1935 का भारत शासन अधिनियम

1935 का भारत शासन अधिनियम1935 का भारत शासन अधिनियम

भारत में संवैधानिक विकास — (1935 का भारत शासन अधिनियम )
प्रश्न 1. ‘श्वेत पत्र’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर भारत की संवैधानिक समस्या के निराकरण के लिए 1930, 1931 व 1932 में ब्रिटिश शासन द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलनों में किए गए विचार के आधार पर मार्च 1933 में भावी सुधार योजना के संबंध में ‘एक श्वेत पत्र’ ( वाइट पेपर ) प्रकाशित किया गया।
प्रश्न 2. 1935 के अधिनियम में कुल कितनी धाराएं व अनुसूचियां थी?
उत्तर 1935 के अधिनियम में 451 धाराएं व 15 अनुसूचियां थी।
प्रश्न 3. 1935 के अधिनियम में उल्लेखित अखिल भारतीय संघ की योजना क्या थी?
उत्तर यह प्रस्तावित संघ 11 ब्रिटिश प्रांतों , 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और देशी रियासतों से मिलाकर बनेगा, जो स्वेच्छा से इस संघ में सम्मिलित होना चाहेंगे । ( ब्रिटिश प्रांतों को संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था , वही देशी रियासतों के लिए एच्छिक )। इस संघ की स्थापना तभी की जाएगी जब समस्त देशी रियासतों के कुल क्षेत्र की 50% जनसंख्या की आधी रियासतें संघ में शामिल होने की इच्छा प्रकट करें।
प्रश्न 4. संघीय व्यवस्था के क्या दोष थे ?
उत्तर संघीय योजना में अनेक दोष थे —
1. संघ में इकाईयों के शामिल होने की अनिवार्यता सभी के लिए समान नहीं :– ब्रिटिश प्रांत का संघ में मिलना आवश्यक था, परंतु देशी रियासतों को उनकी इच्छा पर छोड़ दिया गया । कुछ देशी रियासतें संघ में शामिल होने के इच्छुक थी, परंतु अधिकांश नहीं।
2. समान स्तर का अभाव :– केंद्र व प्रांतों के मध्य संवैधानिक व कार्यकारी शक्तियों के प्रसार में समानता थी , वहीं पर देसी रियासतों के मामलों में समरूपता नहीं थी।
3. संघ इकाइयों में स्वायत्तता की कमी :– अखिल भारतीय संघ में प्रांत में देशी रियासतों को स्वायत्तता प्राप्त थी । परंतु केंद्रीय शासन में पूर्णत: उत्तरदाई सरकार नहीं थी । गवर्नर जनरल को प्रमुख शक्तियां प्राप्त थी । और वह किसी के प्रति उत्तरदाई नहीं था।
4. संघीय व्यवस्था में एकात्मक तत्व :– गवर्नर जनरल को प्रांतीय मामलों में हस्तक्षेप करने का असीम अधिकार प्राप्त थे। इस कारण इकाइयों की स्वायत्तता सीमित हो गई थी ।जबकि संघ में ऐसा नहीं होता था है।
5. शक्तियों का विभाजन ठीक नहीं :– संघीय योजना अनुसार केंद्र व प्रांतों के मध्य शक्तियों का बंटवारा किया गया । केंद्र, प्रांत व समवर्ती सूची शक्तियों का विभाजन करती थी। परंतु अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल के पास , देशी रियासतों में प्रशासकों के पास थी।
प्रश्न 5 केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना किस अधिनियम द्वारा और कैसे की गई ?
उत्तर केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना 1935 के अधिनियम द्वारा हुई। इस अधिनियम द्वारा द्वैध शासन को प्रांतों में समाप्त कर क्रेंद्र में लागू किया गया। यह व्यवस्था पहले से ही दोषपूर्ण थी। सुरक्षा, विदेशी मामले , धार्मिक तथा कबायली क्षेत्रों की व्यवस्था आदि (केंद्रीय विषयों) को गवर्नर के हाथ में सुरक्षित रखा गया, ताकि वह अपने विवेक से उनके प्रशासन का संचालन कर सके।
इन विभागों के प्रशासन संचालन हेतु अधिकतम 3 परामर्शदाताओ की नियुक्ति कर सकता था । अन्य विषयों के प्रबंधन हेतु गवर्नर जनरल की सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जिसमें अधिकतम 10 संख्या हो सकेगी इस मंत्रिमंडल को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई रहते हुए सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के आधार पर कार्य करना था।
प्रश्न 6. 1935 के अधिनियम में शक्ति विभाजन प्रमुख विशेषता थी। समझाइए?
