पाठ 2 सुभागी प्रेमचंद
पाठ 2 सुभागी प्रेमचंद
* अति लघुत्त्तरात्मक प्रश्न :–
प्रश्न 1. सुभागी ने घर का क्या-क्या काम संभाल रखा था?
उत्तर सुभागी ने घर का सारा काम संभाल रखा था । वह प्रतिदिन प्रातः जल्दी उठकर कूटने -पीसने में लग जाती, चौका-बर्तन करती, गोबर थापती और खेत में काम करने चली जाती। दोपहर में घर आकर जल्दी-जल्दी खाना बनाकर सबको खिलाती।
प्रश्न 2. ” लड़के से लड़की भली, जो कुलवंती होय” यह किसने और क्यों कहा?
उत्तर उपयुक्त कथन तुलसी महतो ने कहा क्योंकि गांव के पंचों के बीच रामू ने बेशर्मी से जवाब दिया और अपने माता पिता का अपमान करके चलता बना।
* लघुत्तरात्मक प्रश्न :–
प्रश्न 1. ” रत्न कितना कठोर निकला और यह दंड कितना मंगलमय।” तुलसी में ऐसा क्यों सोचा?
उत्तर तुलसी ने ऐसा इसलिए सोचा क्योंकि जब रामू का जन्म हुआ तो उसने बड़ी खुशी के साथ कर्ज लेकर उत्सव मनाया था और पुत्री सुभागी के पैदा होने पर रुपये होने पर भी उसने कोई खर्चा नहीं किया। परंतु आज वही रामू उनका अपमान कर रहा था और सुभागी उनकी सेवा कर रही थी।
प्रश्न 2. तुलसी महतो ने अंतिम समय सजनसिंह से क्या बात कही?
उत्तर तुलसी महतो ने अंतिम समय सजनसिंह से यह बात कही कि– “भैया ! अब तो चलन की बेला है।.सुभागी के पिता अब तुम ही हो। उसे तुम्हीं को सौंपें जाता हूँ और कुछ नहीं कहूँगा, भैया ! भगवान तुम्हें सदा सुखी रखे।” सजनसिंह ने रामू को बुलाकर लाने को कहा तो महतो ने कहा — “नहीं भैया , उस पापी का मुँह में नहीं देखना चाहता।
प्रश्न 3. लक्ष्मी ने अंतिम समय सुभागी को क्या आशीर्वाद दिया?
उत्तर लक्ष्मी ने अंतिम समय में यह आशीर्वाद दिया कि – “तुम्हारे जैसी बेटी पाकर मैं धन्य हो गई । मेरा क्रियाकर्म तुम ही करना । मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि अगले जन्म में भी तुम मेरी कोख से ही जन्म लो।”
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* दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न :–
प्रश्न 1. सुभागी के जीवन का कठोर व्रत क्या था और उसने उसे कैसे पूरा किया?
उत्तर सुभागी के जीवन का कठोर व्रत सजनसिंह से लिए तीन हजार (₹3000) चुकाने का था। उसने निश्चय किया जब तक वह रूपए चुका नहीं देती अन्य किसी कार्य के बारे में नहीं सोचेगी। उसने दिन-रात कठिन परिश्रम किया। वह प्रतिमाह तीन सौ ( ₹300 ) रुपए लेकर सजनसिंह के पास पहुंच जाती। 3 साल की साधना के बाद उसकी जीवन का कठोर व्रत पूरा हो गया।
प्रश्न 2. कहानी ‘सुभागी’ का सार अपनी भाषा में लिखिए?
उत्तर ‘सुभागी’ प्रेमचंद की बहुत प्रसिद्ध कहानी है। सुभागी तुलसी महतो की पुत्री है उसका और उसके भाई का विवाह हो गया था। किंतु सुभागी छोटी उम्र में ही विधवा हो गई थी उसने दूसरा विवाह नहीं किया। वह अपने घर का सारा काम करने के साथ-साथ माता-पिता की सेवा भी करती थी। एक दिन उसका भाई रामू झगड़ा करके माँ – बाप से अलग हो गया। कुछ दिनों बाद सुभागी के पिताजी की मृत्यु हो जाती है और उनके वियोग में उनकी पत्नी भी मर जाती है। पिता की तेरहवीं में गाँव के मुखिया सजनसिंह से लिए गए उधार रूपयों को अकेले ही परिश्रम करके चुकाती है। कहानी के अंत में सजनसिंह उसके परिश्रम और व्यवहार को देखकर उसे अपने घर की बहू बना लेता है।
* सोचे और बताएँ :–
प्रश्न 1. तुलसी महतो के कितने बच्चे थे?
