महाराणा प्रताप  सप्रसंग व्याख्या

महाराणा प्रताप  सप्रसंग व्याख्या

महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप

1 वह मातृभूमि………………… हिम्मत वाला।

प्रसंग :-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी की कविता “महाराणा प्रताप” से ली गई है। इसमें महाराणा प्रताप के मातृभूमि पर बलिदान होने की भावना का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि महाराणा प्रताप मातृभूमि की रक्षा के लिए मर मिटने वाले वीरों में से एक थे। उन्होंने स्वतंत्रता और आत्म सम्मान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। हिमालय की तरह कभी ना विचलित होने वाला उनका गर्व था। वह ऐसे वीर थे, जिन्होंने कभी भी कष्टों के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने जो सोच लिया उसे वह कर के दिखाते थे, ऐसे प्रतापी वीर महाराणा प्रताप थे।

2 थे कई ……………………….वह अंगार।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को दिए गए प्रलोभन और अधीनता स्वीकार करने के बारे में और महाराणा प्रताप द्वारा उनको अस्वीकार करने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि मुगल सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए अनेक प्रकार के लालच दिए, लेकिन महाराणा प्रताप इनके सामने नहीं झुके। वह आजादी रुपी ऐसे सूर्य थे जिसकी चमक कभी कम नहीं हुई अर्थात उनके मन में मातृभूमि को सदैव स्वतंत्र रखने की भावना थी। महाराणा प्रताप ने नीले घोड़े चेतक पर सवार होकर हल्दीघाटी के मैदान में अकबर से जो युद्ध किया, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गया वह मेवाड़ की वीरता के ऐसे अंगारे थे जिसे अकबर जैसा शक्तिशाली राजा कभी नहीं बुझा सका।

महाराणा प्रताप

3 धरती जागी ……………… वसुधा राजभवन।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश में महाराणा प्रताप के कार्यों से प्रभावित होकर जब जनता ने उनको सहयोग देना प्रारंभ किया, उसका वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहता है कि महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि के लिए जो त्याग किया, उसी से प्रभावित होकर धरती, आकाश और मेवाड़ की जनता ने उन्हें सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। महाराणा प्रताप के साथ-साथ धरती और आकाश भी जागते रहते और मेवाड़ की जनता भी सावधान रहती है। उनकी गर्जना सुनकर ऐसा लगता हैं मानो दसों दिशाएं गरज रही हो। उनकी वीरता और विवेक से पवन (हवा)भी आश्चर्यचकित रह जाता हैं। महाराणा प्रताप का न केवल मेवाड़ पर बल्कि मेवाड़ की जनता पर भी शासन था। उन्होंने महलों से रिश्ता तोड़कर वनों का कठिन जीवन अपनाया। मातृभूमि के स्वतंत्र होने तक उन्होंने भूमि पर सोने का व्रत लिया। मेवाड़ की संपूर्ण धरती ही उनके लिए राजभवन थी।

4 वह जन-जन ……………वह झूमा।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश में महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहता है कि महाराणा प्रताप सदैव मेवाड़ की जनता का उत्थान करना चाहते थे। वह सबके भाग्य को बनाने वाले थे। उनके पास अकबर की तरह सैकड़ों हाथी, घोड़े और पैदल लोगों की सेना नहीं थी लेकिन वह एक अच्छे सेनानायक थे। उनकी छोटी सी सेना ने अकबर की विशाल का सेना को पराजित कर दिया। वह जंगल जंगल घूमते रहे और मार्ग में आने वाले सभी कांटे रूपी संकटों को हर्षपूर्वक स्वीकार करते रहे जैसे जैसे मुसीबतें बलवती हुई वैसे वैसे वह आनंदित होते गए और जितनी मुश्किलें बढ़ती गई उतना ही वह उत्साहित होकर उनका सामना करते गए।

5 सब विपक्ष …………….वह महाव्रती।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप के संघर्ष में जीवन और सत्य के प्रेमी स्वरूप का वर्णन किया है।

व्याख्या:-

प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहता है कि उस समय परिस्थितियां राणा प्रताप के पक्ष में नहीं थी। जैसे अकबर जैसा शक्तिशाली शत्रु, सेना का पुनः संगठन, धन की कमी आदि लेकिन वह सत्य पर अडिग थे। सत्य ही उनका एकमात्र बल था। पर उन्होंने अकबर से समझौता नहीं किया। वह बड़े धैर्य के साथ सारे संकटों को झेलते रहे। वह बड़े तेजस्वी पुरुष थे और भारतभूमि की अमूल्य धरोहर थे। यही कारण है कि आज भी उन्हें एक महापुरुष और प्रतिज्ञा पालक के रूप में आदर के साथ याद किया जाता है।

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