पाठ 11 ध्वनि

पाठ 11 ध्वनिपाठ 11 ध्वनि

पाठ 11 ध्वनि

प्रश्न 1. अनुदैर्ध्य तरंगे किस प्रकार के माध्यम में उत्पन्न की जा सकती है?
उत्तर ठोस , द्रव , गैस तीनों में ।
प्रश्न 2. लोहे में उत्पन्न ध्वनि तरंगे किस प्रकार की होती है ?
उत्तर अनुदैर्ध्य तरंगे होती है ।
प्रश्न 3. वायु में उत्पन्न ध्वनि तरंगे किस प्रकार की होती है ?
उत्तर अनुदैर्ध्य तरंगे होती है ।
प्रश्न 4. किसी तार को दो खूटियों के बीच का तानकर लंबाई के लंबवत् खींच कर छोड़ दिया जाता है तो तार में उत्पन्न तरंग का नाम बताइए।
उत्तर अनुप्रस्थ तरंग ।
प्रश्न 5. तरंगदैर्ध्य का एस. आई. मात्रक क्या है ?
उत्तर मीटर।
प्रश्न 6. एक स्वतंत्र रूप से लटकी स्लिंकी को खींच कर छोड़ दिया जाए, तो किस प्रकार की तरंगे उत्पन्न होगी।
उत्तर अनुदैर्ध्य तरंगें।
प्रश्न 7. घड़ी की सुईयों की गति किस प्रकार की होती है?
उत्तर आवर्ती गति होती है।
प्रश्न 8. तरंगदैर्ध्य की परिभाषा दीजिए ?
उत्तर ध्वनि तरंगों में दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागतों विरलनों के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। इसे π से प्रदर्शित करते हैं ।
प्रश्न 9. आवृत्ति की परिभाषा लिखिए। सूत्र व मात्रक बताओ ?
उत्तर एक समय में दोलनों की कुल संख्या को आवृत्ति (v) कहते हैं।
सूत्र – v = v π
मात्रक = h z
प्रश्न 10. ध्वनि उत्पन्न करने के लिए क्या आवश्यक है ? सचित्र प्रयोग द्वारा बताओ।
उत्तर एक स्वरित्र द्विभुज की किसी भुजा को रबड़ के पेड़ पर मारकर कंपित कराने पर क्या ध्वनि सुनाई देती हैं। हम पाएंगे कि स्वरित्र की भुजा को पेड़ पर मारने पर इसमें कंपन उत्पन्न होता है। यदि किसी कंममान स्वरित्र को किसी धागे से लटकी गेंद पर भी कंपित करने लगेगी।
* उदाहरण :- इसी प्रकार हमारे विद्यालय की घंटी पर हथौड़ी के आघात के कारण उत्पन्न कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है।
उक्त क्रियाकलापों से स्पष्ट है कि ध्वनि वस्तुओं के कंपन से उत्पन्न होती है।
चित्र
प्रश्न 11. तरंग गति क्या है?
उत्तर वस्तुओं में कंपन जिस पदार्थ से होकर गुजरते हैं वह माध्यम कहलाता है। जब कोई वस्तु कंपन करती है, तब उसके माध्यम के कण कंपन करते हैं। अपनी उर्जा के निकटवर्ती माध्यम के कणों द्वारा स्थानांतरित करती है। जिससे समीपवर्ती कण कम्पमान होकर इसी ऊर्जा को आगे के कणों को देकर कंपमान कर देती है , इसे विक्षोभ कहते हैं। यह ऊर्जा जिस गति से आगे चलती है ,वही तरंग गति है।
प्रश्न 12. अनुदैर्ध्य और अनुप्रस्थ तरंगे क्या है?
