1909 व 1919 के अधिनियम
भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि ( 1909 व 1919 के अधिनियम )
प्रश्न 1. भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर 1600 ई. में ।
प्रश्न 2. EIC पर सरकारी नियंत्रण (पार्लियामेंट) के नियंत्रण हेतु कौन सा एक्ट आया?
उत्तर 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा EIC पर पार्लियामेंट के नियंत्रण की शुरुआत हुई।
प्रश्न 3. 1909 के भारत शासन अधिनियम के समय भारत का वायसराय और भारत सचिव कौन था?
उत्तर वायसराय (लॉर्ड मिंटो) व भारत सचिव ( लॉर्ड मार्ले ) था।
प्रश्न 4. 1909 के अधिनियम द्वारा केंद्रीय विधान परिषद् में क्या सुधार किए गए ?
उत्तर केंद्रीय विधान परिषद् के संगठन में सुधार कर, इसकी अतिरिक्त सदस्य संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गई। जिसमें 37 सरकारी सदस्य एवं 23 गैर सरकारी सदस्य होते थे। जो निर्वाचित होते थे । और 9 पदेन ( स्थाई ) सदस्य होते थे , जिन्हें मनोनीत किया जाता था। इस तरह कुल संख्या 69 सदस्य होंगे। निर्वाचित सदस्यों के चयन हेतु निर्वाचक मंडल को तीन श्रेणियों में बांट दिया गया।
1. सामान्य निर्वाचक वर्ग
2. वर्गीय निर्वाचक वर्ग
3. विशिष्ट निर्वाचक वर्ग ।
प्रश्न 5. प्रांतीय विधान परिषदों के संगठन व अधिकार में 1909 के अधिनियम द्वारा क्या सुधार किए गए ?
उत्तर इस अधिनियम द्वारा प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में भी संशोधन किया गया । इनकी सदस्य संख्या 30 – 50 के बीच निर्धारित की गई। मद्रास, मुंबई व बंगाल प्रांत की विधान परिषदों की सदस्य संख्या 20 से बढ़ाकर 50, संयुक्त प्रांत , पूर्वी बंगाल तथा असम प्रांतों के लिए 15 से बढ़ाकर 50, पंजाब बर्मा के लिए 9 से बढ़ाकर 30 कर दी गई थी ।
प्रश्न 6. 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा भारत सचिव, वायसराय एवं प्रांतीय गवर्नरों की कार्यकारी परिषद् में संशोधन कर किस प्रकार/ कितने भारतीय सदस्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया?
उत्तर भारत सचिव की परिषद में 2 भारतीय सदस्य होंगे । वायसराय की कार्यकारी परिषद् में एक भारतीय सदस्य बनाया गया था। मद्रास और बंबई के गवर्नरों की कार्यकारी परिषद् की सदस्य संख्या 2 से बढ़ाकर 4 की गई । जिसमें कम से कम 2 सदस्य होंगे , जिन्हें 12 वर्ष तक भारत में राजमुकुट (ब्रिटिश शासन) की सेवा करने का अनुभव हो।
प्रश्न 7. 1909 के अधिनियम द्वारा मताधिकार प्रतिनिधित्व के संबंध में क्या प्रावधान किए गए?
उत्तर 1909 के अधिनियम द्वारा जनता को मताधिकार दिया गया। परंतु सीमित लोगों के लिए ही व्यवस्था की गई । मताधिकार के लिए अलग – अलग प्रांत में अलग-अलग मापदंड रखे गए। मद्रास में जिन जमीदारों की वार्षिक आय ₹15000 थी, या जो ₹10000 भू राजस्व सरकार को देते थे , उन्हे मताधिकार दिया गया। बंगाल में ‘राजा’ या ‘नवाब’ की उपाधि जिनके पास थी, मध्य प्रांत में मजिस्ट्रेट की मानद अवधि प्राप्त को मताधिकार दिया गया । उसी तरह मुसलमानों के लिए भी मताधिकार देने के वास्ते अलग – अलग प्रांत में अलग – अलग तय किए गए।
प्रश्न 8 भारत परिषद अधिनियम 1909 अपने उद्देश्य में कितना सफल हुआ मूल्यांकन कीजिए ?