उत्तर तुलसी महतो के दो बच्चे थे– रामू और सुभागी।
प्रश्न 2. तुलसी महतो अपनी बेटी सुभागी से बहुत प्यार करते थे, क्यों ?
उत्तर तुलसी महतो अपनी बेटी सुभागी से बहुत प्यार इसलिए करते थे क्योंकि वह छोटी उम्र में भी वह घर के कामों में चतुर और खेती – बाड़ी के काम में निपुण थी।
प्रश्न 3. तुलसी महतो ने गांव वालों को क्यों इकट्ठा किया था?
उत्तर तुलसी महतो ने गांव वालों को इसलिए इकट्ठा किया क्योंकि वह रामू को घर से अलग करना चाहते थे ।
प्रश्न 4. सजनसिंह ने सुभागी को अपनी पुत्रवधू के रूप में क्यों चुना?
उत्तर सजनसिंह ने सुभागी को अपने पुत्र वधू के रूप में इसलिए चुना क्योंकि वह उसके व्यवहार और परिश्रम को देखकर बहुत प्रभावित हुआ।
पाठ 2 सुभागी (प्रेमचंद)
* पाठ से आगे :–
प्रश्न 1. तुलसी महतो और लक्ष्मी अगर सुभागी को घर से अलग कर देते तो क्या होता?
उत्तर तुलसी महतो और लक्ष्मी अगर सुभागी को घर से निकाल देते तो वह असहाय हो जाती। माँ-बाप का सहारा ना मिलने पर वह टूट जाती। विधवा होने के कारण लोगों की गलत निगाहों का सामना करना पड़ता जिससे उसका जीवन बर्बाद हो जाता। सुभागी के माता-पिता पर भी अपने कर्तव्य का पालन न करने का आरोप लगता। उनका यह कार्य समाज में सदैव घृणा की दृष्टि से देखा जाता।
प्रश्न 2. अगर सुभागी अपने माता पिता की सेवा न करती तो उनका जीवन कैसा होता?
उत्तर अगर सुभागी अपने माता-पिता की सेवा ना करती तो उनका जीवन कष्टमय हो जाता क्योंकि उनका पुत्र रामू कामचोर और आवारा था। सुबह की ही उनकी सेवा करती थी और बीमारी के समय में सुभागी ने ही उनकी देखभाल की । अगर वह नहीं होती तो उसके माता-पिता का क्रिया-कर्म करने वाला कोई नहीं था। उसी ने सजनसिंह से रुपए उधार लेकर उनकी तेरहवीं का भोज किया था ।
प्रश्न 3. ” परिश्रम सफलता की कुंजी है;” कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर परिश्रम ही सफलता की कुंजी है क्योंकि इसी से सफलता का द्वार खुलता है। यदि हम परिश्रमी हो तो हमारा हमारी प्रगति निश्चित है। बिना परिश्रम के तो थाली में रखे रोटी भी मुँह में नहीं जाती। आलसी व्यक्ति जीवन में कभी भी सफल नहीं होते। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। अतः हमें निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए क्योंकि महाकवि तुलसीदास जी ने कहा है कि इस संसार में सभी पदार्थ है लेकिन कर्म न करने वाले मनुष्य उसे प्राप्त नहीं कर पाते।
प्रश्न 4. मृत्युभोज सामाजिक कुरीति है। हमारे समाज में ऐसी अनेक कुरीतियाँ है। उनके नाम लिखिए ।
उत्तर हमारे समाज में कुछ कुरीतियाँ निम्नलिखित है–
1. दहेज प्रथा
2. बाल विवाह
3.बालश्रम
4. कन्या शिक्षा का विरोध
5. पशुबलि ।
प्रश्न 5. लक्ष्मी का पचास वर्षों का नियम क्या था ? वह उसे क्यों नहीं तोड़ पा रही थी?
उत्तर लक्ष्मी का पचास वर्षों का नियम यह था कि उसके पति के खाना खाने से पहले उसने कभी भी भोजन नहीं किया । वह इस नियम को इसलिए नहीं तोड पा रही थी क्योंकि जब सुभागी के आग्रह पर वह रसोई में जाती तो उसे याद आता कि अभी तो उसके पति ने खाना खाया ही नहीं है। भूख भी उसकी इस विचारधारा पर विजय नहीं पा सकी। अतः उसने नियम नहीं तोड़ा , बल्कि प्राण छोड़ दिए।