उत्तर शक्ति विभाजन प्रस्तावित संघ की स्थापना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु केंद्रीय व प्रांत सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया । तीन सूचियों की व्यवस्था की गई :–
1. संघ सूची :– इसमें राष्ट्रीय महत्व के 59 विषय रखे गए , जिनमें जल , थल , वायु सेना , विदेशी मामले, डाक, तार , मुद्रा व संघ लोक सेवाएं , संचार, बीमा तथा बैंक आदि । इन पर केंद्रीय विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार था ।
2. प्रांतीय सूची :– इसमें स्थानीय महत्व के 54 विषय थे। जिनमें शांति, न्याय, न्यायालय , प्रांतीय लोक सेवाएं , स्थानीय स्वशासन , अस्पताल व जन स्वास्थ्य, कृषि , नहरें , जंगल, शिक्षा ,सड़क आदि। जिन पर प्रांतीय सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया ।
3. समवर्ती सूची :– इसमें 36 विषयों अर्थात् दीवानी व फौजदारी कानून, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, दत्तक स्वीकार करना, ट्रस्ट , कारखाने तथा श्रम कल्याण आदि। इन विषयों पर केंद्र व प्रांत दोनों सरकारें कानून बना सकती थी। परंतु मतभेद की स्थिति में संघीय व्यवस्थापिका का कानून ही मान्य होगा।
4. अवशिष्ट शक्तियां :– यह शक्तियां गवर्नर जनरल को सौंपी गई थी। वह चाहे जिस विधान मंडल ( केंद्र व प्रांत ) से कानून बनवा सकता था ।
प्रश्न 7. 1935 के अधिनियम में विधान मंडल का गठन एवं मताधिकार का विस्तार किस प्रकार किया गया?
उत्तर इस अधिनियम में संविधान का स्वरूप द्विसदनीय रखा गया । जिसमें एक सदन संसदीय विधानसभा और दूसरा सदन राज्य परिषद् था। संघीय विधानसभा की सदस्य संख्या 375 और राज्य परिषद् की सदस्य संख्या 260 निर्धारित की गई। विधानसभा का चुनाव अप्रत्यक्ष व राज्य परिषद् का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया से किया जाना था । प्रांतीय स्तर पर 11 में से 6 विधान मंडलों को द्विसदनीय बनाया गया।
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया। राज्य परिषद् एक स्थाई सदन था। जिसके सदस्य 9 वर्ष के लिए चुने जाते थे । किंतु 1/3 सदस्य हर तीसरे वर्ष अवकाश ग्रहण ( रिटायर होते ) करते थे ।
विधानसभा को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मंत्रिपरिषद् को हटाने का अधिकार प्राप्त था। विधान मंडल सदस्य मंत्रियों से प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछ कर, कई तरह के प्रस्ताव लेकर, नियंत्रण रख सकते थे । बजट के मामले में लगभग 80% अनुदान मांगों पर विधानमंडल का नियंत्रण किया गया।
प्रश्न 8. 1935 के अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय न्यायालय के बारे में बताइए?
उत्तर 1935 के अधिनियम द्वारा एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई । जिसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक फैला हुआ था । न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश, दो अन्य न्यायाधीश होंगे । न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष रखी गई । मुख्य न्यायाधीश को ₹7000 व अन्य न्यायाधीशों को ₹5500 मासिक वेतन निर्धारित किया गया। इस न्यायालय को मौलिक व अपीलीय संबंधी अधिकार दिए गए। न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने , केंद्र व प्रांत सरकारों को एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोकने का अधिकार दिया गया। इस क्षेत्र में अंतिम अपील ब्रिटेन स्थित ‘ प्रिवी परिषद् ‘ में की जा सकती थी ।
प्रश्न 9. भारत परिषद् का अंत किस अधिनियम के तहत किया गया?
उत्तर 1935 के अधिनियम के तहत किया गया।
प्रश्न 10. 1935 के अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार किस प्रकार किया गया?
उत्तर आंग्ल भारतीयों , भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों व हरिजनों के लिए इस पद्धति का विस्तार किया गया। केंद्रीय विधानमंडल के दोनों सदनों में मुस्लिम को लगभग 1/3 प्रतिनिधित्व दिया गया , जो उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक था।