उत्तर * अनुदैर्ध्य तरंगें :– जिन तरंगों में कंपन संचरण की दिशा में अनूदिश होते हैं , उन्हें अनुदैर्ध्य तरंगे कहते हैं।
उदाहरण — स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगें, ध्वनि तरंगें आदि।
* अनुप्रस्थ तरंगे :– जिन तरंगों में कंपन संचरण की दिशा में लंबवत होते हैं , उन्हें अनुप्रस्थ तरंगे कहते हैं ।
उदाहरण – प्रकाश तरंगे, तनी हुई रस्सी में संचरित ऊर्जा आदि।
प्रश्न 13. तरंग संचरण के लिए क्या आवश्यक है ? प्रयोग द्वारा समझाइए।
उत्तर। * प्रयोग :– कांच के बेलजार में विद्युत घंटी को घंटी के स्विच को दबाने पर उसकी लटकाकर ध्वनि सुनते हैं। अब निर्यात पंप द्वारा बेलजार की वायु बाहर निकाल लेते हैं।. हम पाते हैं कि जैसे-जैसे बेलजार से वायु कम होती है, घंटी की ध्वनि कम होती है। लगभग निर्वात की अवस्था में घंटी की आवाज सुनाई देती है। इस प्रकार इस क्रिया-कलाप से स्पष्ट है कि ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।
चित्र
प्रश्न 14. तरंग संचरण में एक स्थान से दूसरे स्थान तक किस का स्थानांतरण होता है ? ऊर्जा का या द्रव्यमान का।
उत्तर 1. तरंग संचरण में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऊर्जा का स्थानांतरण होता है ।
2. भौतिक द्रव्यमान वहीं बना रहता है , केवल ऊर्जा व संवेग स्थानांतरित होते हैं।
प्रश्न 15. ध्वनि क्या है?
उत्तर ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है। ध्वनि के कंपन हमारे कानों में जो संवेदना उत्पन्न करते हैं। उनसे ही हम सुन पाते हैं।
प्रश्न 16. निम्नलिखित वाद्य यंत्रों में कंपित भाग का नाम बताओ ।
उत्तर वाद्य यंत्र — 1. गिटार, सितार
कंपित भाग —- तार
2. बांसुरी —- कंपित भाग — बांसुरी के अंदर की
3. ढोलक — कंपित भाग —- पर्दा
4. हारमोनियम — कंपित भाग — हारमोनियम की रीड।
प्रश्न 17. माध्यम किसे कहते हैं?
उत्तर वस्तुओं के माध्यम (कंपन) जिस पदार्थ से होकर निकलते हैं , यह माध्यम कहलाता है।
प्रश्न 18. हमारे कानों तक ध्वनि कैसे पहुंचती है?
उत्तर जब कोई वस्तु कंपन करती है तो माध्यम के कण कंपन करते हुए अपनी उर्जा निकटवर्ती माध्यम कणों को स्थानांतरित करती है। जिससे समीपवर्ती कण कंपमान होकर उसी ऊर्जा को आगे से कणों को देकर कंममान कर देती हैं । इस प्रकार ध्वनि एक कण से निकटवर्ती कणों में स्थानांतरित होती हुई हमारे कानों तक पहुंचती है। यहा पर कंपन अथवा विक्षोभ जो संवेदन उत्पन्न करते हुए , उन्हें हम सुन पाते हैं।
प्रश्न 19. संपीड़न या विरलन क्या है?