उत्तर 1. सांप्रदायिक निर्वाचन का प्रारंभ :— इस अधिनियम के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली प्रारंभ की गई । विभिन्न हितों व वर्गों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया । मुसलमानों, वाणिज्य संघों , जमीदारों आदि के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए गए ।
” याद रखना कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर हम ऐसे घातक विष के बीज बो रहे हैं जिसकी फसल कड़वी होगी ” यह कथन भारत सचिव लॉर्ड मार्ले ने कहा था ।
2. विधान परिषदों की सीमित शक्तियां व सरकारी बहुमत :– इस अधिनियम द्वारा विधान परिषद् सदस्यों को दी गई शक्तियां बहुत कम थी। वह कार्यकारिणी सदस्यों से प्रश्न पूछ सकते, लेकिन कार्यकारिणी सदस्य सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं थे।
3. केंद्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत :– 1909 का अधिनियम केंद्रीय विधान परिषद् में सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था, जिससे गैर सरकारी सदस्यों की स्थिति कमजोर थी।
4. सीमित व पक्षपातपूर्ण मताधिकार :– 1909 के अधिनियम में जनता को प्रदत मताधिकार सीमित व पक्षपात पूर्ण था। मुसलमानों में मध्यवर्गीय जमींदार, व्यापारियों और स्नातकों को मताधिकार दिया गया। परंतु इस श्रेणी के गैर मुसलमानों को मताधिकार से वंचित रखा गया।
5. उत्तरदायी शासन स्थापना का प्रयास नहीं :– भारतीय लोग राष्ट्रीय आंदोलन के माध्यम से उत्तरदायी शासन की मांग काफी समय से करते आ रहे थे। लेकिन 1909 के अधिनियम में उत्तरदाई शासन की स्थापना नहीं की गई । इसका उद्देश्य मात्र कुछ भारतीयों को कानून निर्माण व अन्य प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण देना था।
प्रश्न 9. ‘मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार’ को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर. भारतीय शासन अधिनियम 1919 के नाम से।
प्रश्न 10. भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली कब स्थानांतरित हुई?
उत्तर दिसंबर 1911 या जनवरी 1912 में हुई।
प्रश्न 11. 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना लिखो ?
उत्तर 1. प्रशासन में भारतीयों का संपर्क बढ़ाया जाएगा ।
2. भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहेगा।
3. स्वशासन की संस्थाओं का विकास किया जाएगा।
4. भारत में ब्रिटिश नीति का लक्ष्य उत्तरदाई शासन की स्थापना होगी ।
5. उत्तरदाई शासन और स्वशासन की संस्थाओं की स्थापना का काम धीरे-धीरे और क्रमिक ढंग से होगा।
6. कब कितनी प्रगति हो, इसका निर्णय ब्रिटिश संसद के हाथों में रहेगा।
प्रश्न12. 1919 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं के बिंदु लिखिए ?
उत्तर 1. गृह शासन व भारतीय परिषद् में परिवर्तन।
2. भारतीय प्रशासन पर गृह सरकार के नियंत्रण में कमी ।
3. प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदाई शासन व द्वैध शासन की स्थापना ।
4. प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद् में भारतीयों का अधिक प्रतिनिधित्व।
5. प्रांतीय विधान परिषदों का पुनर्गठन ।
6. केंद्र में अनुत्तरदाई शासन।
7. केंद्रीय कार्यकारिणी परिषद् में अधिक भारतीयों की नियुक्ति ।
8. द्विसदनीय क्रेन्द्रिय विधानमंडल का निर्माण।
9. विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया गया।
10. शक्ति विभाजन।
11. निर्वाचन व मताधिकार से संबंधित प्रावधान ।
12. नरेश मंडल की स्थापना।
प्रश्न 13. किस अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन की स्थापना की गई ? समझाइए।
उत्तर प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन व द्वैध शासन की स्थापना :– 1919 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित किया गया। प्रांतीय शासन को दो भागों में बांटा गया :– 1. संरक्षित विषय 2. हस्तांतरित विषय।
संरक्षित विषयों का प्रशासनिक संचालन गवर्नर व उसकी कार्यकारिणी परिषद् के द्वारा किया जाता था । इन पर व्यवस्थापिका का कोई नियंत्रण नहीं था। हस्तांतरित विषय, लोकप्रिय मंत्रियों को सौंप दिए गए। जो व्यवस्थापिका के निर्वाचित बहुमत में से चुने जाते थे और उनके प्रति उत्तरदाई होते थे । प्रांतीय शासन को दो भागों में बांट देने की इस व्यवस्था को ही ‘द्वैध शासन’ व्यवस्था का नाम दिया गया था।
प्रश्न 14. 1919 के अधिनियम द्वारा निर्मित केंद्रीय विधानमंडल का निर्माण किस प्रकार हुआ ? समझाइए।
उत्तर द्विसदनीय क्रेन्द्रीय विधान मंडल का निर्माण :- इस अधिनियम में केंन्द्रीय स्तर पर एकसदनीय विधानमण्डल के स्थान पर द्विसदनीय विधानमंडल का गठन किया गया। जिनके नाम 1. विधान सभा और 2. राज्य परिषद रखे गए।
विधानसभा में कम से कम 140 सदस्य होने थे। गठन के बाद यह संख्या 145 थी , जिसमें 104 निर्वाचित ( 52 सामान्य निर्वाचित क्षेत्र के , 32 सांप्रदायिक चुनाव क्षेत्रों के, ( जिसमें 30 मुसलमानों व दो सिखों द्वारा ) तथा 20 विशेष चुनाव क्षेत्रों ( 7 जमीदारों 9 यूरोपियनों तथा 4 व्यापार मंडलों के द्वारा ) चुने जाते थे।
राज्य परिषद् :– राज्य परिषद्. में अधिकतम 60 सदस्य हो सकते थे। जिसमें 33 निर्वाचित व 27 वायसराय द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे।
प्रश्न 15. 1919 के अधिनियम द्वारा मताधिकार संबंधी क्या प्रावधान किए गए ?
