विकास की अवधारणा

विकास की अवधारणा

विकास की अवधारणा

विश्व के देशों को आर्थिक दृष्टि से दो भागों में बांटा जाता है।

1. विकसित देश
2. विकासशील देश
1. विकसित देशो की श्रेणी में वे देश आते हैं, जहाँ औद्योगिक विकास तीव्र गति से होने की कारण लोगों की आय में वृद्धि हुई और भौतिक सुख सुविधाएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । जैसे — इंग्लैंड, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जापान, आदि देश विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं।
2. विकासशील देशों में विकास की गति धीमी है। आवश्यक वस्तुओं का अभाव दिखाई देता है। अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। विकासशील देशों में आर्थिक पिछड़ापन दिखाई देता है। अपने पिछड़ेपन से उभरने के लिए यह देश निरंतर प्रयत्नशील है, इसलिए इन्हे विकासशील देश का जाता है। जैसे — भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया आदि देश इस श्रेणी में आते हैं।
* आर्थिक विकास :–
● परंपरागत धारणा में आर्थिक विकास एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कुल सकल राष्ट्रीय उत्पाद 5 से 7% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ता रहे। इसके साथ ही उत्पादन व रोजगार संरचना में इस प्रकार परिवर्तन हो कि उसमे कृषि का हिस्सा कम हो जाए और विनिर्माण क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढ़ता जाए ।
● परंपरागत धारणा में कृषि के स्थान पर औद्योगिकरण की गति को तेज किया जा सके।
● विकास की नवीन अवधारणा में आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य गरीबी, बेरोजगारी और समानता का निवारण रखा गया है ।
● यदि किसी देश में गरीबी के स्तर में कमी आ रही हो, बेरोजगारी का स्तर कम हो रहा हो, तथा आर्थिक असमानता कम हो रही हो , तो निश्चित ही उस देश का आर्थिक विकास हो रहा है।
● विकास की भारतीय अवधारणा के अनुसार देश में उपलब्ध सभी संसाधनों का आवश्यकतानुसार दोहन करते हुए और राष्ट्रहित में उनको सहयोग मे लाते हुए देश की आर्थिक संरचना और प्रौद्योगिकी में आवश्यक परिवर्तन लाना जिससे उत्पादन, आय और रोजगार में वृद्धि हो सके तथा लोगों को उपयुक्त व उत्तम जीवन स्तर प्रदान किया जा सके।
* विकास के आर्थिक सूचक :–
● किसी राष्ट्र के विकास को मापने के लिए निम्नलिखित तीन आर्थिक सूचक काम में लिए जाते हैं।
1 स्वास्थ्य, 2 शिक्षा, और 3 प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
● वर्तमान में विकास को ‘मानव विकास सूचकांक’ द्वारा मापा जाने लगा है।
● मानव विकास सूचकांक में शिक्षा, जीवन प्रत्याशा एवं व्यक्ति की क्रय शक्ति को प्रमुखता दी जाती है। अर्थात लंबा एवं स्वास्थ्य जीवन, शिक्षा एवं शैक्षिक योग्यताओं में अभिवृद्धि तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि किसी भी देश के मानव विकास को दर्शाते हैं ।
● संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( UNDP ) सन् 1990 से ‘प्रतिवर्ष’ इन मानव विकास सूचकांकों के आधार पर वार्षिक मानव विकास रिपोर्ट जारी करता है। जो वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की मानवीय विकास की स्थिति को प्रकट करती है ।
● मानव विकास सूचकांक 2014 के अनुसार सबसे पहले नंबर पर नार्वे देश था, जिसका मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.944 था। और
● मानव विकास सूचकांक वरीयता में भारत 135 नंबर पर है ,और भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य– 0.586 है।
* समावेशी विकास :–
● समावेशी विकास में समाज के सभी वर्गों को विशेषकर वंचित , पिछड़े एवं सीमांत वर्गों को साथ लेकर विकास किए जाने पर बल दिया जाता है।
● अर्थात विकास का हो ना तभी माना जाएगा, जब उसका लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से पहुंचे।
● समावेशी विकास में गरीबी की दर को नियंत्रित एवं विकास की गति को तेज कर विकास प्रक्रिया में सभी वर्गों को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाता है।
● सरकार की योजनाओं का मुख्य लक्ष्य ‘समावेशी विकास’ ही होता है।
* सतत विकास :–
● आर्थिक विकास एक विस्तृत एवं सतत धारणा है। यह आर्थिक आवश्यकताओं, वस्तुओं , प्रेरणाओं और संस्थाओं में गुणात्मक परिवर्तनों से संबंधित है।
● सतत विकास से तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है, जिसमें भावी पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए , वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाता है । सतत विकास को ‘धारक विकास’ भी कहा जाता है।
● आधुनिक विकास के परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण के कारण हमें विकास की अवधारणा को बदलने के लिए मजबूर किया है।
● विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण वन क्षेत्रों को काफी नुकसान पहुंचा। परिवहन मार्ग के बनाने के नाम पर पर्वतों को काटा गया , जिसका परिणाम हमें घटते खनिज संसाधन और मानसून की अनियमितता के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
● कृषि में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के उपयोग के कारण कई क्षेत्रों में भूमि बंजर व दूषित हो गई है। इससे भूमि से उत्पन्न खाद्य पदार्थ दूषित हो गए हैं , जिससे मानव पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है।
● विकास का वास्तविक अर्थ वह है जिसमें विकास मानव के लिए खुशहाली व समृद्धि लाए, जिसका लाभ वर्तमान ही नहीं भावी पीढ़ियों को भी मिल सके । यही सतत विकास है।
* विकासशील देशों के विकास में बाधाएँ :–
पूंजी की कमी, जनसंख्या की बहुलता, उत्पादन की पिछड़ी हुई तकनीक का प्रयोग, गरीबी का दुष्चक्र, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, आर्थिक असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का निम्न स्तर , तथा परिवहन संचार एवं भौतिक संसाधनों का अभाव यह सब स्थितियां विकासशील देशों को विकसित बनाने में बड़ी बाधाएं हैं।
भारत वर्तमान में विश्व में आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित हो रहा है । वर्तमान में ना केवल भारतीय वस्तुओं की मांग विश्व में बड़ी है , बल्कि हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान , प्रौद्योगिकी एवं विशेषज्ञों की मांग बढ़ना भी विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का द्योतक है।

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