उत्तर कंपित वस्तु की वायु को धक्का देकर संपीडन उत्पन्न करती है । जब कंपित वस्तु पीछे की ओर कंपन करती है, तो विरलन उत्पन्न होता है । यह संपीडन एवं विरलन कहलाता है। यह संपीडन एवं विरलन ध्वनि तरंग बनाते हैं , तो माध्यम से होकर संचरित बनाते हैं। संपीडन उच्च दाब का क्षेत्र है। तथा विरलन निम्न दाब का क्षेत्र है।
* चित्र :– ध्वनि संचरण में संपीडन तथा विरलन की श्रेणी
प्रश्न 20 ध्वनि तरंगे अनुदैर्ध्य होती है? प्रयोग द्वारा समझाइए ।
उत्तर प्रयोग :– एक स्लिंकी को स्वयं व अपने मित्रों द्वारा हाथों में खींच कर पकड़ने के पश्चात लगातार तेज झटका देते हैं। स्लिंकी पर एक चिन्ह लगा देते हैं , तो स्लिंकी पर लगा चिन्ह विक्षोभ के संचरण की दिशा के समांतर आगे – पीछे गति करता है। उन क्षेत्रों को जहां कुंडलियां आस – पास आ जाती है , उसे संपीडन (c c ) कहते हैं । तथा उन क्षेत्रों को जहां कुंडलियां दूर – दूर हो जाती है , उसे विरलन ( R )कहते हैं । स्लिंकी में विक्षोभ के संचरण की तरंगों को अनुदैर्ध्य तरंगे कहते हैं।
* चित्र :- स्लिंकी में अनुदैर्ध्य तरंग —
प्रश्न 21 ध्वनि तरंग के अभिलक्षण कौन-कौन से हैं? उत्तर 1. आवृत्ति
2. आयाम
3. वेग
प्रश्न 22. आवर्तकाल किसे कहते हैं? मात्रक बताओ।
उत्तर दो क्रमागत संपीड़नो या दो क्रमागत वीरलनों को निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्तकाल कहते हैं।
अन्य शब्दों में माध्यम के कणों द्वारा एक दोलन पूर्ण करने में लगा समय आवर्तकाल कहलाता है ।
मात्रक = आवर्तकाल का एस. आई. मात्रक सेकंड (s) होता है।
प्रश्न 23. आवृत्ति किसे कहते हैं ? इसका मात्रक बताओ।
उत्तर एकांक समय में किए गए कंपनो या दोलनों की संख्या ध्वनि तरंग की आवृत्ति कहलाती है ।
इसे v से प्रदर्शित करते हैं।
मात्रक :– इसका एस. आई. मात्रक ‘हर्ट्ज’ है।
प्रश्न 24. आयाम किसे कहते हैं ?
उत्तर मूल स्थिति से माध्यम के विक्षोभ का अधिकतम विस्थापन आयाम कहलाता है। इसे ‘A’ से प्रदर्शित करते हैं ।
प्रश्न 25. तीव्रता एवं प्रबलता में अंतर बताओ?
उत्तर
* तीव्रता :–
1. एक सेकंड में एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं ।
2. ध्वनि की तीव्रता मापी जा सकती है।
3. ध्वनि की तीव्रता का संबंध उसकी ऊर्जा से होता है।
* प्रबलता :–
1. कानों की संवेदनशीलता की माप को ध्वनि की प्रबलता कहते हैं।
2. ध्वनि की प्रबलता को मापा नहीं जा सकता।
3. यह कानों की संवेदनशीलता पर अत्यधिक निर्भर करता है ।
प्रश्न 26. तारत्व क्या है? यह किस पर निर्भर करता है।
उत्तर तारत्व ध्वनी का यह गुण है , जिसके कारण ध्वनी बारिक अथवा मोटी सुनाई पड़ती है । तारत्व को मापा नहीं जा सकता है, परंतु अनुभव किया जा सकता है ।
* उदाहरण :- तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है । उच्च आवृत्ति की ध्वनि का तारत्व ऊंचा होता है। तथा यह ध्वनि बारिक सुनाई पड़ती है। इसके विपरीत निम्न आवृत्ति की ध्वनि का तारत्व माप नीचा होता है , यह ध्वनि मोटी सुनाई देती है ।
* उदाहरण :- मच्छर की भिनभिनाहट का तारत्व ऊँचा होता है । शेर की आवाज का तारत्व नीचा होता है।
प्रश्न 27. गुणवत्ता क्या है ?
उत्तर गुणवत्ता ध्वनि का एक गुण है जिसके आधार पर दो समानता तारत्व तथा समान प्रबलता वाली ध्वनियों में विभेद किया जा सकता है।
प्रश्न 28. प्रबलता क्या है ? यह किस पर निर्भर करती है।
उत्तर प्रबलता ध्वनि का वह गुण है, जिसके आधार पर कोई ध्वनि तेज (जोरों की) अथवा धीमी सुनाई पड़ती है। धीमी सुनाई देने वाली ध्वनि की प्रबलता कम अथवा तेज सुनाई पड़ने वाली ध्वनि की प्रबलता अधिक होती है।
* उदाहरण — ध्वनि की प्रबलता ध्वनि के माध्यम पर निर्भर करने के साथ-साथ कान की संवेदनशीलता पर भी निर्भर करती है । एक ही ध्वनि किसी व्यक्ति के लिए प्रबल तथा किसी दूसरे के लिए मृदु भी हो सकती है।
प्रश्न 29. तरंग वेग समीकरण क्या है?