उत्तर निर्वाचन व मताधिकार संबंधी प्रावधान :– इस अधिनियम द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया आरंभ की गई और इसका विस्तार किया गया । लगभग 10% भारत की जनता को मताधिकार प्राप्त हुआ। मांटेग्यू- चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की निंदा की गई थी । परंतु इस अधिनियम में इसे ना केवल
मुसलमानों के लिए बनाए रखा गया , अपितु पंजाब में सिखों के लिए , तीन प्रांत छोड़ कर शेष प्रांतों में यूरोपियन के लिए , 2 प्रांतों में आंग्ल भारतीयों के लिए और एक प्रांत में भारतीय ईसाइयों के लिए लागू कर दिया गया।
प्रश्न 16. नरेश मंडल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर नरेश मंडल की स्थापना :– मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में देशी राजाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए एक नरेश मंडल के निर्माण का सुझाव दिया गया । 9 फरवरी 1921 को दिल्ली में नरेश मंडल की स्थापना की गई ।इस मंडल की कुल सदस्य संख्या 121 थी , जिसमें 109 बड़ी रियासतों की प्रतिनिधि एवं 12 सदस्य छोटी रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में रखे गए । इस मंडल का प्रधान वायसराय था। मंडल (चेंबर) एक परामर्शदात्री / सभा के रूप में काम करने लगा।
प्रश्न 17. द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर द्वैध शासन को अंग्रेजी में , Starchy (डायर्क) कहा जाता है, जो ग्रीक भाषा के ‘डाई’ (di) और ‘आर्की’ (archie )से बना है। जिसका तात्पर्य क्रमश: ‘दोहरे’ और ‘शासन’ से था। इस प्रकार द्वैध शासन का अर्थ था “दोहरा शासन” ।
प्रश्न 18. 1919 के अधिनियम द्वारा कितने प्रांतों में द्वैध शासन की स्थापना की गई?
उत्तर द्वैध शासन का क्रियान्वयन :— 1 अप्रैल 1921 से भारत के 8 प्रांतों — बंगाल, बिहार , मद्रास , मुंबई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, और पंजाब में द्वैध शासन की व्यवस्था को लागू कर दिया गया। 1932 में उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में भी इसे लागू किया गया।
प्रश्न 19. द्वैध शासन के अंतर्निहित दोषों को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर 1. सिद्धांतत: दोषपूर्ण :– द्वैध शासन प्रणाली सैद्धांतिक दृष्टि से दोषपूर्ण थी । एक ही प्रांत की शासन व्यवस्था को दो भिन्न और अलग-अलग प्रकृति की शक्तियों के अधीन कर देने से शासन में गतिरोध उत्पन्न होना स्वाभाविक था। शासन में एक आंगिक एकता होती है । परस्पर सहयोग से काम चलता है ।
2. विषयों का अविवेकपूर्ण व अव्यवहारिक विभाजन :– विभाजन की अव्यवहारिकता मतभेदों को जन्म देती थी। प्रत्येक मंत्री को वित्त व अन्य विभागीय व्यय के लिए शासन के संरक्षित भाग पर निर्भर रहना पड़ता था । कृषि मंत्री को सिंचाई सुविधाएं जुटाने के लिए शासन के संरक्षित भाग की ओर देखना पड़ता था।
3. सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का अभाव :– गवर्नर मंत्रियों की नियुक्ति दलीय जातीयता के आधार पर करने के बजाए , प्रांतीय विधान परिषद् के विभिन्न दलों , समूहों व गुटों के प्रतिनिधियों में से करते थे। कभी गवर्नर दो विरोधी दलों से मंत्री बना देता था। इस कारण मंत्रियों में वैचारिक समरूपता का अभाव था। उनमें सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित नहीं हो पाई।