1935 का भारत शासन अधिनियम

प्रश्न 11. बर्मा, बरार और अदन के संबंध में 1933 के अधिनियम द्वारा क्या प्रावधान किए गए?
उत्तर 1935 के अधिनियम द्वारा ‘बर्मा’ को भारत से अलग कर दिया गया । ‘अदन’ को भारत सरकार के नियंत्रण से मुक्त करके 1 अप्रैल 1937 को इंग्लैंड के औपनिवेशिक विभाग के अधीन कर दिया गया। यद्यपि ‘बरार’ के ऊपर निजाम हैदराबाद की नाममात्र की सत्ता स्वीकार की गई , परंतु व्यवहारिक शासन की दृष्टि से उसे भी मध्य प्रांत का अंग बना दिया गया ।
प्रश्न 12. प्रांतीय स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर। प्रांतीय स्वायत्तता के दो अर्थ लिए जा सकते हैं। प्रथम अर्थ यह है कि प्रांतों को अपने एक निश्चित क्षेत्र में स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने का अधिकार होना चाहिए। अर्थात निश्चित क्षेत्र में, वे केंद्रीय नियंत्रण या बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्र होने चाहिए । प्रांतीय स्वायत्तता दूसरे अर्थ में प्रांतों में उत्तरदाई शासन की स्थापना से है । अर्थात प्रांत में शासन सत्ता ऐसे लोकप्रिय मंत्रियों के हाथ में होनी चाहिए , जो विधानमंडल के प्रति और विधानमंडल के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदाई हो ।
प्रश्न 13. 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतीय स्वायत्तता पर बाह्य प्रतिबंध क्या लगे थे?
उत्तर प्रांतीय स्वायत्तता पर बाह्य प्रतिबंध :– इसे बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए था। लेकिन केंद्रीय हस्तक्षेप की अनेक व्यवस्थाएं 1935 के अधिनियम में की गई थी ।
1. संकटकालीन स्थिति की घोषणा :– अधिनियम की धारा 102 में उल्लेखित था, कि गवर्नर जनरल गंभीर आंतरिक व्यवस्था या अशांति तथा युद्ध के वास्तविक किया संभावित खतरों की स्थिति में संकटकालीन स्थिति की घोषणा करेगा । इस घोषणा के बाद केंद्रीय विधान मंडल को प्रांतीय सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार मिल जाएगा।
2. प्रांतों पर केंद्र का नियंत्रण :– अधिनियम की धारा 156 के अंतर्गत गवर्नर जनरल प्रांतीय सरकारों को भारत में शक्ति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक निर्देश जारी कर सकेगा।
अधिनियम की धारा 93 के अनुसार प्रांत में गवर्नर को संवैधानिक तंत्र विफल होने की घोषणा करने का अधिकार दिया गया। इस स्थिति में प्रांतीय शासन का संचालन गवर्नर स्वयं या गवर्नर जनरल के निर्देशन में करेगा।
3. प्रांतीय कानूनी क्षेत्र में गवर्नर जनरल का नियंत्रण :— कुछ विशेष प्रकार के विधेयक अथवा संबोधन गवर्नर जनरल की पूर्व अनुमति के बिना प्रांतीय विधानमंडल में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते थे।
4. गवर्नर द्वारा प्रांतीय विधान मंडलों द्वारा पारित विधेयकों को, गवर्नर जनरल की स्वीकृति , गवर्नर जनरल चाहे तो उन्हें भारत मंत्री के माध्यम से ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकता था।
5. गवर्नर जनरल के विशेष उत्तरदायित्व :– इनकी पूर्ति हेतु गवर्नर जनरल प्रान्तिय क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता था । वह प्रांतीय मंत्रियों को आवश्यक निर्देश दे सकता था।