उत्तर जिसमें आवृत्ति, तरंगदैर्ध्य तथा वेग का संबंध जिस समीकरण द्वारा जुड़ा होता है। उसे तरंग वेग समीकरण कहते हैं । तरंग का वेग माध्यम पर निर्भर करता है । जब भी किसी माध्यम में तरंग की आवृत्ति बढ़ती है, तो उसे तरंगदैर्ध्य घटना कहते हैं ।
प्रश्न 30. ध्वनि की चाल किन – किन बातों पर निर्भर करती है? उदाहरण दीजिए ।
उत्तर ध्वनि की चाल ठोस माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है। यह माध्यम के ताप पर भी निर्भर करती है। ध्वनि चाल ठोसों में अधिक तथा गैसों में कम होती है। ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल बढ़ती है ।
सामान्यतः जीरो डिग्री सेल्सियस पर ध्वनि की चाल 330 मीटर / सेल्सियस होती है।
* उदाहरण
अवस्था पदार्थ चाल m/s में
ठोस। एल्युमीनियम 6420
निकिल 6040
स्टील 5960
लोहा 5950
पीतल 4700
द्रव जल (समुद्री) 1531
जल (आसूत ) 1498
इथेनॉल 1207
मेथेनॉल 1103
गैस हाइड्रोजन 1284
हीलियम 965
वायु 346
ऑक्सीजन 316
सल्फर 213
प्रश्न 31. ध्वनि का परावर्तन प्रयोग द्वारा बताते हुए ध्वनि परावर्तन के नियम बताइए?
उत्तर प्रयोग :– दो एक जैसे पाइप लेकर इन्हें दीवार के समीप किसी मेज पर व्यवस्थित करते हैं। एक पाइप के खुले सीरे के पास एक घड़ी अथवा अन्य ध्वनि स्त्रोत रखते हैं। दूसरे पाइप की ओर से ध्वनि सुनने की कोशिश करते हैं।जब ठीक प्रकार से समायोजित होने पर बनी सुनाई देने लगे तब इन पाइपों तथा दर्शाए अभी अभिलंब के बीच के कोणों को मापते हैं।
हम पाते हैं कि :–
1. जब पाइप दिवार के साथ बराबर कोण बनाते हैं, तब घड़ी की ध्वनि सबसे अच्छी सुनाई देती है।
2. जब दाएं और के पाइप को थोड़ा ऊपर उठाया जाता है , तो घड़ी की ध्वनी अच्छी तरह सुनाई नहीं देती है ।
* चित्र :- ध्वनि का परावर्तन

* नियम :–
1. परावर्तक पृष्ठ के आयतन बिंदु पर खींचे गए अभिलंब तथा ध्वनि के आयतन तथा परावर्तन होने की दिशा के बीच कोण बराबर होते हैं ।
2. आपतित ध्वनि परावर्तित ध्वनि एवं अभिलंब एक ही तल में होते हैं।
प्रश्न 32. प्रतिध्वनि क्या है?
उत्तर यदि हम किसी उचित परावर्तन वस्तु जैसे कोई इमारत , कुआं , पहाड़ी आदि के सामने जोर से चिल्लाते हैं , तो कुछ समय बाद वही ध्वनि फिर से सुनाई देती है। इसे प्रतिध्वनि कहते हैं।
स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.15 का समय अंतराल अवश्य होना चाहिए ।
प्रश्न 33. अनुरणन क्या है ?