4. मंत्रियों की सिविल सेवाओं पर कोई नियंत्रण नहीं था :– उत्तरदाई शासन तभी सफल हो सकता है जब उस विभाग के स्थायी पदाधिकारी, संबंधित मंत्री के अधीन रहे। मंत्रियों के अधीन कार्यरत अधिकांश पदाधिकारी भारतीय सिविल सेवा के सदस्य होते थे । इनकी नियुक्ति , स्थानांतरण व पदोन्नति गवर्नरों के हाथ में दी गई थी , ना कि मंत्रियों के। अत: मतभेद की स्थिति में सिविल सेवक मंत्रियों के बजाय उच्चाधिकारी ही मानते थे ।
5. विधान परिषद का गठन दोषपूर्ण होना :– उत्तरदाई शासन की सफलता के लिए विधान परिषदों में संगठित दलों का होना भी जरूरी था। 1919 के अधिनियम द्वारा विधान परिषदों का जो गठन किया गया, वह बहुत ही दोषपूर्ण था । इनमें निर्वाचित सदस्यों का बहुमत नहीं था। 80% सदस्य सरकारी या सरकार द्वारा मनोनीत गैर सरकारी सदस्य होते थे । विशेष वर्गों के निर्वाचित सदस्य भी अक्सर गवर्नर का ही साथ देते थे। इस व्यवस्था में मंत्रियों के बजाय गवर्नर को ही अधिक प्रभाव प्राप्त होता था।
प्रश्न 20. 1919 के अधिनियम की असफलता ( द्वैध शासन) की असफलता की तात्कालिक कारण क्या थे ?
उत्तर कुछ बाहरी परिस्थितियां भी द्वैध शासन की असफलता के लिए उत्तरदाई रही ।
1. उस समय का राजनीतिक वातावरण अनुकूल नहीं :– देश में जलियांवाला बाग की घटना , खिलाफत आंदोलन, रौलेट अधिनियम जैसे कठोर दमनकारी कानून ने भारतीयों के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति अविश्वास व कटुता उत्पन्न कर दी । ब्रिटिश शासन द्वारा आरंभ किए गए सुधारों के प्रति भारतीय जनमानस में उदासीनता का भाव आ गया।
2. आर्थिक दुर्दशा और मैस्टर्न पंचाट :– 1920 में भयंकर अकाल पड़ा , भारतीय बाजारों में मंदी का माहौल, जनता की गरीबी से भारतीयों में असंतोष था । मैस्टन पंचाट द्वारा आधे से अधिक प्रांतों द्वारा केंद्र को अधिक अनुदान दिया जाना था । इससे आर्थिक स्थिति खराब हो गई । इनके अभाव में प्रांतीय सरकारें द्वैध शासन को ठीक से अपना न सकी ।
3. नौकरशाही व असहयोगी व्यवहार :– ब्रिटिश नौकर शाही भारतीय मंत्रियों के अधीन इमानदारी से काम करने को तैयार नहीं थी। इसे द्वैध शासन असफल रहा।
4. कांग्रेस व लीग का असहयोग :– कांग्रेस व मुस्लिम लीग में परस्पर सहयोग का अभाव था। अंग्रेजों की “फूट डालो राज्य करो” की नीति इनके बीच मतभेदों के बढ़ाने का काम करती रहती। दोनों में मंत्री परस्पर विवाद में उलझे रहते। अतः द्वैध शासन को असफल होना ही था । क्योंकि शासन परस्पर सहयोग से ही चलता है ।
प्रश्न 21. 1919 के अधिनियम व द्वैध शासन अधिनियम का महत्व व उपयोगिता बताइए?
उत्तर यह बात ठीक है कि द्वैध शासन व्यवस्था दोषपूर्ण थी और असफल रही। लेकिन यह कई दृष्टि से उपयोगी कही जा सकती है :–
1. भारतीयों को व्यापक स्तर पर मताधिकार मिला, जिससे भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा मिला।
2. नियमित रूप से होने वाले चुनावों से भारतीयों में सार्वजनिक जीवन के प्रति जागृति उत्पन्न की । भारतीयों को शासन की जानकारी मिली, उनका आत्मविश्वास जगा ।
3. लगभग सभी प्रांतों में पुरुष के साथ-साथ महिलाओं को भी मताधिकार प्राप्त हुआ।
4. द्वैध शासन के कारण सार्वजनिक सेवाओं के भारतीयकरण को प्रोत्साहन मिला।
5. प्रांतीय क्षेत्र में कार्य करने वाले भारतीय मंत्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में सुधार करने व सामाजिक कुरीतियां दूर करने में सराहनीय कार्य किया।
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