के साथ क्षति हुई थी इनके बचपन का नाम कर मेती था यह मंदिर इतिहार शैली में बना हुआ है यहां प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल एकादशी को नारायणी माता का मेला लगता है। इनको नाई जाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। इस मंदिर का पुजारी मीणा जाति का होता है नहीं जाती वह मीणा जनजाति के मत इस देवी के मंदिर के चढ़ाव एक को लेकर विवाद चल रहा है जो वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है
गोट मांगलोद की दधिमाता नागौर यह मंदिर नागौर जिले में गोट और मांगलोद गांव के बीच हे स्थित है यह दाधीच ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है यहां दोनों नवरात्रों में विशाल मेले भरते हैं
ब्राह्माणी माता इनका मंदिर 12 जिले के अंता से 20 किलोमीटर दूर सोरसेन में ब्राह्मणी माता का मंदिर स्थित है। संपूर्ण भारत में यह केवल एक ही मंदिर है जिसमें माता के अग्र भाग का श्रृंगार नहीं किया जाता है यहां पर देवी के पीठ काश श्रृंगार कर पीठ की पूजा की जाती है यहां माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी बढ़ता है तथा माता का मेला भी इसी दिन बढ़ता है
आवरी माता चित्तौड़गढ़ निकुंभ चित्तौड़गढ़ में स्थित है शक्तिपीठ शारीरिक व्याधियों के निवारण के लिए प्रसिद्ध है। यहां विशेष रुप से लकवे की बीमारी का इलाज होता है
बदनोर की कुशाल माता राणा कुंभा ने बदनोर भीलवाड़ा के युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर इस विजय की याद में विक्रम संवत 1490 में कुशाल माता का मंदिर बदनोर भीलवाड़ा में बनवाया था इसे चामुंडा का अवतार माना जाता है इस मंदिर के निकट बैराट माता का मंदिर भी स्थित है यहां प्रति वर्ष भाद्र पद कृष्ण 11 से भाद्र पद अमावस्या को मेला भरता है
अंजनी माता केला मैया केला देवी का मंदिर करोली जिले में काली सिंध नदी के किनारे त्रिकुट पर्वत पर स्थित थे केलादेवी पूर्व जन्म में हनुमान जी की माता अंजनी थी अतः केला देवी को अंजनी माता भी कहते हैं केला देवी करोली के यदुवंशी यादव राजवंश की जादोन शाखा की कुलदेवी है मंदिर के सामने बोहरा भक्तों की छतरी है जहां पुश्तैनी बिमारियों को बोहरा का पुजारी जार फूक करके ठीक करता है लांगुरिया गीत यह गीत यह गाया जाता है केला देवी का प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल अष्टमी को मेला बढ़ता है इस मेले को लक्खी मेला भी कहते हैं
सच्चियाय माता जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित भोसिया गांव में प्रतिहार का दिन सच्चियाय माता का मंदिर है जो परमार एवं ओसवाल जाति की कुलदेवी है
चामुंडा माता चामुंडा माता का मंदिर जोधपुर में सिप मेहरानगढ दुर्ग के अंदर इस्तीफे सितंबर 2008 में नवरात्रि के अवसर पर मंदिर स्थित जन समुदाय में भगदड़ मच जाने से करीब 300 लोग ऐसा मृत्यु को प्राप्त हो गए इस हादसे की जांच के लिए सरकार ने जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी जिसने अभी तक अपनी रिपोर्ट नहीं सोती है यह राठौड़ की आराध्य देवी है
नागणेचिया माता नागणेचिया माता मारवाड़ के राठौर वंश की कुलदेवी है इनका मंदिर बाडमेर जिले की पचपदरा तहसील से 20 किलोमीटर दूर नागाणा गांव में माता की मूर्ति मूल रूप से काश लकड़ी से निर्मित 18 हाथ शस्त्र लिए सुसज्जित मूर्ति स्थापित की गई
बाण माता बाण माता मेवाड़ के गुण व सिसोदिया वंश की कुलदेवी है बाण माता का मुख्य मंदिर नागदा उदयपुर में है परंतु चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बी बाण माता का मंदिर बना हुआ है इसी प्रकार केलवाड़ा उदयपुर में विवाह माता का भव्य मंदिर बना हुआ है
खिमज माता खिमज माता का मंदिर जालौर जिले के भीनमाल गांव से 3 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ी पर अस्तित्व संकट दुर्ग में बना हुआ है यह सोलंकी राजपूत वंश की कुलदेवी है मंदिर का निर्माण चावड़ा वन के राजा वर्मा के समय हुआ था
बिजासन माता बूंदी में स्थित इंदरगढ यहां पर बिजासन माता का मंदिर स्थित थे
सुंधा माता जालोर यह मंदिर 1312 में चोचिंग देव ने बनवाया था
शाकंभरी माता यह चौहान बस की कुलदेवी है निकाली का अवतार माना जाता है शाकंभरी देवी का संपूर्ण भारत में सबसे प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर जिले के सांबर सस्ते से 18 से 19 किमी दूर सांभर झील के बेटे में अवस्थित थे सांभर को भी देवयानी वह सब तीर्थ की नानी के नाम से भी जाना जाता था। प्रतिवर्ष भादवा सूती अष्टमी को शाकंभरी माता का मेला बढ़ता है
सकराय माता इनका मंदिर सीकर जिले की खंडेला वह झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी के मध्य स्थित है
विरात्रा माता वांकल या विरात्रा माता का मंदिर बाडमेर जिले की चौहटन तहसील से 10 किलोमीटर दूर पर्वतीय घाटी में स्थित है यह 400 वर्ष से भी अधिक पुराना मंदिर है
मनसा माता मनसा माता का मंदिर झुंझुनू जिले में वह सीकर जिले के हर्ष पर्वत के मत मध्य स्थित है
कालिका माता चित्तौड़गढ़ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलो एवं विजय स्तंभ कीमत में कालिका माता का मंदिर है
जय भवानी पूरा कि नकटी माता का मंदिर जयपुर में स्थित है
जोगणिया माता भीलवाड़ा जिले में स्थित होकर माल पटा के दक्षिणी छोर पर अन्नपूर्णा देवी का मंदिर था
उगादी सुगौली माता यह माता मारवाड़ रियासत के आवा ठिकाने के किले में प्रति स्थापित थी इस मूर्ति के 10 सिर और चोपन हाथ हैं इसे 18 सो सकता उनकी क्रांति की देवी कहते हैं वर्तमान में भी सुगंधी माता की मूर्ति पाली के म्यूजियम में रखी हुई है
गेवर माता गेवर माता का मंदिर राजसमंद झील की पाल पर बना हुआ है राजसमंद की न्यू इन्हीं के हाथों रखी गई थी
चौथ माता इनका मंदिर चौथ का बरवाड़ा कस्बे सवाई माधोपुर में स्तिथ यह कंजर समाज की कुलदेवी है
अर्बुदा देवी अर्बुदा देवी का मंदिर सिरोही जिले में माउंट आबू में स्थित हे इन्हें अधर देवी भी कहते हैं यह माता राजस्थान की वैष्णो देवी कही जाती है
तुलजा भवानी इन माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर बना हुआ है तुलजा भवानी छत्रपति शिवाजी के वंश की कुलदेवी है

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