उत्तर किसी बड़े हॉल में उत्पन्न होने वाली ध्वनि बारंबार परावर्तन के कारण काफी समय तक बनी रहती है । यह बारंबार परावर्तन जिसके कारण ध्वनी का स्थायित्व होता है , वह अनुरणन कहलाता है।
प्रश्न 34. ध्वनि के बहुल परावर्तन के उपयोग समझाइए।
उत्तर 1. लाउडस्पीकर , हॉर्न तथा शहनाई जैसे वाद्य यंत्र इस प्रकार निर्मित किए जाते हैं, कि ध्वनि सभी दिशाओं में फैले । इन यंत्रों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों के बार-बार परावर्तित करके , श्रोताओं की और आगे की दिशा में भेजा जाता है ।
2. चिकित्सीय अनुसंधान में स्टेनोस्कोप एक महत्वपूर्ण यंत्र है। जिसका उपयोग डॉक्टरों द्वारा ह्रदय तथा फेफड़ों में ध्वनि को सुनने में किया जाता है। इसमें ध्वनि बार-बार परावर्तन के द्वारा डॉक्टरों के कानों तक पहुंचती है।
3. कंसर्ट हॉल , सम्मेलन कक्ष तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती है। जिससे कि परावर्तन के पश्चात ध्वनि होल के सभी भागों में पहुंच जाएं।
प्रश्न 35. परास के अनुसार ध्वनियां कितने प्रकार की होती है?
उत्तर परास के अनुसार ध्वनियां तीन प्रकार की होती
है:–
1. श्रव्य तरंगे :– वे ध्वनि तरंगें जिन्हें हमारा कान सुन सकता है, श्रव्य तरंगे कहलाती है। इन तरंगों की आवृत्ति 20 एच.जेड. से 20 के.एच.जेड के मध्य होती है।
2. अपश्रव्य तरंगे :– वे ध्वनि तरंगे जिनकी आवृत्ति 20 एच.जेड. से कम होती है। अपश्रव्य तरंगे कहलाती है ।
3. पराश्रव्य तरंगें :– वे ध्वनि जिनकी आवृत्ति 20,000 एच.जेड. ( 20 k.एच. जेड.) से अधिक होती है, पराश्रव्य तरंगें कहलाती है।
प्रश्न 36. पराध्वनी के 5 उपयोग बताइए ?
उत्तर 1. उद्योगों में अनुप्रयोग :– पराध्वनि का उपयोग धातु के ब्लॉको में उत्पन्न दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने में किया जाता है। इससे पराध्वनि तरंगें धातु के ब्लॉक से गुजारी जाती है, और प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचको का उपयोग किया जाता है। यदि थोड़ा सा भी दोष होता है, तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित भी हो जाती है। जो ब्लॉक में दोष को दर्शाती है।
2. पराध्वनी द्वारा उन वस्तुओं को साफ किया जाता है, जिन तक पहुंचना कठिन होता है। किन वस्तुओं को साफ करना होता है , जिन्हें साफ करने में मार्जन विलयन में रखकर पराध्वनि तरंगें भेजी जाती है। उच्च आवृत्ति के कारण धूल, चिकनाई तथा गंदगी के काण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं।
3. चिकित्सा में अनुप्रयोग :– परा ध्वनि तरंगों को हृदय के सभी भागों से परावर्तित कर हृदय का प्रतिबिंब बनाया जाता है । इसे इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राम कहा जाता है।
4. अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी में भी पराध्वनी का प्रयोग होता है। इसमें पराध्वनि तरंगें से रोगी के अंगों जैसे : यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे आदि का प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सकता है। अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग गर्भकाल भ्रूण की जांच तथा अनियमितताओं का पता लगाने में किया जाता है। इस तकनीक द्वारा ट्यूमर का पता लगाया जाता है।
5. पराध्वनि का उपयोग मुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जाता है । बाद में यह कण मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं।
प्रश्न 37. चमगादड़ रात्रि में कैसे उड़ सकता है?