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प्रश्न 14. 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतीय स्वायत्तता पर आंतरिक प्रतिबंध क्या लगे थे ?
उत्तर आंतरिक प्रतिबंध :– प्रांतीय शासन आंतरिक क्षेत्र में भी स्वतंत्र नहीं था। आंतरिक रूप से निम्न सीमाएं प्रांतीय स्वायत्तता पर थी।
1. प्रांत में गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष से बढ़कर :– प्रांतीय स्वायत्तता के लिए गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष की होनी चाहिए थी । परंतु गवर्नर वास्तविक अध्यक्ष था। संपूर्ण प्रांत, उसके अधीन था। उसे अध्यादेश जारी करने, गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख लेने के अधिकार प्राप्त थे ।
2. वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर की असीमित शक्ति :– प्रांत का बजट उसकी निगरानी में बनता था । उसे विधानमंडल से पारित कराने का दायित्व भी उसी का था। विधान मंडल द्वारा सुझाए गए किसी संशोधन को मानना और ना मानना गवर्नर की इच्छा पर निर्भर था।
3. मंत्रियों का गवर्नर का नियंत्रण :– प्रांत में मंत्रियों की नियुक्ति तथा उनके मध्य विभागों के बंटवारे का दायित्व गवर्नर का था । मंत्रिमंडल की बैठक भी गवर्नर द्वारा बुलाई जाती थी । गवर्नर की यह शक्तियां प्रांतीय स्वायत्तता को पंगु बना देती थी।
4. मंत्रियों के साथ सिविल सेवा के पदाधिकारियों का असहयोगी व्यवहार भी प्रांतीय स्वायत्तता के लिए घातक था।
इस आधार पर कहा गया है कि प्रांतीय स्वायत्तता एक दिखावा है। अतः भारतीयों ने इसके प्रति असंतोष जताया और प्रांतों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग की गई।
प्रश्न 15. 1935 के अधिनियम के अनुसार प्रांतीय स्वायत्तता का क्रियान्वयन कब और किस प्रकार किया गया?
उत्तर ब्रिटिश शासन द्वारा 1935 के अधिनियम में उल्लेखित प्रांतीय स्वायत्तता को लागू करने का प्रयास किया गया। 1937 में चुनाव कराने की तिथियां घोषित की गई। 3 अप्रैल 1937 तक चुनाव संपन्न हुए। 11 में से 6 प्रांतों ( संयुक्त प्रांत , बिहार , उड़ीसा, मुंबई , मद्रास और मध्य प्रांत ) में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत, तीन प्रांतों ( असम , बंगाल व उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत) में कांग्रेस बड़े दल के रूप में तथा पंजाब में कम्युनिस्ट पार्टी और सिंध में मुस्लिम लीग बहुमत में थी ।

1935 का भारत शासन अधिनियम
प्रश्न 16. भारत के वर्तमान संविधान पर 1935 के अधिनियम के कौन से लक्षण परिलक्षित (दिखते) हैं?
उत्तर 1. संघीय योजना :– 1935 के अधिनियम में प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना, आज के भारतीय संघ में देखी जा सकती है । संघ की इकाई, केंद्र को अधिक शक्ति देने , शक्ति विभाजन की व्यवस्था आदि 1935 के अधिनियम से प्रभावित है ।
2. द्विसदनीय विधानमंडल का विचार :– वर्तमान संविधान में केंद्र व कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल की जो व्यवस्था की गई है। वह 1935 के अधिनियम पर आधारित है ।
3. राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा होने पर उनके शासन प्रबंध को केंद्र अपने हाथ में (राष्ट्रपति के माध्यम से ) ले सकता है, यह 1935 के अधिनियम में उल्लेखित व्यवस्था पर आधारित है ।
4. राज्यपाल का पद :– आज भारतीय संविधान में वर्णित राज्यपाल पद की अधिकांश व्यवस्था, 1935 के अधिनियम में उल्लेखित गवर्नर के पद के प्रावधानों को संशोधित रूप में अपना लिया गया है ।
5. भारत का वर्तमान संविधान :– 1935 के अधिनियम के समान एक विस्तृत वैधानिक प्रलेख (डॉक्यूमेंट) है। इसमें भी केंद्र सरकार के प्रमुख अंगो के साथ-साथ प्रांतीय सरकारों की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है।
6. संघीय कानून और राज्य के कानून में विरोध होने की स्थिति में संघीय कानून को मान्यता (धारा 251) देने की बात कही गई है। वह 1935 के अधिनियम की धारा 107 के प्रावधान पर आधारित है ।
7. वर्तमान संविधान में राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा से संबंधित प्रावधान धारा 352 व 353 की भाषा, 1935 के अधिनियम की धारा 102 से मिलती-जुलती है।
8. राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग, संघीय संसद व कार्यपालिका के निर्देशानुसार किया जाएगा । (वर्तमान संविधान की धारा 256), 1935 के अधिनियम की धारा 126 के अनुरूप है।
प्रश्न 17. 1935 के अधिनियम के मूल्यांकन बिंदु लिखो ?
उत्तर 1. इंग्लैंड में आलोचना।
2. अधिनियम निरर्थक है।
3. यह अधिनियम एक धोखा व मुखौटा मात्र था ।
4. भारत की समस्या का समाधान नहीं ।
5. भारतीय जनता के प्रतिनिधियों का शामिल न होना।
6. दोषपूर्ण संघीय व्यवस्था।
7. प्रांतीय स्वायत्तता एक धर्म।
8. संरक्षण का आरक्षण की व्यवस्था दोषपूर्ण।
9. सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली का विस्तारित अहितकर ।
10. आत्म निर्णय का अधिकार नहीं ।

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