उत्तर चमगादड़ अंधेरे में भोजन को खोजने के लिए उड़ते समय पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करके परावर्तन के समय इनका संसूचन करता है। चमगादड़ द्वारा उत्पन्न उच्च तारत्व के पराध्वनी स्पंद अवरोधों या कीटों से टकराकर उससे परावर्तित होकर चमगादड़ के कान तक पहुंचती है। इससे चमगादड़ जो देख नहीं सकता है, उनको अवरोध तथा कीट का पता लग जाता है।
प्रश्न 38. सोनार क्या है? पूरा नाम बताते हुए, इसकी क्रिया विधि सचित्र स्पष्ट करो।
उत्तर सोनार यह एक ऐसी युक्ति है , जिसमें जल में स्थित पिण्डो की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।
नाम। :— “sound navigation and ranging”
* कार्यविधि :– सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होता है। और इसे चित्र अनुसार किसी नाव या जहाज में लगाया जाता है । प्रेषित द्वारा उत्पन्न पराध्वनि तरंगें जल में गमन करती है, तथा समुंद्र तल में पिंड से टकराने के पश्चात परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। संसूचक पराध्वनी तरंगों को विद्युत संकेतों में बदल देता है। ध्वनि की चाल तथा पराध्वनि का प्रेक्षण तथा अभिग्रहण के समय अंतराल को ज्ञात करके उस पिंड की दूरी की गणना की जा सकती है, जिससे ध्वनि तरंग परावर्तित हुई है ।
माना पराध्वनि संकेत के प्रेषण तथा अभिग्रहण का समय अंतराल t है । तथा समुद्री जल में ध्वनि की चाल v है, तब यदि d गहराई पर पिंड है , तो सतह से पिंड और वापस जहाज की दूरी 2D होगी।
तब = 2d = v × t होगा ।
* चित्र :— सोनार

प्रश्न 39. मानव कर्ण की संरचना का सचित्र वर्णन करते हुए , सुनने की क्रिया विधि बताओ?
उत्तर * संरचना :– कान की संरचना में बाहरी कान को कर्ण पल्लव कहते हैं । यह परिवेश से ध्वनि एकत्रित करके श्रवण नलिका को भेजता है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक पतली झिल्ली होती है, जिसे कर्ण पटल कहते हैं । ध्वनि के संपीडन के कर्ण पटल पर पहुंचने से झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है, और यह कर्ण पटल को अंदर की ओर दबाता है। तथा विरलन के समय कर्ण पटल बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार कर्ण पटल कंपन करता है।
* मध्य कर्ण :– इसमें स्थित तीन हड्डियों मुग्दरक , निहाई एवं वलयक इन कंपनोंं को कई गुना कर देती है। मध्य कर्ण इन दाब परिवर्तनों को आंतरिक कर्ण तक संचरित कर देता है।
* आंतरिक कर्ण :– इसमें कणावृत द्वारा परिवर्तनों का विद्युत संकेतों में परिवर्तित करके मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है। और मस्तिष्क इसकी ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है।
* सुनने की क्रियाविधि :– हम हमारे कानों द्वारा ध्वनि सुन पाते हैं । कान वायु में संचरित ध्वनि में सुनने योग्य आवृत्तियाँ के संगत दाब परिवर्तनों की वायु संकेतों में बदलता है। जो श्रवय तंत्रिका द्वारा हमारे मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।
* चित्र :–कर्ण की संरचना

प्रश्न 40. राडार क्या है ? इसके उपयोग बताइए।
उत्तर राडार एक वैज्ञानिक उपकरण है। रडार का आविष्कार ट्रेलर व लियू यंग ने वर्ष 1922 में किया था। यह यंत्र आंतरिक में आने – जाने वाले वायुयानों के संसूचक व उसकी स्थिति ज्ञान करने के काम आता है । राडार एक यंत्र है, जिसकी सहायता से रेडियो तरंगों का उपयोग दूर की वस्तुओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।
* राडार के उपयोग :–
1. राडार के कारण युद्ध में साहस आक्रमण प्राय: असंभव हो गया है।
2. इसके द्वारा जहाजों, वायुयानों, व रोकेटों के आने की पूर्ण सूचना मिल जाती है।
3. वायुयानों पर भी राडार यंत्रों से आगंतुक वायुयानों का पता चलता रहता है इन यंत्रों की सहायता से आक्रमणकारी विमान लक्ष्य तक पहुंचाया जाता है, तथा यह वापस आने में भी सफल होते हैं।
4. केंद्रीय नियंत्रण स्थान से राडार के द्वारा 299 मील की व्यास में चतुविद ऊपर – नीचे आकाश में क्या हो रहा है , इसका पता लगाया जा सकता है।
5. रात्रि या दिन में समुद्र के ऊपर निकली नौकाओं तथा आते – जाते जहाजों का पता लगाया जा सकता है ।
6. ,दुश्मन के जहाजों पर तोपों का सही निशाना लगाया जा सकता है।
7. शांति के समय भी राडार अनेक सुरक्षित बन गया है । क्योंकि इसके द्वारा चालकों को दूर स्थित पहाड़ों, टीमशैलों एवं रुकावटों का पता चल जाता है।
8. राडार से वायुयानों को पृथ्वी तल से अपनी सही ऊंचाई ज्ञात होती रहती है। व रात्रि में हवाई अड्डे पर उतरने में बड़ी सहूलियत होती है।
प्रश्न 41. राडार के द्वारा स्थिति का निर्धारण व दिशा को ज्ञान कैसे होता है?
उत्तर स्थिति निर्धारण की पद्धति :– राडार से रेडियो तरंगे भेजी जाती है , व दूर की वस्तु से परावर्तित होकर उनके वापस आने में लगने वाले समय को बनाया जाता है। लक्ष्य वस्तु की दिशा का ठीक-ठीक पता चल जाता है । राडार का प्रेषित, नियमित अंतरालों के बीच के समय में राडार का ग्राही यदि बाहरी किसी वस्तु से परावर्तित होकर तंरगे आए विद्युत परिपंथो द्वारा सही मालूम हो जाता है। व समय के अनुपात में अंकित सूचक से दूरी तुरंत मालूम हो जाती है।
राडार के ग्राही तंत्र की ऋणाग्र – किरण नली में विद्युत की स्थिति स्पष्ट दिखाई देती है।
* दिशा का ज्ञान :– लक्ष्य का पता लगने के लिए एंटीना को घुमाते हैं। तथा उसे आगे – पीछे करते हैं। जब एंटीना लक्ष्य की दिशा में होता है, तब लक्ष्य का प्रतिरूप ऋणाग्र – किरण नली के फलक पर प्रकट होता है , इस प्रतिरूप को ” पिप ” कहते हैं ।
पिप सबसे अधिक स्पष्ट तभी होता है , जब एंटीना सीधे लक्ष्य की दिशा में होता है। राडार यंत्र में लगे विशेष प्रकार के परावर्तक किरण पूंजो को सघन बनाते हैं। राडार के कार्य के लिए अति लघु तरंग दैर्ध्य वाली अर्थात् अत्युच्च आवृत्ति की तरंगों का उपयोग किया जाता है। इन सूक्ष्म तरंगों के उत्पादन के लिए मल्विटकैविटी मैग्नेट्रॉन नामक उपकरण आवश्यक है। जिसके बिना आधुनिक राडार का कार्य संभव नहीं है।
प्रश्न 42. राडार के अवयव व उनकी क्रिया को सचित्र समझाइए ?
उत्तर मोडुलेटर :– मोडुलेटर से रेडियो आवृत्ति दोलित्त को दिए जाने वाले विद्युत शक्ति के आवश्यक विस्फोट प्राप्त होते हैं। रेडियो आवृत्ति दोलित उच्च आवृत्ति वाली शक्ति के उन स्पंदो को उत्पन्न करता है, जिनसे राडार के संकेत बनते हैं। एंटीना द्वारा यह स्पंद आकाश में भेजे जाते हैं। और एंटीना ही उन्हें वापसी में ग्रहण करता है।
2. ग्राही :– वापस आने वाले रेडियो तरंगों का पता लगा पाता है ।
3. सूचक :– सूचक राडार परिचालक को रेडियो तरंगों द्वारा एकत्रित की गई सूचनाएं देता है।
तुलयकालन :– तुल्यकालन तथा परास की माप के अनिवार्य कृत्य मोडुलेटर व सूचना सूचक द्वारा संपन्न होते हैं। यू तो जिस विशेष कार्य के लिए राडार यंत्र का उपयोग किया जाने वाला है, उनके अनुरूप इसके प्रमुख अवयवों के भी बदलना आवश्यक होता है।
* चित्र :– राडार के अवयव एवं क्रिया —

Notes In Hindi

नींव की ईंट – रामवृक्ष बेनीपुरी

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